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प्रथम पूज्य गणेश जी दूर करेंगे जीवन के सभी संकट और क्लेश पूरे होंगे सभी अभिष्ट मनोरथ
नारद पुराण से उद्धरित प्रथम पूज्य श्री गणेशजी का लोकप्रिय संकटनाशन स्तोत्र, मुनि श्रेष्ठ श्री नारद जी द्वारा कहा गया है। इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति के जीवन के संकट मिट जाते हैं। अतः इस स्तोत्र को श्री संकटनाशन स्तोत्र अथवा सङ्कटनाशन गणपति स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है।
बुधवार का दिन प्रथम पूज्य भगवान गणेशजी को समर्पित होता है. इस दिन भगवान गणेश की पूजा का विधान और मान्यता है कि भगवान गणेश जी को शुभ फलदाता माना जाता है. मान्यता है कि प्रत्येक बुधवार को गणपति का श्रद्धा से पूजन करने से घर की नकारात्मकता दूर होती है और शुभता आती है. इसके अलावा कुंडली में बुध की स्थिति मजबूत होती है. गणेशजी को बुद्धि और वाणी का अधिपति देवता माना गया है गणेश जी की पूजा से केतु नामक ग्रह के अशुभ प्रभाव भी समाप्त होते है और शुभता प्राप्त होती है।
यदि आप भी गणपति की कृपा के पात्र बनना चाहते हैं तो नियमित रूप से संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करें. ये पाठ भगवान गणेश को अति प्रिय है. इसे करने से सभी दुखों का अंत होता है और बिगड़े काम भी बनने लगते हैं. यदि आप रोजाना नहीं कर सकते तो सिर्फ बुधवार के दिन ही इसे 11 बार पढ़ें. इस पाठ को पढ़ने से पूर्व भगवान गणेश को सिंदूर, घी का दीपक, अक्षत, पुष्प, दूर्वा और नैवेद्य अर्पित करें. फिर मन में उनका ध्यान करने के बाद इस पाठ को करे ।
संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करके पाएं जीवन में सुख-समृद्धि -
प्रणम्य शिरसा देवं गौरी
विनायकम् ।
भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ॥1॥
प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।
तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ॥2॥
लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ॥3॥
नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ॥4॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥
जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।
संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ॥7॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8॥
॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
संकटनाशन गणेश स्तोत्रम् पाठ का अर्थ
इस स्त्रोत में नारद जी, श्री गणेश जी के अर्थ स्वरुप का प्रतिपादन करते हैं. नारद जी कहते हैं कि सभी भक्त पार्वती नन्दन श्री गणेशजी को सिर झुकाकर प्रणाम करें और फिर अपनी आयु , कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये इनका नित्यप्रति स्मरण करना चाहिए.
श्री गणपति जी के सर्वप्रथम वक्रतुण्ड, एकदन्त, कृष्ण पिंगाक्ष, गजवक्र, लम्बोदरं, छठा विकट, विघ्नराजेन्द्र, धूम्रवर्ण, भालचन्द्र, विनायक, गणपति तथा बारहवें स्वरुप नाम गजानन का स्मरण करना चाहिए. क्योंकि इन बारह नामों का जो मनुष्य प्रातः, मध्यान्ह और सांयकाल में पाठ करता है उसे किसी प्रकार के विध्न का भय नहीं रहता, श्री गणपति जी के इस प्रकार का स्मरण सब सिद्धियाँ प्रदान करने वाला होता है.
इससे विद्या चाहने वाले को विद्या, धन की कामना रखने वाले को धन, पुत्र की इच्छा रखने वाले को पुत्र तथा मौक्ष की इच्छा रखने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस गणपति स्तोत्र का जप छहः मास में इच्छित फल प्रदान करने वाला होता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो सकती है इस प्रकार जो व्यक्ति इस स्त्रोत को लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सब प्रकार की विद्या प्राप्त होती है।
पं अजय शुक्ल 9415009278