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भारतीय जनता पार्टी की अटल सरकार में रहे केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह इन दिनों शारीरिक रूप से ठीक नहीं है. उनका शरीर साथ नहीं दे रहा है. अब उनकी हालत भी पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी जैसी हो गई है. आज वो अस्सी वर्ष के हो गये है. उनके जन्मदिन के अवसर पर उनके विधायक बेटे मानवेंद्र सिंह ने बड़ी है मार्मिक चिठ्ठी लिखी.
द प्रिंट में प्रकाशित एक लेख में उन्होंने पिता की शारीरिक परेशानी आदि का मार्मिक जिक्र किया है है. बता दें कि जसवंत सिंह ऐसे बिरले नेताओं में शुमार रहे हैं, जिन्हें देश का रक्षामंत्री, वित्तमंत्री और विदेश मंत्री बनने का मौका मिला.
पत्र के प्रमुख अंश का पेश है अनुवाद.
मेरे पिता जसंवत सिंह आमतौर पर खेल की खबरें नहीं पढ़ते हैं, इस नाते मुझे घोर आश्चर्य हुआ जब उन्होंने 2013 में माइकल शूमाकर के एक्सीडेंट के बारे में पूछा. इससे भी ज्यादा हैरानी की बात रही कि आठ महीने बाद उन्हें भी उसी तरह सिर के गंभीर चोट से गुजरना पड़ा. मैने शूमाकर के बारे में हर खबर बढ़ी, पता चला कि कैसे उनके परिवार ने घायल होने के दौरान उनको लेकर काफी गोपनीयता बरती. अब जब मेरे पिता उसी हालत में हैं, तब मुझे उस गोपनीयता का मतलब समझ में आ रहा है. केवल नजदीकी लोग ही मुझे और इस गोपनीयता को समझ सकते हैं. पिता के करीबी दोस्त आते हैं, हालचाल पूछते हैं मगर वे मिल नहीं सकते. इकलौते दोस्त जो नियमित आते हैं, वो आडवाणी हैं. वह जब आते हैं हमेशा देखकर उनकी आंखें नम हो जाती हैं. कोई उनसे बात नहीं कर सकता, क्योंकि वह अटल बिहारी बाजपेयी की स्थिति में आ गए हैं.
मेरे पिताजी और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच अट्टू रिश्ता रहा, यह रिश्ता हर तरह की सीमाओं से परे था. पिता को अटल जी का हनुमान का तमगा मिला था. वह जनता के प्रति जिम्मेदार नेता था. एक उदाहरण है. 1999 में विमान के अपहरण के बाद हर रात एक महिला उन्हें फोन कर अनाप-शनाप बोलती थी और आत्महत्या करने की धमकी देती थी. केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद वह खुद घर के नंबर पर आई कॉल रिसीव करते थे. वह महिला अपहृत विमान के क्रू मेंबर की पत्नी थी। वह फोन पर कहती थी कि आप लोग मेरे पति को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं. बाद में कंधार ले जाए गए विमान को जब 31 दिसंबर को सकुशल वापस लाया गया तब महिला अपने पति के साथ अगले दिन एक जनवरी को आई और उसने फूलों का गुलदस्ता देकर माफी मांगी.
मेरे पिता बाद के दिनों में काफी प्राइवेसी बरतने लगे, जब जिन्ना विवादके तूफान में लालकृष्ण आडवाणी पड़े. जनवरी 2006 के अंत में मेरे पिता 86 तीर्थयात्रियों को बलूचिस्तान के लास बेला जिले के हिंगलाज माता का दर्शन कराने ले गए, कोई भारतीय 1947 से यहां नहीं गया था. अपने राजनीतिक करियर के आखिरी समय में वह बाड़मेर का प्रतिनिधित्व करना चाहते थे मगर वह नहीं कर सके, जिसने उन्हें कष्ट दिया. हालांकि अब उनकी मदद के लिए कोई संजीवनी नहीं है, अब अटलजी के हनुमान उड़ नहीं सकते.
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