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Balrampur: सभी कार्यों को सिद्ध करती हैं मां पाटेश्वरी
भारत-नेपाल सीमा से कुछ दूरी पर स्थित बलरामपुर जिले के तुलसीपुर नगर में स्थापित है, मां दुर्गा का यह भव्य मंदिर। पाटन देवी के नाम से मशहूर यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है।
जानिए इतिहास
धार्मिक मान्यता के अनुसार, यहां माता सती का बायां स्कंध पट सहित गिरा था। देवी भागवत, स्कंद पुराण, कलिका पुराण और शिव पुराण में इस मंदिर का जिक्र है। जगतजननी माता के इस मंदिर का अलौकिक इतिहास रहा है और युगों से ऋषि-मुनियों के तप के साक्षी रहे इस स्थल की अपनी गौरव गाथा है।
परशुराम ने कर्ण को दी थी दीक्षा
नाथ संप्रदाय का इस मंदिर में पंचमी तिथि को नेपाल से नाथ संप्रदाय के पुजारी आते हैं और दशमी तक मां की पूजा करते हैं। मंदिर के अंदर एक कुंड भी है। मान्यता है कि द्वापर युग में सूर्यपुत्र महारथी कर्ण ने इस कुंड में स्नान करने के बाद परशुराम से दिव्यास्त्रों की दीक्षा ली थी। मान्यता है कि इस कुंड में स्नान के बाद कुष्ठ और चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
योगपीठ भी है यह मंदिर
इस मंदिर का इतिहास बहुत व्यापक है। यह मंदिर शक्तिपीठ के साथ ही साथ योगपीठ भी है। यहां पर खण्डित मां सती का बांया स्कन्द पाटम्बर समेत आकर गिरा था और माता सीता का पातालगमन भी यहीं से हुआ था। यहां के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है। मंदिर के बाहर मां की मूर्ति के साथ-साथ नौ देवियों की प्रतिमा भी विद्यमान हैं।
गुरु गोरखनाथ को यहीं प्राप्त हुई थी सिद्धि
मान्यताओं के अनुसार गुरु गोरखनाथ और गुरु रत्ननाथ (नेपाल के निवासी) को सिद्धि यहीं प्राप्त हुई थी। साथ ही भगवान शिव के कहने पर गुरु गोरखनाथ ने सिद्ध शक्तिपीठ की स्थापना की थी। इसका उल्लेख शिलालेख में मिलता है।
नवरात्रि में जुटती है श्रद्धालुओं की भारी भीड़
नवरात्रि के पावन अवसर पर इस शक्तिपीठ पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। माता से जो भी मुरादें मांगी जाय। मां उसे पूरा करती है। नवरात्रि में इस स्थल पर मेले का आयोजन होता है। जिसे देखने न केवल भारत बल्कि नेपाल के भी श्रद्धालु आते हैं।