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छठ महापर्व की आभा से बिहार और पूर्वांचल के गांव-गांव समेत दुनिया के कई शहर प्रकाशित हो रहे हैं। वहीं, दिल्ली-एनसीआर की चमक फीकी पड़ गई है। सड़के बिरान और फैक्ट्रियां खालीं पड़ी हैं। रेहड़ी-पटरी वाले नदारद हैं। मुझे यह नजारा यहां पहली बार देखने को नहीं मिल रहा है। बीते 15 साल में जब भी मैं छठ पर घर नहीं गया ऐसा ही मंजर मुझे देखने को मिला है। वहीं, दूसरी ओर बस स्टैंड से रेलवे स्टेशन तक पांव रखने की जगह नहीं है। दिवाली से पहले से लेकर अब तक लाखों की संख्या में बिहारी और पूर्वांचली बड़ा-बड़ा बैग लिए किसी भी तरह ट्रेन की अंदर दाखिल होने की जद्दोजहद करते, टीटी से विनती करते, साहब एक टिकट दे दों ना, खड़े होने की जगह चाहिए, हम चले जाएंगे...छठ पर्व है न!
जानवारों की तरह बस-ट्रेन की बौगियों में भर-भर कर घर जाने को मजबूर बिहारियों की तस्वीर सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रेम मीडिया में सुर्खियां बटोर रही हैं। कई जगह इसका माखौल भी उड़ाया जा रहा है, लेकिन जो हंस रहे हैं उन्हें क्या पता कि यह छठ महापर्व के प्रति आस्था का सैलाब ही है कि तमाम परेशानी, कष्ट के बावजूद इसमें शामिल होना प्रत्येक बिहारी और पूर्वांचली का सपना होता है। एक बिहारी से पूछों तो शायद उसे वह अपना जन्मदिन मनाना भूल जाएं लेकिन छठ पर्व कब है उसे याद जरूर होगा। छठ पर्व का इंतजार पूरी साल वह उसी शिद्दत से करता है जैसे उसे दुनिया का सबसे बड़ा खजाना मिलने वाला है।
इस महापर्व की महिमा ही कह लें कि जिस बिहार में जात-पात लोगों के नस में कूट-कूट कर भरा है उसी बिहार में छठ पर्व के समय न जात-पात और न ही अमीर-गरीब का भेद देखने को मिलता है। एक बात और, जिसने भी छठ मैया को अपनाया, वो उनके प्रेम और आस्था से सबकुछ पा लिया। जब आस्था और विश्वास इस कदर हो तो फिर क्या देश और क्या विदेश? भारत से दूर जाकर बसने वाले लोग भी आज छठ पर्व को धूमधाम से मना रहे हैं।
आखिर, क्यों जब बीते दो दशक में पूरी दुनिया बदल गई है? कंम्प्यूटर और मोबाइल क्रांति ने लोगों की सोच से लेकर जीने के तरीके में बड़ा बदलाव ला दिया, लेकिन छठ महापर्व के प्रति आस्था की डोर में जरा भी कमी नहीं आई? आम से खास के बीच इस महापर्व को लेकर आस्था, श्रद्धा, विश्वास और प्रेम बढ़ता ही जा रहा है। और हां, इसके लिए कोई आडंबर या प्रचार तंत्र का भी सहारा नहीं लेना पड़ रहा रहा। तो भैया इसकी वजह यह है कि शाश्वत, अविनाशी, सनातन,कालातीत, अखीन, अच्युत, अनंत, अनाशी और चिरस्थाई सर्वशक्तिमान का कलयुगी स्वरूप ही छठ महापर्व है।
भौतिकवादी इस दौर में बनावटी चमक-दमक चंद घड़ी के मेहमान है लेकिन जो चिरस्थाई है उसके सामने सभी फीके हैं। छठ महापर्व अखीन के भांति चिरन्तन है। यह हम सभी का सौभाग्य है कि कलयुग में भी इस महापर्व को मनाने और पूजने का अवसर मिल रहा है। छठ महापर्व में हम सभी खुली आंखों से प्रकाश पूंज कमलबंधु भास्कर को देख पा रहे हैं।
छठ की महिमा में एक और बताता चाहूंगा, शायद आप सभी ने अनुभव किया है या नहीं कि कुदरत भी इस महापर्व का स्वागत बांहे फैलाकर करती है। छठ आते हैं प्रकृति की छटा बदल जाती है। वतावरण में हल्की ठंड अलग तरह की ताजगी इस बात का प्रमाण है कि प्रकृति भी इस माहापर्व के स्वागत में अपनी ओर से कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती। इस तरह के बदलाव शायद दूसरे पर्व में देखने को न मिले। छठ पर्व की महत्ता ही है कि यह बिहार और पूर्वांचल से निकलकर देश-विदेश तक पहुंच गई है। भौगोलिक बदलाव का इस महापर्व पर कोई असर नहीं है।
(चार दिनों तक चलने वाले छठ महापर्व की आज शुरुआत नहाय-खाय से हो गई है। सभी छठ व्रतियों को मेरा प्रणाम!)
जय छठी मैया!