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क्या पूर्व डीजीपी उमेश मिश्रा मानव अधिकार के सदस्य बनेंगे ?
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महेश झालानी
भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रहे उमेश मिश्रा से सरकार ने पुलिस महानिदेशक पद से जबरन इस्तीफा तो ले लिया, लेकिन क्या सरकार उनको पद छोड़ने के बदले में कोई नई जिम्मेदारी देगी, प्रशासनिक क्षेत्र में इस बात को बात को लेकर जबरदस्त चर्चा है ।
एमएल लाठर के बाद उमेश मिश्रा को गहलोत सरकार ने दो साल के लिए डीजीपी नियुक्त किया था । नई सरकार बदलने के साथ ही उमेश मिश्रा को डीजीपी पद से हटाने के लिए इसलिए आवश्यकता महसूस हुई क्योकि वे गहलोत सरकार के काफी निकट थे । जब गहलोत सरकार संकटग्रस्त थी तब उमेश मिश्रा ने बतौर एडीजी इंटेलिजेंस बहुत ज्यादा मदद की । इनके अथक प्रयासों से अपेक्षित संख्या में विधायक मानेसर नही जा पाए । इसी के इनामस्वरूप गहलोत ने इन्हें डीजीपी बनाया था ।
नई सरकार उमेश मिश्रा को हटाकर उत्कल रंजन साहू को डीजीपी बनाना चाहती थी । लेकिन इसके पीछे सबसे बड़ा पेच यह था कि सरकार कानूनन नवम्बर, 24 से पहले उमेश मिश्रा को डीजीपी पद से हटा नही सकती थी । ऐसे में सीएम भजनलाल शर्मा ने उमेश मिश्रा से स्वेच्छिक सेवानिवृति लेने का आग्रह किया । बताया जाता है कि सीएम ने उमेश मिश्रा को आश्वस्त किया था कि उनकी प्रतिभा का अन्य स्थान पर इस्तेमाल किया जाएगा । परिणामतः मिश्रा ने तुरन्त अपने पद से त्यागपत्र दे दिया ।
मूल रूप से यूपी के है उमेश मिश्रा
उमेश मिश्रा मूल रूप से उत्तरप्रदेश के कुशीनगर के रहने वाले हैं। उमेश मिश्रा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पसंदीदा अफसरों में से थे। चार साल तक मिश्रा इंटेलीजेंस में रहने के बाद वो 27 अक्टूबर 2022 को राजस्थान पुलिस के महानिदेशक बनाए गए थे। उमेश मिश्रा को दो सीनियर आईपीएस अफसरों को दरकिनार कर डीजीपी बनाया था।
बताया जाता है कि मिश्रा को मानव अधिकार आयोग, सूचना आयोग अथवा पुलिस यूनिवर्सिटी में नियुक्त किया जा सकता है । मानव अधिकार आयोग में एक, सूचना आयोग में चार सदस्य और एक मुख्य आयुक्त के अलावा पुलिस यूनिवर्सिटी में कुलपति का पद रिक्त है । चर्चा है कि मिश्रा को मानव अधिकार आयोग का सदस्य बनाया जा सकता है । सूचना आयोग में लफड़ा यह है कि वहां पहले से ही पूर्व डीजीपी एमएल लाठर सदस्य के रूप में काम कर रहे है । ऐसे में एक ही आयोग में पुलिस से ताल्लुक रखने वाले दो अधिकारियों का रखना नियम विरुद्ध बताया जाता है ।
जहां तक मिश्रा का सवाल है, वे पुलिस यूनिवर्सिटी के बजाय मानव अधिकार आयोग का सदस्य बनना ज्यादा उचित रहेगा । क्योंकि पुलिस यूनिवर्सिटी का मुख्यालय जोधपुर है । ऐसे में वे जयपुर छोड़कर जोधपुर जाना नही चाहेंगे । मानव अधिकार आयोग अलावा सूचना आयोग में भी पांच नियुक्तियां होने वाली है । इसके लिए कार्मिक विभाग की ओर से आवेदन मांग लिए गए है ।
उधर राजस्थान लोक सेवा आयोग को भंग करने या इसके अध्यक्ष संजय श्रोत्रिय को हटाने की भी कवायद चल रही है । विधि विशेषज्ञों से राय ली जा रही है कि गहलोत राज में नियुक्त लोगो से छुटकारा कैसे पाया जाए । लोक सेवा आयोग सहित कई पद संवैधानिक है । इनमे से जबरन किसी को हटाने पर कानूनी पेचीदगियां पैदा हो सकती है । वैसे सरकार चाहे तो गहलोत राज में नियुक्त सभी को हटाया जा सकता है । आवश्यकता है केवल दृढ़ इच्छा शक्ति की । भैरोसिंह शेखावत ने भी जस्टिस पीडी कुदाल को लोकायुक्त पद छोड़ने के लिए विवश किया था ।
यदि सरकार संजय श्रोत्रिय को लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष पद से हटाने में कामयाब हो जाती है तो इस पद पर उमेश मिश्रा की नियुक्ति सुनिश्चित है । बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में लोक सेवा आयोग को भंग करने का वादा किया था । देखना यह है कि सरकार इसे भंग कर पाती है या नही । अथवा अशोक गहलोत द्वारा थोपे गए संजय श्रोत्रिय, संगीता आर्य, जसवंत राठी, मंजु शर्मा और बाबूलाल कटारा सरकार की छाती पर मूंग दलते रहेंगे ।