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वसुंधरा को तन्मय ने और गहलोत को चमचो ने डुबोया, सीएमआर बन गया था रिश्वत बटोरने का बहुत बड़ा अड्डा
महेश झालानी, वरिष्ठ पत्रकार
कई राजाओ का पतन उनके मंत्री और सिपहसालारों के कारण हुआ है, उसी प्रकार अशोक गहलोत की सरकार को डुबोने में उनके ओएसडी शशिकांत शर्मा की बहुत बड़ी भूमिका रही है । इसी वजह से गहलोत ने शशिकांत से किनारा कर लिया है । मंत्रिमंडल गठन के बाद गहलोत इसके बेआबरू करके वापिस दिल्ली भिजवा सकते है ।
आपको ध्यान होगा कि वसुंधरा के जमाने मे उनके सचिव तन्मय कुमार ने जबरदस्त तांडव मचाया था । उन्होंने सीएम को अपनी जागीर समझते हुए विधायको और जन प्रतिनिधियों से दूर रखा । नतीजतन वसुंधरा जबरदस्त रूप से बदनाम हुई और उनकी सरकार का पतन होगया । तन्मय कुमार ने ललित मोदी के साथ जो खेल खेला, बहुत ही भयावह था । इन दोनों के कारण वसुंधरा की दिल्ली तक जबरदस्त बदनामी हुई ।
उसी तर्ज पर गहलोत को बदनाम करने में सबसे अहम भूमिका शशिकांत की रही । इसके अलावा गहलोत के प्रमुख शासन सचिव कुलदीप रांका और ओएसडी देवाराम सैनी की नकारात्मक और लूटने वाली प्रक्रिया को नजरअंदाज नही किया जा सकता है । ज्ञात हुआ है कि सीएम के नाम पर पैसे बटोरने का काम शशिकांत द्वारा ही किया जाता रहा है । तन्मय की तरह शशिकांत ने गहलोत को अपने चंगुल में बुरी तरह फंसा रखा था । जो शशिकांत ने कहा, गहलोत उसी को सच मानते थे ।
हकीकत यह है कि गहलोत को मुख्य रूप से शशिकांत, कुलदीप रांका, देवाराम सैनी और डीआईपीआर निदेशक पुरुषोत्तम शर्मा ने वशीकृत कर रखा था । इन लोगो का एक ऐसा घेरा था कि बिना इनकी मर्जी से कोई विधायक मिल ही नही पाता था । विधायको ने साफ तौर पर कहना शुरू कर दिया है कि शशिकांत जैसे लुटेरे लोगो की वजह से सरकार का पतन हुआ है । चिलमचियो ने सच्चाई से बेखबर रख गहलोत के आंखों पर पट्टी बांध दी । इस गिरोह के कारण धृतराष्ट्र बन गए थे ।
डीआईपीआर निदेशक पद पर देवाराम अपने मित्र और बैचमेट पुरुषोत्तम शर्मा को लाए । शर्मा के आते ही डीआईपीआर लूट का अड्डा बनकर रह गया । डिजाइन बॉक्स से मिले कमीशन में देवाराम, पुरुषोत्तम शर्मा, शशिकांत के बीच बंटवारा होता था । थोड़ा बहुत टुकड़ा ओएसडी (जन सम्पर्क) को डाल दिया जाता था । चुनावो के दौरान करोड़ो रूपये के विज्ञापन ऐसे अखबार चैनलों को दिए गए जिनकी न कोई प्रसार संख्या थी और न ही कोई विवरशिप । कई ऐसे फर्जी अखबारों लूट की इस गंगा में गोते लगाए जिनका वास्तव में प्रकाशन ही नही होता था ।
अब सीएमआर की बात करली जाए । बिना देवाराम और शशिकांत के कोई परिंदा भी यहां पर नही मार सकता था । सीएम से वही व्यक्ति मिल सकता था, जिसकी स्वीकृति देवाराम और शशिकांत देते थे । पहली बार सीएम से मिलने और मिलाने में पैसो का लेनदेन होने लगा । एक खान व्यवसायी करीब दो महीने से मिलने की कोशिश कर रहा था । जब सफलता नही मिली तो इस गिरोह से सम्पर्क साधा गया । उसी दिन न केवल सीएम से मुलाकात हुई बल्कि फाइल भी क्लियर होगई । यही करिश्मा धर्मेन्द्र राठौड़ का भी था । उचित कमीशन मिलने पर ट्रांसफर, पोस्टिंग और नियुक्तियां तुरन्त हो जाती थी । सीएम से मिलने से पूर्व इन लोगो से "टोकन" लेना अनिवार्य होता था ।
सीएमआर का मोर्चा देवाराम और शशिकांत ने संभाल रखा था जबकि सीएमओ का कुलदीप रांका । माल पहले वाले सीएम के सचिवो ने भी कमाया था, लेकिन रांका ने तो अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए । इस मासूम से दिखने वाले व्यक्ति ने सीएमओ में पूरी तरह से कब्जा कर रखा था । तभी तो जन सम्पर्क राज्य मंत्री अशोक चांदना ने सार्वजनिक बयान जारी करते हुए सीएम से आग्रह किया था कि सारे विभाग कुलदीप रांका को दे दिए जाए । हकीकत में गहलोत नाममात्र के सीएम थे, इस पद का असली मजा रांका, देवाराम, शशिकांत और पुरुषोत्तम शर्मा लूट रहे थे ।
यदि गहलोत को अपनी इज्जत बचानी है तो तुरंत इन लोगो को रुखसत करना चाहिए । वरना नई सरकार द्वारा इनको बेआबरू करके भगाना सुनिश्चित है । गहलोत को शायद पता नही होगा कि बाड़ेबंदी के दौरान इस गिरोह ने करोड़ो रूपये लूटकर अनेक नाजायज आदेश निकाले । इनमे से कितना पैसा गहलोत के पास पहुंचा, यह पड़ताल का विषय है । इसी तर्ज पर तन्मय कुमार ने भी उधम मचाकर वसुंधरा को सत्ता से बेदखल किया था ।
शेष फिर कभी ........गौतम अडानी ने किस किस को कितनी राशि रिश्वत के रूप में दी ।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)