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मातम तो कल दिखाई देगा पायलट खेमे में, जब होगा यह निर्णय!
महेश झालानी
राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत के फंसाये जाल में सचिन पायलट बुरी तरह उलझकर रह गए है। उनके समझ नही आ रहा है कि वे जाल से कैसे बाहर निकले। अगर समय रहते समझौते का रास्ता नही अपनाया तो विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी कल सचिन पायलट और उनके समर्थकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई कर सकते है। इस कार्रवाई में इन सभी लोगो का निष्कासन और अयोग्यता भी शामिल है।
अधिकाँश लोग और भाजपा यह राग अलाप रही है कि व्हिप केवल विधानसभा में ही लागू हो सकता है। यह सही है। लेकिन चीफ व्हिप महेश जोशी द्वारा दायर याचिका में कही भी व्हिप उल्लंघन का उल्लेख नही है। उंन्होने कहा है कि ये लोग स्वेच्छा से पार्टी छोड़ने पर आमादा है। यदि कोई सदस्य स्वेच्छा से पार्टी छोड़ता है या उसकी नीतियों के खिलाफ जाता है तो उस पर दल बदल कानून लागू होता है। ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष सदस्यता समाप्त करने का अधिकार रखता है।
एक यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि असंतुष्टों को आनन फानन और जल्दबाजी में विधानसभा अध्यक्ष ने नोटिस जारी किया है। दल बदल कानून अथवा 10वी अनुसूची में नोटिस के टाइम के बारे में कोई उल्लेख नही है। अध्यक्ष के अधिकार के बारे में सर्वोच्च न्यायालय ने भी दखल देने से इनकार कर दिया है।
उच्चतम न्यायालय ने दल बदल के एक प्रकरण में 31 जुलाई, 2019 को आश्चर्य जताया कि दल-बदल के लिए विधायकों की अयोग्यता मामले में अदालत दखल क्यों दे ? जब संविधान ने विधानसभा अध्यक्ष को निर्णय लेने की शक्ति प्रदान की है। न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे, न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने कहा, ''संविधान की दसवीं अनुसूची में जब विधायकों को अयोग्य ठहराने की शक्ति विधानसभा अध्यक्ष को दी गई है तो अदालत यह शक्ति अध्यक्ष से क्यों छीने?"
पीठ ने यह टिप्पणी द्रमुक नेता आर. सक्करपानी की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। याचिका में मद्रास उच्च न्यायालय के अप्रैल 2018 के फैसले को चुनौती दी गई है जिसने उपमुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम सहित 11 अन्नाद्रमुक विधायकों को अयोग्य ठहराने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी। संविधान की दसवीं अनुसूची दल-बदल के आधार पर सदन के सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित थी।
याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि किसी विधायक की अयोग्यता पर अगर विधानसभा अध्यक्ष फैसला नहीं करते हैं तो अदालत को निर्णय करना चाहिए। सिब्बल ने पीठ से कहा, ''मान लीजिए विधानसभा अध्यक्ष पांच वर्षों तक अयोग्यता पर निर्णय नहीं करते हैं तो क्या अदालत शक्तिहीन हो जाएगी?"
न्यायालय ने सिब्बल के तर्क को अस्वीकार कर दिया है। दरअसल दल बदल कानून में कई खासियत है तो कमियां भी अनेक है । इस कानून में कहीँ यह नही लिखा कि लोकसभा या विधानसभा का अध्यक्ष इतने दिनों में निर्णय करेगा। अध्यक्ष चाहे तो नोटिस जारी करने के तुरन्त बाद निर्णय कर सकता है। और वह चाहे तो सदन के कार्यकाल पूरा नही होने तक भी प्रकरण को टाल सकता है।
हकीकत यह है कि दल-बदल कानून लागू करने के सभी अधिकार सदन के अध्यक्ष या सभापति को दिए गए हैं। मूल प्रावधानों के तहत अध्यक्ष के किसी निर्णय को न्यायालय की समीक्षा से बाहर रखा गया और किसी न्यायालय को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं दिया गया। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने नागालैंड के किरोतो होलोहन (1990) मामले में इस प्रावधान को ख़ारिज कर दिया। न्यायिक सिद्धांतों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि 'न्यायिक समीक्षा' भारतीय संविधान के मूल ढाँचे में आती है, जिसे रोका नहीं जा सकता। ऐसा ही कुछ वर्तमान में कर्नाटक में देखने को मिला। लेकिन बाद में 31 जुलाई, 2019 को जस्टिस बोबडे की पीठ ने पूर्व के निर्णय को खारिज कर दिया।
पायलट मामले में अब बाल विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के पाले में है। जिस तरह महेश जोशी की ओर से जो याचिका पेश की गई है, वह बड़ी चतुराई से तैयार हुई है। इसमें व्हिप का उल्लेख नही करके पायलट गुट के लिए मुसीबत खड़ी करदी है। अब पायलट गुट के पास समर्पण के अलावा कोई चारा नही है। अगर ऐसा नही हुआ तो अध्यक्ष कल ही कठोर निर्णय सुना सकते है।
एक मिनट के लिए मान लिया जाए कि पायलट गुट की ओर से न्यायालय में अध्यक्ष के फैसले को अदालत में चुनोती दी जाती है तो यह जरूरी नही कि फैसला उनके अनुकूल ही आये। मान लो फैसला अनुकूल आ भी गया तो होगा क्या ? सदस्यता बहाल हो जाएगी। लेकिन हाथ मे क्या बाबाजी का ठुल्लू आएगा ? बहरहाल अब या तो सचिन पायलट के रुख से रणनीति तय होगी या फिर अध्यक्ष का फैसला राजनीति की उठापटक का पटाक्षेप कर सकता है।