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गणेशचतुर्थी, भूलकर भी न करें चन्द्रदर्शन, जानते है क्यों?

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12 Sep 2018 2:37 AM GMT
गणेशचतुर्थी, भूलकर भी न करें चन्द्रदर्शन, जानते है क्यों?
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यह भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को किया जाता है। जो इस वर्ष गुरुवार 13 सितम्बर 2018 को पड़ रही है। इस दिन गणेश जी का मध्याह्न मे जन्म हुआ था, अतः इसमे मध्याह्न व्यापिनी तिथि ले जाती है। व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करके

'मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायकपूजनमहं करिष्ये'

से संकल्प करके 'स्वस्तिक' मण्डल पर प्रत्यक्ष अथवा सुवर्णादि निर्मित मूर्ति स्थापन करके पुष्पार्पणपर्यन्त पूजन करे। भगवान गणेश की पूजा में २१ दूर्वा दल का प्रयोग किया जाता है। उनके दस नामों से दो-दो दूर्वा दल चढ़ाया जाता है और अंतिम दूर्वा को वरदगणेश को अर्पित किया जाता है। ये दस नाम निम्नलिखित हैं- गणाधिप, उमापुत्र, अघनाशक, विनायक, ईशपुत्र, सर्वसिद्धिप्रद, एकदन्त, इभवक्त्र, मूषकवाहन, कुमारगुरु।

उसके बाद करके धूप, दीपादि से शेष उपचार सम्पन्न करे। अन्त में घृतपाचित २१ मोदक अर्पण करके

' विघ्नानि नाशमायान्तु सर्वाणि सुरनायक।

कार्यं मे सिद्धिमायातु पूजिते त्वयि धातरि।।'

से प्रार्थना करे और मोदकादि वितरण करके एक बार भोजन करे।

इस दिन रात्रि मे चन्द्र दर्शन करने से मिथ्या कलंक लगता है। जिसकी कथा इस प्रकार है- एक दिन गणेश जी इसी तिथि को स्वेच्छावश कहीं जा रहे थे, दैवयोग से उनका पैर कीचड़ े में कहीं फिसल गया। इस घटना पर चन्द्र देव हँस पड़े गणेश जी ने लीलार्थ क्रुद्ध होकर चन्द्रमा को शाप दे दिया कि जो आज के दिन तुम्हारा दर्शन करेगा उसे मिथ्या कलंक लगेगा। अतः इसमे दिन चन्द्र दर्शन नही करना चाहिये। यदि कदाचिद् देख ले तो उनसे ईंटा फेंककर किसी से गाली सुननी चाहिये। ऐसा करने से उस दोष की शान्ति हो जाती है, ऐसा पुराणों मे लिखा है।

" तद्दि इष्टकाप्रक्षेपादिना कस्माच्चिद् गालीग्रहणादि कुर्यात् तेन तद्दोष शान्तिरित्युक्तं पुराणान्तरे, इति"(वंशीधरी)

( ध्यान रहे, ईंटा इस प्रकार फेंके जिससे किसी को चोट न लगे, अन्यथा दोष की दूनी वृद्धि हो जाती है)

कलंक निवारण हेतु दूसरी विधि स्यमन्तक मणि की कथा श्रवण करें। कथा इस प्रकार है- श्रीकृष्ण की द्वारा पुरी में सत्राजित् ने सूर्य की उपासना से सूर्य समान प्रकाशवाली और प्रतिदिन आठ भार सुवर्ण देने वाली 'स्यमन्तक' मणि प्राप्त की थी। एक बार उसे संदेह हुआ कि शायद श्रीकृष्ण इसे छीन लेगें। यह सोचकर उसने वह मणि अपने भाई प्रसेन को पहना दी। दैवयोग से वन मे शिकार के लिए गये हुए प्रसेन को सिंह खा गया और सिंह से वह मणि 'जाम्बवान' छीन ले गये। इससे श्रीकृष्ण पर यर कलंक लग गया कि 'मणि के लोभ से उन्होने प्रसेन को मार डाला।' अन्तर्यामी श्रीकृष्ण जाम्बवान की गुहा में गये और २१ दिन तक घोर युद्ध करके उनकी पुत्री जाम्बवती को तथा स्यमन्तक मणि को ले आये। यह देख कर सत्राजित् ने वह मणि उन्हीं को अर्पण कर दी। कलंक दूर हो गया।

कलंक निवारण हेतु तीसरी विधि मे निम्न मंत्र का का ११ पाठ करें-

सिंह: प्रसेनमवधीतसिंहो जाम्बवता हत:।

सुकुमारकुमारोदीस्तवह्येष स्यमन्तक:।।

ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र लब्धस्वर्णपदक, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,

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