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जब देश धर्म संस्कृति रक्षक राम जी ने रावण के पुतले को जलाया.....
मोहम्मद हफीज
दशहरे के मैदान में भारी उत्साह कोतूहल था आज असत्य पर सत्य के प्रतीक हमारे शहर के नामी देश धर्म संस्कृति के ठेकेदार प्रसिद्ध समाजसेवी व्यापारी से नेता बने मिलावट राम जी रावण दहन के लिए अपने हाथों से उसे जलाने हेतू आने वाले हैं। दशहरा मैदान में उमड़ी भारी भीड़ के हुजूम पर धर्म देश भक्ति का छाया ज्वार वातावरण को और भी धार्मिक बना रहा था जनता में सन्तोष का भाव था चलो आज समस्त बुराईयों के प्रतीक रावण के पुतले के दहन से समाज में फैली बुराईयों का अंत हो जाएगा। आज के बाद जनता में सुख शांति समृद्धि बढ़ जायेगी राजा प्रजा में भेद मिट जायेगा। माईक पर उंची आवाज में उदघोषक घोषणा थोड़ी-थोड़ी देर में कर रहा था बस अब से कुछ देर बाद हमारे शहर के प्रथम पुरुष मिलावट राम जी रावण दहन करने वाले हैं। मिलावट राम जी राजनेता बनने से पहले भी व्यापारी थे आज भी राजनेता बने मिलावट राम देश धर्म संस्कृति के ठेकेदार बने इसका थोक व्यापारी ही है जो पूरे देश में सत्ता सुख के लिए व्यापार करते हैं अपनी कमाई से ये हर साल भंडारा भजन संध्या कराते हैं इनके लिए तो राजनीति भी एक व्यापार है। व्यापार करना तीन का तेरह बनाना एक कला है और इस कलाकारी को व्यापार में उतारना जय श्रीराम के सम्बोधन से किलो का आठ सौ ग्राम तोलना शुद्ध को अशुद्ध में बदलना फिर अपनी मेहनत को शुद्ध मुनाफे में बदलना हमारे मिलावट राम जी को खूब आता है। अपनी इन कलाओं के बल पर मिलावट राम हर कहीं अपनी जगह बना लेते हैं। सहसा मिलावट राम का अतीत हमारी आंखों के सामने घूमने लगा छोटे से कस्बे से राजधानी में आए मिलावट राम जी ने साइकिल पर सवार होकर फेरी लगाकर सामान भी बेचा है। कभी कुछ गलत हो जाने पर मिलावट राम जी का तकीया कलाम तेल तो तिलों से ही निकलता है अर्थात मिलावटी सामान बेचते पकड़े जाने पर पुलिस, चिकित्सा विभाग का खर्चा भाड़ा इस हाथ दिया उस हाथ लिया मिलावट बढाई जनता को थमाई और पैसा वसूल का फार्मूला फायदा ही फायदा। देश धर्म का नाता है हर भारतीय मिलावटी सामान खाता है इसे व्यापार हमारे चोटी जनेऊ धारी धर्म ध्वज धारण करने वाले मिलावट राम जी बताते है और यह उनको खूब आता है। आज यही सफलता का शॉर्ट-कट पैमाना है।
इसे अपनाने वाले हमारे मिलावट राम शुद्ध राष्ट्रवादी देश धर्म भक्ति का थोक में व्यापार करने वाले दल से जुड़े हैं पर उनकी काली कमाई के बल पर सभी दलों में उनके चाहने वाले मित्र चहेते हैं जो उनके कारोबार को बढ़ाने में सहायता करते हैं। क्या है अब गांधी के जानें के बाद भी सत्ताधारी दल के लोगों का गांधी प्रेम आज भी बरकरार है। गांधी जी के विचारों की हत्या करने वाले नेता सत्तासुख के रुप में हमारे मिलावट राम जी से गांधी की फोटो वाले नोट ही स्वीकार करते हैं इससे दोहरा लाभ होता है पार्टी व जनता के बीच नेताजी गांधी की कसमें खाकर स्वयं को गांधी वादी बताते हैं और दूसरा जब कभी सपने में गांधी जी से भेंट हो जाएं तो झट से कहदे गांधी जी आपके दुनिया से जाने के बाद भी हमने आपको नहीं भुलाया है हम आपको दिया वचन सदैव निभाते हैं गांधी छाप नोटों के बदले ही अपनी कलम चलाते हैं हम गांधी की फोटो का मान नहीं गिराएंगे सारे काम हाथों हाथ निपटाएंगे।
अचानक गजराज की सवारी करते मिलावट राम जी कलियुग का पूरा मान सम्मान करते हुए प्रकट होकर जय श्री राम का उदघोष करते हैं हाथ में तीर कमान लिए मिलावट राम जी रावण को क्रोध भरी नजरों से देखते हैं और मंद-मंद मुस्कुराते है सोचते हैं है मूर्ख रावण सतयुग में तेरे किए अपराध आज कलियुग में हम जैसे कलियुगी राम भक्तो के हाथों तुझे जीवित अग्नी दहन कराते हैं। देख तेरा किसी से भी नहीं है नाता भले ही तू विद्वान पंडित था तुझे तेरे ही समाज ने ठुकरा दिया।
