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कोरोना महामारी या संयोग, हालात भयानक होंगे या मिलेगी राहत?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब गुरु और केतु का समीकरण धनु राशि में बनता है तो किसी ना किसी प्रकार से बीमारियों का संक्रमण इस काल में बढ़ता है जिससे जान माल की काफी क्षति होती है। केतु और गुरु के इस युति की पुनरावृत्ति 129 वर्षों के बाद होती है। इस युति में एक विशेष कारण यह था कि जब भी केतु और गुरु का आपसी संबध धनु राशि में बना तो उसका जो समय था वह बहतु छोटा होता था।
कुछ महीने या कुछ दिन परंतु 2019 में जब यह गुरु केतु का समीकरण बना 5 नवबंर 2019 से प्रारभं होकर 24 सितबंर 2020 तक चला जो कि बहुत लंबा समय था और उस पर एक विपरीत कारण यह कि 25 जनवरी 2020 तक इस पर शनि महराज ने भी संबंध बनाए रखा और इस समीकरण को एक खतरनाक रूप दिया।
इसके बाद साल 2021 में एक बार फिर से षटग्रही योग 9 से 11 फरवरी के मध्य बना जिससे यह निश्चित था कि आने वाले समय में स्थितियां गंभीर होंगी, प्राकृतिक आपदा, जनहानि, वैश्विक महामारी की संभावना प्रबल बनती दिखाई दे रही थी।
इसके बाद स्थितियां भी गंभीर होती गयी, भूकंप, ग्लेशियर का टूटना साथ ही वैश्विक महामारी कोरोना ने फिर से पैर पसारने शुरू कर दिए, अब एकबार फिर से विश्व के साथ हमारे देश में कोरोना विकराल रूप धारण कर रहा है ऐसे में हम फिर से संवत्सर कुंडली के माध्यम से आगे का भविष्य जानने की कोशिश करेंगे
चैत्र प्रतिपदा 13 अप्रैल 2021 संवत्सर कुंडली में वृषभ लग्न उदय हो रहा है जोकि हमारे देश का लग्न भी है वहां पर राहु रोहिणी नक्षत्र में स्थित है,रोहिणी नक्षत्र पर जब भी शनि या राहु का गोचर होता है तो यह हमारे देश एवं पूरे विश्व के लिए घातक और संकट का कारण होता है और साथ में मंगल की स्थिति इसे विस्फोटक बना रही है। यहां पर यह भी बताना है कि संवत्सर के राजा और मंत्री दोनों मंगल ही हैं तो मंगल और राहु की युति और राजा और मंत्री होना अच्छे संकेत नहीं हैं।
वायरस के लिए हम केतु एवं बुध और इनके नक्षत्रों को ही लेते हैं। यहां पर केतु ज्येष्ठा नक्षत्र में वृश्चिक राशि में स्थित है जिस पर मंगल की दृष्टि है जो इसे और खतरनाक स्वरूप प्रदान कर रही है। इसके साथ ही साथ सूर्य चंद्रमा एवं बुद्ध तीनों ही रेवती नक्षत्र में स्थित हैं। ऐसी स्थिति में अभी तो कोविड से इस वर्ष पूर्ण रूप से छुटकारा मिलते हुए नहीं दिखाई दे रहा है,आगे आने वाले अगले दो माह भारत पर भारी पड़ सकते हैं,विश्व पटल पर भारत की छवि भी कमजोर होगी,देश में आंतरिक त्राहिमाम रहेगा, आम जनों को बहुत सावधानी के साथ रहना होगा,जून के अंत में इसके रौद्र रूप में कुछ कमी देखने को मिल सकती है.
सन 1918 में स्पैनिश फ्लू नाम से एक महामारी फैली थी जिसकी शुरुआत स्पेन से हुई थी. इस महामारी से दुनिया में करोड़ों लोग संक्रमित हुए थे. उस समय भी गुरु-केतु का योग बना हुआ था. सन 1991 में ऑस्ट्रेलिया में माइकल एंगल नाम का बड़ा कम्प्यूटर वायरस सामने आया था जिसने इंटरनेट और कम्यूटर फील्ड में वैश्विक स्तर पर बड़े नुकसान किये थे और उस समय भी गोचर में गुरु-केतु का योग बना हुआ. सन 2005 में एच-5 एन-1 नाम से एक बर्ड फ्लू फैला था और उस समय में भी गोचर में गुरु-केतु का योग बना हुआ था. ऐसे में जब भी गुरु-केतु का योग बनता है उस समय में बड़े संक्रामक रोग और महामारियां सामने आती हैं. 2005 में जब बृहस्पति-केतु योग के दौरान बर्ड फ्लू सामने आया था तब गुरु-केतु का योग पृथ्वी तत्व राशि में होने से यह एक सीमित एरिया में ही फैला था जबकि चार नवम्बर को गुरु-केतु का योग अग्नि तत्व राशि (धनु) में बना है जिस कारण कोरोना वायरस आग की गति से पूरे विश्वभर में फैलता जा रहा है.
पं0 गौरव दीक्षित शास्त्री सोरों जी
07452961234