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राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन तेज, रेल पटरी पर फिर जमाया कब्जा
राजस्थानः आरक्षण के मुद्दे को लेकर गुर्जर समुदाय के सदस्य सवाई माधोपुर के मकसूदनपुरा में रेलवे ट्रैक पर बैठ गए हैं. रेल विभाग ने कई ट्रेनों को निरस्त कर दिया है तो कई ट्रेनों के रूट बदल दिए गए है. पिछली सरकार में भी इस आंदोलन से काफी जनहानि हुई थी.
विधानसभा चुनाव की तर्ज पर ठीक लोकसभा चुनावों से पहले आंदोलन पर उतारू गुर्जर समाज प्रदेश की कुल 25 लोकसभा सीटों में से 15 सीटों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है. इनमें भी आठ लोकसभा सीटों पर गुर्जर समाज के मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद है. इन आठ लोकसभा क्षेत्रों में गुर्जर समाज की मजबूत पकड़ है. कानूनी दांवपेच में उलझे गुर्जर आरक्षण के इस मसले का लोकसभा चुनाव से पहले संतोषजनक हल निकालना कांग्रेस के लिए चुनौती है.
लोकसभा क्षेत्रवार अगर गुर्जर समाज के मतदाताओं की संख्या का आंकलन किया जाए तो टोंक-सवाईमाधोपुर लोकसभा क्षेत्र में करीब 2 लाख 45 हजार गुर्जर मतदाता हैं. इसी क्षेत्र से आंदोलन करने के लिए गुर्जर समाज जुट रहा है. इसके अलावा मेवाड़ अंचल के भीलवाड़ा में करीब दो लाख बीस हजार और मेवात अंचल के भरतपुर लोकसभा क्षेत्र में करीब दो लाख गुर्जर मतदाता है.वहीं करौली-धौलपुर लोकसभा क्षेत्र में करीब एक लाख 70 हजार, दौसा में एक लाख 50 हजार, चित्तौडगढ़ में 1 लाख 43 हजार, अजमेर-लोकसभा में 1 लाख 42 हजार और कोटा लोकसभा क्षेत्र 1 लाख 36 हजार गुर्जर वोटर हैं. इन आठ लोकसभा क्षेत्रों के अलावा अलवर, बूंदी, राजसमंद और जयपुर जिले में भी गुर्जर मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद है.
प्रदेश की सत्ताधाऱी पार्टी कांग्रेस विधानसभा चुनाव से पहले इस मामले में ज्यादा बोलने से बचती रही है. वहीं सत्ता से बाहर हुई बीजेपी सत्ता में रहते हुए इस मुद्दे से न केवल जूझती रही है, बल्कि बोलती भी रही है. कांग्रेस उपाध्यक्ष अर्चना शर्मा इस मसले से यह कहकर किनारा कर रही हैं कि पूर्ववर्ती सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया.
वहीं बीजेपी के वरिष्ठ विधायक एवं उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड ने कहना है कि गुर्जर समाज करवट लेता नजर आ रहा है. इसका नुकसान कांग्रेस को उठाना पडेगा. इन सबसे इतर राजनीति के जानकारों का कहना है कि राजनैतिक पार्टियों के अपने दावे और विचार हो सकते हैं, लेकिन किसी भी जाति का वोट बैंक किसी एक की मुठ्टी में नहीं हो सकता है.