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राजस्थान का पत्रकार बिहार पुलिस की गिरफ्त में, खबर पढ़कर पत्रकार सोचे ये क्या मामला है
अवधेश कुमार
मेरी समझ में अभी तक नहीं आया कि वाड़मेर राजस्थान के एक पत्रकार ने बिहार के एक दलित के साथ ऐसा क्या दुर्व्यवहार किया कि उसे अनुसूचित जाति जनजाति कानून के तहत गिरफ्तार किया गया। बाड़मेर से बिहार लाकर उसे जेल में डाला गया। अगर वह दलित बाड़मेर मंे रहता था तो वहां भी प्राथमिकी दर्ज कर सकता था। खैर, बिहार में भी दर्ज किया तो उसे सामने लाकर पुलिस को दिखाना चाहिए। पता चला है कि जिसने केस किया वह बाड़मेर कभी गया ही नहीं। पत्रकार भी कह रहा है कि कभी पटना आया नही ंतो मुदकमा मैसे दर्ज हो गया?
राजस्थान से जितनी जानकारी मिली उस पत्रकार की छवि अच्छी नहीं है। किंतु इससे मुकदमे का क्या लेना-देना? यह भी पता चला कि बिहार के राज्यपाल सत्यपाल मलिक, जो अब जम्मू कश्मीर के राज्यपाल हैं, वहां कई बार गए थे और एक परिवार में रुकते थे। यह परिवार एक भाजपा नेत्री का है। उनके बारे में यह पत्रकार फेसबुक पर कुछ लिखता रहता था। कहा गया है जो लिखा था वह चरित्र हनन की श्रेणी का था। अगर ऐसा है तो मैं इसका समर्थन नहीं कर सकता। ंिकंतु वैसी स्थिति में भी उसके विरुद्ध मानहानि का मुदकमा वहीं दर्ज होना चाहिए था।
हालांकि वो भाजपा नेत्री इस गिरफ्तारी के पीछे अपना किसी तरह का हाथ होने से इन्कार कर रहीं हैं। बावजूद संदेह की सूई तो उनकी ओर जाती है। जो भी हो, सच सामने आना चाहिए। चूंकि बिहार के पुलिस महानिदेशक ने पटना के आईजी को जांच करने का आदेश दिया है। इसलिए उम्मीद करनी चाहिए कि सच सामने आ जाएगा। मैंने इसलिए मामला नहीं उठाया क्योंकि वह पत्रकार है। एक आम व्यक्ति के साथ भी कोई कानूनी कार्रवाई संदेह के घेरे में हो तो उसका प्रतिकार करना हमारा दायित्व है। मेरे पास विस्तृत जानकारी नहीं है। जितना कुछ मुझे पता चला है उसे मैंने लिखा है। अगर किसी को और जानकारी हो तो कृपया बताएं।