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भारतीय जनता पार्टी ने जब से किसान बिल लागू किया है. तबसे उसके लिए बिल के विरोध ही नहीं अपनों ने भी साथ छोड़ना शुरू कर दिया. इसके मुताबिक पहले अकाली दल और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी प्रबल विरोध शुरू कर दिया है.
हनुमान बेनीवाल अब लाखों की संख्यां में किसानों का काफिले को लेकर दिल्ली के लिए कूच करने की बात कह रहे है. जबकि इस दौरान इस भीड़ में उनके विधायक भाई की गाडी भी एक्सीडेंट कर गई है उनको चोट भी आई है. लेकिन किसानों के साथ हनुमान बीजेपी के खिलाफ लड़ाई लड़ने की लिए निकल पड़े है.
अब देखना यह होगा कि बीजेपी के हनुमान क्या बीजेपी को कुछ नुकसान पहुंचाएंगे. या फिर यह भी टांय टांय फिस हो जायेगा. किसान आंदोलन नई साल में तेज हो जाएगा. हालांकि आज भी कुछ निष्कर्ष निकलता नहीं दिख रहा है. पहले सरकार किसानों के पाले में बुलाकर गेंद फैंकने का काम करती रही है. इस बार किसान ओवर थ्रो वाल सरकार के पाले में फेंक दी और २९ दिसंबर की तारीख दे थी जिसे सरकार ने एक दिन आगे बढाते हुए आज का दिन रखा है. लेकिन आज भी रास्ता निकलता नहीं दिख रहा है.
उधर हनुमान बेनीवाल भी अपने काफिले के साथ जल्द ही दिल्ली जयपुर सीमा पर पहुँच जायेंगे. उधर बीजेपी नेता हनुंमान बेनीवाल को धमकी भी दे रहे है कह रहे है पहले इस्तीफा दो और फिर चुनाव जीतकर सरकार का विरोध करो सरकार से मिलकर मोदी के नाम से चुनाव जीतकर अब उन्ही का विरोध करना ठीक नहीं है.
काफिला कहाँ पहुंचा
शाजापुर खेड़ा हरियाणा बॉर्डर पर रात भर हनुमान बेनीवाल अपने कार्यकर्ताओं के साथ टेंट में रुके रहे। इस दौरान बेनीवाल ने कहा कि राजस्थान का किसान भी देश के किसान आन्दोलन में साथ खड़ा है, किसान का मान और सम्मान ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है।
किसान नेता बोले- बेनीवाल का भाजपा को छोड़ना हिम्मत का काम
हरियाणा शाहजहांपुर खेड़ा बॉर्डर पर शुरुआत से आंदोलन कर रहे किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि राज छोड़ना हिम्मत का काम है बेनीवाल भाजपा सरकार का साथ छोड़ कर आए हैं। निश्चित रूप से आंदोलन को मजबूती मिली है।
राजस्थान की राजनीति में जाट चेहरा
नागौर जिले का खींवसर बेनीवाल का गढ़ है। खजवाना, जनाणा, बू-नरावता और ग्वालू समेत कई गांवों में बेनीवाल का असर है। यहां बड़ी संख्या में जाट समुदाय है, जो किसान हैं। RLP ने हाल ही में हुए पंचायती राज चुनावों में पूरे राजस्थान में अपने उम्मीदवार उतारे थे। अब दूसरे जिलों के किसानों को साधने के बेनीवाल आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। माना जा रहा है कि इसीलिए उन्होंने खुद को अलायंस से अलग कर लिया।
3 महीने में NDA को दूसरा झटका
कृषि कानूनों को लेकर केंद्र के खिलाफ किसान महीनेभर से भी ज्यादा समय से धरने पर बैठे हैं। सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी आंदोलन जारी है। अगर NDA की बात करें, तो गठबंधन को तीन महीने में यह दूसरा बड़ा झटका है। इससे पहले, केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद, 26 सिंतबर को NDA का दो दशक से ज्यादा पुराना सहयोगी अकाली दल अलग हो गया था। 26 दिसंबर को RLP अलग हो गई। यानी तीन महीनों में NDA को यह दूसरा बड़ा झटका लगा है।