देख हम जैसे कलियुगी राम भक्तो को हम जय श्री राम के नारे से लोकतंत्र का चीर हरण साधू बनकर लोक सभा विधानसभा में करते हैं चिन्मयानंद बनके अबोध कलियों से अपने शरीर की मालिश कराकर जब चाहे उन फूल सी कलियों को अपने शरीर की तपिश से कुचलकर फूल बना देते हैं मूर्ख रावण बलात्कारी सदाचारी न्याय देने वाले हम है हम मात्र एक जय श्री राम के नारे से देश धर्म भक्त जब चाहे बन जाते हैं।
हमारे गेरुआ वस्त्र के रंग में दंगाईयों के खून सने हाथ बेटियों के शरीर को चीथडो में बदलकर दलित अबलाओ का उत्पीड़न महज इसलिए करते हैं की हम सत्ता राज्य के कृपा पात्र राजपूत है। हम देश दुनिया के लिए आदर्श साधू संत हैं जो सत्ता स्वाद से लेकर उन्मुक्त यौनाचार में लिप्त है। यह सुनते ही रावण तेश में आ गया भुजाएं फड़कने लगी गुस्से से रावण ने अपने पेरो से धरती हिला दी कहा क्यों रे नाश पीटे कायर कपटी ढोंगी मेरी आत्मा में तो घट घट में बसने वाले राम के प्रति आस्था सम्मान था तभी सीता माता मेरी केद में रहकर भी सुरक्षित थी।
रावण की गर्जना से वातावरण में उत्तेजना भर गई मुझे जलानें से पहले अगर तेरे शरीर में आत्मा बची है तो अपनी आत्मा और उपस्थित जन समुदाय से मेरे यक्ष प्रश्नों का उत्तर मांग। मुंह में राम बगल में छुरी रखने वाले कलियुगी रामभक्तों बताओं किसके आचरण में है पुरषोत्तम राम के आचरण की सुगंध कौन है मर्यादाओं का पालक पुरुष कौन है वो विलक्षण संस्कारी सुकुमार जिसने पालन की अपने पिता की आज्ञा कौन तड़पा पत्नी वियोग में सीता के लिए कौन मिट गया माता के वंदन में किसके मन में है प्रजा प्रेम का सम्मान किसने जलाई अपने अहंकार की लंका।
कौन जलाएगा मेरे पुतले को तुम्हारे वह लालची हाथ जो दहेज और रिश्वत के लिए रोज फैलाए जाते हैं या वो जो रोज ही दंगों में देश समाज की सम्पत्तियो को जलाते हैं अथवा अपनी कायर शूरवीरता को कमजोरों पर आजमाते हैं। रिश्तों का व्यापार कर पर निन्दा से अपने स्वार्थ सेंकने वालों अपने मां बाप को वृद्ध आश्रम की सीढ़ियों पर छोड़ने वाले सदैव अनाचार में लिप्त जीवन दायी स्त्री को अपने मोह पास में लेने वाले आतुर ढोंगी साधु खद्दर धारी नेता प्रतीकात्मक रुप से भले ही तुम मेरे पुतले को जलाकर खुश होते हो परन्तु तुम्हारे अपने शरीर में जमा अहंकार लालच काम क्रोध वासना का ज्वार तुम्हें कभी भी मानवता का दिल सीने में रखनें वाला मानव नहीं बनने देगा।
अपनी आत्मा से पूछो तुमने दिन के उजाले में और रात के अंधेरे में कितने कुकर्म किये है तुम्हारी आत्मा में छाई तुम्हारे अपराधों की कालिख स्याही बनकर तुम्हारे चेहरे पर छाई हुई है सिर्फ सत्ता की चकाचौंध ही तुम्हारे पापों को छुपाती है जिसके लिए तुम मानवता का खून करके शहर के शहर जला देते हो। तुम सब कुछ हो पर पूछो अपनी आत्मा से क्या तुम मानव कहलाने का भी हक रखते हो शायद मानव होने का अर्थ भी तुम नही जानते। भयानक अट्टहास कहकहे लगानें लगा रक्षपति रावण दोहरे चरित्र व विद्रूप मानसिकता वाले नेता मिलावट राम और ठिठक कर शांत भाव अपने पापों का स्मरण करता जन समूह शांत हो चुका था मशाल हाथ में लिए रावण को जलाने वाले नेता के पेरो में रावण के कहे शब्दों की बेड़ियां पड़ चुकी थी भाव शुन्य नेता बने मिलावट राम को अपनी गलती का अहसास हो चुका था शण भंगूर जीवन में पाप की गठरी सिर पर ढोए मिलावट राम जी कब तक कितनी दूर तक अपने जीवन का बोझ कब तक अपने शरीर पर ढोएंगे एक ना एक दिन तो जाना ही है। शव यात्रा में राम नाम का संदेश मरने वाले से ज्यादा जीवित लोगों के लिए सार्थक है उपस्थित जनसमूह भाव शुन्य हो गया वातावरण में रावण महा पंडित के सवाल अब भी गूंज रहे थे।