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पितरों की तिथि भूल जाने पर उनकी आत्म शांति के लिए ऐसे करें श्राद्ध
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का अत्यधिक महत्त्व है. इन दिनों में मृत परिजनों का तिथि के हिसाब से लोग पितरों का श्राद्ध करते हैं. पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध कर्म और पिंडदान आदि किया जाता है. कई पितृ ऐसे होते हैं जिनकी तिथि या तो भूल जाते हैं या फिर याद नहीं होती, तो उनका श्राद्ध सर्व पितृ आमावस्या के दिन किया जाता है. धर्म शास्त्रों में सुहागिन महिलाओं, बच्चे और साधुओं के लिए खास तिथियों का जिक्र किया गया है. इन तिथियों पर इन मृतक लोगों का श्राद्ध किया जा सकता है।
पितरों की तिथि भूल जाने पर इस दिन करें श्राद्ध
पितृपक्ष की नवमी तिथि को उन महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है, जो सुहागिन हो और आप उनकी तिथि भूल चुके हैं. नवमी तिथि 30 सितंबर को है.
अगर बच्चों की मृत्यु की तिथि मालूम न हो तो श्राद्ध के दिनों में पितृ पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर किया जा सकता है. इस बार त्रयोदशी तिथि 4 अक्टूबर को है.
साधुओं या सन्यासियों की मृत्यु तिथि भूल जाने पर उनका श्राद्ध एकादशी के दिन किया जा सकता है. पितृपक्ष में इस बार एकादशी 2 अक्टूबर को मनाई जाएगी.
कौन कर सकता है श्राद्ध
धर्म शास्त्रों के अनुसार पितरों का श्राद्ध कर्म करने का पहला अधिकार बड़े पुत्र को होता है.
अगर बेटे की शादी हो जाती है तो वह अपनी पत्नी के साथ मिलकर श्राद्ध तर्पण कर सकता है.
बड़े बेटे के जीवित न होने की स्थिति में छोटा बेटा पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म कर सकता है.
अगर पुत्र जीवित नहीं है तो ऐसी स्थिति में पोता (बेटे का पुत्र) श्राद्ध कर्म कर सकता है.
घर में बेटा न होने पर उनके भाई-भतीजे श्राद्ध कर्म कर सकते हैं.
अगर व्यक्ति के केवल बेटियां ही हैं, तो ऐसी स्थिति में नियमानुसार, बेटी का बेटा यानी नवासा श्राद्ध कर्म कर सकता है.