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प्रमुख रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सलाह को अमल में लाया जाता है तो राजस्थान में अशोक गहलोत के स्थान पर कभी भी सचिन पायलट की ताजपोशी की जा सकती है। प्रशांत किशोर का मानना है कि राजस्थान के झगड़े को टालने के लिए बचे समय के लिए पायलट को मुख्यमंत्री बनाना पार्टी के लिए श्रेयष्कर होगा। गहलोत संगठन को चलाने में काफी सिद्धहस्त है। अतः उन्हें मुख्यमंत्री पद से मुक्त कर संगठन की कमान सौपना दूरगामी दृष्टि से पार्टी हित मे रहेगा।
प्रशांत किशोर को कांग्रेस आलाकमान ने ऐसे समय सलाह के लिए तलब किया जब राजस्थान और पंजाब में पार्टी आंतरिक कलह की वजह से बुरी तरह झुलस रही है। प्रियंका, राहुल के अलावा प्रशांत किशोर की सोनिया गांधी से काफी चर्चा हुई । यूपी चुनावो के अलावा राजस्थान व पंजाब की आपसी लड़ाई इस बातचीत का मुख्य मुद्दा था।
प्रशांत किशोर के निकटवर्ती सूत्रों ने बताया कि आलाकमान की ओर से जो वादा पायलट गुट से किया गया था, उसे पूरा करना चाहिए। अन्यथा पायलट पार्टी में रहते हुए इसकी जड़ो में मट्ठा डालने के साथ साथ गहलोत के लिए भी मुसीबत खड़ी करते रहेंगे । प्रशांत किशोर का यह स्पस्ट मानना था कि पायलट वर्तमान में पार्टी छोड़ने की स्थिति में इसलिए नही है कि उनके पास कोई अन्य विकल्प नही है।
रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने दो टूक शब्दों में कहा कि पार्टी नेतृत्व को पायलट से कोई वादा नही करना चाहिए था, बजाय कोई वादा करने के उस वक्त पायलट को पार्टी से निष्कासित करना उचित होता, जब वे समर्थित विधायकों के साथ बगावत की। पायलट की इस कृत्य के लिए यदि उन्हें उस वक्त निष्कासित कर दिया जाता तो आज इस तरह की सार्वजनिक कलह देखने को नही मिलती। चूँकि पार्टी नेतृत्व से भारी चूक हो चुकी है, लिहाजा सकंट का समाधान करने के लिए पायलट को दो-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।
सूत्रों का कहना है कि प्रशांत किशोर की बात से राहुल तो सहमत है, लेकिन सोनिया और प्रियंका बिल्कुल भी राजी नही है। चर्चा इस बात पर भी हुई कि पायलट को मुख्यमंत्री बनाने पर गहलोत भी बगावत कर सकते है। पायलट के अधिकतम 25 विधायक समर्थक हो सकते है। लेकिन बहुमत गहलोत के पास है। प्रशांत किशोर का कहना था कि गहलोत के चरित्र बगावत करने का नही है। वे खफा और दुखी तो हो सकते है, लेकिन बगावत उनके खून में नही है।
सोनिया गांधी इस फार्मूले पर अमल करेगी, इस पर संशय है। उनका झुकाव गहलोत के प्रति है। तभी तो पायलट के लाख विरोध के बाद भी राजस्थान की कमान गहलोत को सौंपी गई। अगरचे ऐसा होता है तो गहलोत चुप नही बैठने वाले है। पर्दे के पीछे रहकर वे ऐसा खेला खेलेंगे कि पायलट कभी भी सीएम की कुर्सी पर नही बैठ पाएंगे। गहलोत का एकमात्र उद्देश्य पायलट को राजनीतिक रूप से नेस्तनाबूद करना है। यदि ऐसा नही होता तो राजस्थान का संकट कभी का समाप्त हो जाता। पायलट समर्थको को गहलोत मंत्री बनाने के मूड में नही है।
ज्ञात हुआ है कि जल्दी ही राहुल, प्रियंका और सोनिया की सामूहिक बैठक हो सकती है जिसमे इस फार्मूले पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। आलाकमान को अब यह अहसास होने लगा है कि यदि शीघ्र ही राजस्थान व पंजाब का संकट नही निपटाया गया तो स्थिति ज्यादा भयंकर हो सकती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि पंजाब के साथ राजस्थान का भी कोई उचित हल खोजा जाएगा।