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जेल से रिहा होने के बाद जयपुर में अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूपी के डॉक्टर कफील खान ने खुद स्वीकार किया है कि उन्हें प्रियंका गांधी की तरफ से यह कहा गया उस दिन कांग्रेस शासित राजस्थान में गुजारे. क्योंकि यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार उनके खिलाफ फिर मुकदमा दर्ज करा सकती है. डॉ कफील ने इस सहयोग के लिए प्रियंका गांधी का आभार भी जताया है.
कांग्रेस की तरफ से डॉ कफील के प्रति सहानुभूति दिखाने का यह पहला मौका नहीं था. मथुरा जेल से जिस वक्त उनकी रिहाई हो रही थी उनको लेने पहुंचे लोगों में कई कांग्रेसी नेता शामिल थे जिसमें ज्यादातर उनके और यूपी सीएम के योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर से खास तौर पर आए थे. इससे पहले उनकी रिहाई की मांग को लेकर कांग्रेस ने विधानसभा में मुद्दा उठाया एक तरह से इतना खुलकर साथ देने वाली कांग्रेस ही राज्य की इकलौती पार्टी थी.
क्या यह सियासी दांव है
बेशक कांग्रेश यूपी में डॉ कफील के जरिए मुसलमानों के बीच अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा फिर वापस चाहती है .90 के दशक में अयोध्या मुद्दे पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के स्टैंड ने उन्हें उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के मसीहा के रूप में स्थापित कर दिया.मुसलमानों की पहली पसंद उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी बनी और दूसरे नंबर पर उनका वोट बहुजन समाज पार्टी को जाता रहा. कभी कांग्रेस का यह वोट एक स्थाई वोट बेंक माना जाता था और वह धीरे-धीरे खिसकता चला गया और कांग्रेस उस दिन से उत्तर प्रदेश से गायब होती नजर आई.
लेकिन 2014 के बाद देश के राजनीतिक परिदृश्य में आए बदलाव और खास तौर पर 2019 के लोकसभा नतीजों को देखने के बाद एसपी और बीएसपी के स्टैंड में बहुत फर्क आ चुका था. दोनों पार्टियां किसी भी सूरत में अपने को मुस्लिम परस्त अर्थात मुस्लिम समर्थक होने का ठप्पा नहीं लगाना चाहती थी. उनकी कोशिश पहले से मुस्लिम समर्थक लगे होने के अपने दाग को छुड़ाने की ओर थी. यही वजह है कि दोनों पार्टियां डॉ कपिल से उचित दूरी बनाकर चल रही थी और उनका खुलकर पक्ष लेने में अपने को असहाय समझ रही थी.
ऐसे में कांग्रेस को डॉ कफील के साथ खड़े होने में अवसर दिख रहा है. काग्रेस नेता यह मानकर चल रहे हैं कि डॉ कफील अपनी पहचान सिर्फ मुसलमानों में यहां से नहीं किए हुए हैं. बल्कि उस वर्ग में भी हासिल अपनी लोकप्रियता हासिल किये हुए हैं जो एंटी भाजपा है वह भी डॉक्टर के खिलाफ यूपी सरकार से नाराज हैं .इसलिए कांग्रेस का उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में यह दांव अब सटीक पड़ता नजर आ रहा है. राजनीतिक दलों की खामोशी उसे हैरान किए हुए हैं ऐसे में कांग्रेस को इस मुद्दे पर खुलकर आना कांग्रेस के लिए एक बड़ी कामयाबी की ओर ले जाना नजर आ रहा है.
क्या है रोड मैप
कहा जा रहा है डॉक्टर कपिल बगैर कांग्रेस के मंच पर राज्यों मैं अपने साथ हो रही सरकारी दमन की कहानी सुनाएंगे. यूपी से पहले कांग्रेस उनके जरिए विहार में मुसलमानों को अपने पक्ष में गोलबंद करना चाहेगी. कांग्रेस के कई नेता तो इस राय के भी है कि पार्टी को डॉ कफील को किसी राज्य से राज्यसभा भेजकर उन्हें एक मुस्लिम चेहरे के रूप में स्थापित करना चाहिए. कफील के लिए भी मजबूत सियासी ताकत रखना मजबूरी है क्योंकि उनकी जिस तरह से यूपी सरकार से चल चुकी है उसमें सियासी ताकत के बगैर उनकी लड़ाई उनकी मुश्किलें बढ़ा सकती है अगर सियासी मुकाम को हासिल हो जाता है तो यह लड़ाई कुछ ठंडी पड़ सकती है.