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कांग्रेस नेतृत्व ने अनुशासन तोड़ने की दे रखी है इजाजत? अनुशासन भंग करने वाले विधायक रमेश मीणा पर मेहरबानी क्यों?
राजस्थान : नियमानुसार विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ सदन के अंदर या बाहर विपरीत टिप्पणी करना अवमानना की श्रेणी में शुमार है । कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक रमेश मीणा ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के क्रियाकलापों पर विपरीत टिप्पणी करते हुए उन पर एससी, एसटी और अल्पसंख्यक विधायकों के साथ पक्षपात बरतने का आरोप लगाया है । विधानसभा नियमावली के अनुसार इस तरह का आरोप लगाना स्पष्टतः अध्यक्ष पद की अवमानना है ।
देश की अनेक विधानसभाओ ने कतिपय समाचार पत्रों के खिलाफ अध्यक्ष के आचरण पर टिप्पणी करने पर उनके खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया । इसी प्रकार पश्चिम बंगाल के एक विधायक ने अध्यक्ष के खिलाफ सार्वजनिक टिप्पणी की थी । इस पर अध्यक्ष ने उसे बर्खास्त करने का हुक्म सुनाया । बाद सर्वोच्च न्यायालय के दखल पर विधायक को राहत मिली ।
विधायक रमेश मीणा ने मीडिया के समक्ष विधानसभा अध्यक्ष पर पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यक विधायकों के प्रति भेदभाव बरतने का आरोप लगाया । मीणा का यह कृत्य विधानसभा के नियमो के खिलाफ तो है ही, इसके अलावा पार्टी अनुशासन के विपरीत है । जब बगावत करके सचिन पायलट अपने समर्थित 18 विधायको के साथ मानेसर गए थे तब पार्टी ने अनुशासन का सहारा लेते हुए सचिन का उप मुख्यमंत्री पद और रमेश मीणा व विश्वेन्द्र सिंह से मंत्री पद छीन लिया था ।
उसी तर्ज पर रमेश मीणा, वेदप्रकाश सोलंकी तथा मुरारी मीणा ने विधानसभा अध्यक्ष की तौहीन करने के अलावा पार्टी के अनुशासन को सरे आम ध्वस्त किया है । लेकिन पार्टी ने इन विधायको के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के बजाय इनकी मनुहार करने में जुटी हुई है । सार्वजनिक रूप से विधानसभा अध्यक्ष व पार्टी नेतृत्व को चुनोती देकर बहुत बड़ा अपराध किया है । कायदे से पार्टी मुख्य सचेतक, पार्टी आलाकमान, अजय माकन, राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी आदि को अनुशासन खण्डित करने वाले विधायको के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए ।
ध्यान होगा कि भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी ने विधानसभा अध्यक्ष की रूलिंग को नही माना तो उन्हें पूरे दिन के लिए सदन से निलंबित किया गया था । अंत मे भाजपा उप मुख्य सचेतक राजेन्द्र राठौड़ द्वारा माफी मांगने के बाद ही यह प्रकरण समाप्त हुआ । विधायक रमेश मीणा द्वारा सदन व सदन के बाहर अध्यक्ष पर विपरीत टिप्पणी की गई और पार्टी अनुशासन को भंग किया गया । फिर उनके खिलाफ कार्रवाई करने से परहेज क्यो ?