धर्म-कर्म

गरूड़ जी का संशय और राम नाम का प्रभाव

गरूड़ जी का संशय और राम नाम का प्रभाव
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गरूड़ जी ने नारद जी से पूछा "हे नारद जी ये कैसी माया है जो स्वयं नागों के राजाओं के भी

भगवान राम जी और अनुज लक्ष्मण जी को मेघनाथ ने नाग पाश में बाँध दिया ! नारद जी ने गरूड़ जी को बुलाने को कहा। ऐसा ही किया भी गया ! गरूड़ जी आए और प्रभू को भ्राता सहित नाग पाश से मुक्त किया ! लीला प्रारम्भ होती है ! गरूड़ जी मन ही मन आशंकित है "भगवान जी के भृकुटी विलास से जगत बनते और बिगड़ते है उन्हें क्या मेरी आवश्यकता हो सकती है साधारण नागों के पाश से मुक्त होने को ! अवश्य ही ये मेरे स्वामी नही ये कोई भी हो सकते है किंतु नारायण नही !

किंतु क्या ब्रहम्मा जी और शिव जी भी नही पहचान पाए ! ये कैसे सम्भव है?

ये कैसी माया है ?"

गरूड़ जी ने नारद जी से पूछा "हे नारद जी ये कैसी माया है जो स्वयं नागों के राजाओं के भी राजा शेष नाग की शय्या पर निवास करते है जिनका छत्र सहस्त्र फ़नों वाले नाग है क्या उनको साधारण सा नाग पाश बाँध सकता है? ये कैसी माया है नारद जी ! मेरा मन आशंकित है क्या राम सचमूच नारायण ही है ?"

नारद जी "हे गरूड़ देव ये माया तो मेरी समझ से भी परे है ! किंतु मुझे विश्वास है की राम जी श्री हरी ही है !"

गरूड़ जी "विश्वास का आधार तर्क होता है मुनिवर किंतु अभी तो सभी तर्क अतार्किक लग रहे है ! मेरी दुविधा का समाधान कीजिए !"

नारद जी "मैं अवश्य कर देता है पक्षिराज किंतु सत्य यही है आपके प्रश्नों का उत्तर मेरे पास नही आप ब्रहमा जी या स्वयं महादेव की शरण में जाइए !"

गरूड़ जी पहले ब्रहमा जी के पास गए किंतु वो केवल मुस्कुराते रहे और केवल इतना बोले "हे वैष्णव शिरोमणि ही पक्षीराज आपके प्रश्न का उत्तर महादेव के पास इंतज़ार कर रहा है ! आप अविलम्ब कैलाशपति के दर्शन को जाइए !"

गरूड़ जी "जो आज्ञा" कह कर तुरंत कैलाश की ओर चल दिए !

शिव जी के दर्शन मिलते ही दण्डवत प्रणाम किया और कुछ न बोले !

भला सर्व अंतर्यामी को कुछ कहने की क्या आवश्यकता थी ! शंकर जी मुस्कुराते हुए गरूड़ जी से बोले "हे साधु क्या आप काग भुसुंडि जी को बुला के ला सकते है ?"

गरूड़ जी बोले "जी प्रभू आपकी आज्ञा शिरोधार्य !" और गरूड़ जी चल दिए!

हिमालय की गोद में एक निर्जन वन में काग कभुशुंडी को गरूड़ जी ने देखा जैसे ही वो थोड़ा नज़दीक गए उन्होंने देखा की समस्त वृक्ष पक्षी पशु नृत्य कर रहे है अनेको साधु भी नृत्य कर रहे है और कागभुषण्डि जी नाच नाच के ताली बजा बजा कर भजन कर रहे है।

"राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम रामराम राम

गरूड़ जी मतवाले से हो गए वो ज़ोर ज़ोर से नाचने लगे आँखों से आंसू बहने लगे ज़ोर ज़ोर की चिल्लाने लगे राम राम राम राम राम राम राम राम राम

वो बिलख बिलख कर रोने लगे ! गला इतना रुंध गया की राम भी न बोला जाए!

बिना कुछ समझाए बिना किसी सिद्धांत को समझे गरूड़ जी सब समझ गए ! वो समझ गए की जिनके नाम में ऐसा प्रभाव हो वो भला हरि के अतिरिक्त कौन हो सकते है !

कितना अभागा हूँ मैं जो अपने स्वामी को नही पहचान पाया! धिक्कार है मुझ पर !

ग्लानि से भरी आत्मा के साथ वो शंकर जी के पास पहुंचे और पश्चाताप का साधन पूछा !

शिव बोले "हे गरूड़ जी हे हरि के प्रिय सखा जिनकी माया का पार मैं, ब्रहम्मा, दुर्गा, लक्ष्मी आदि भी नही लगा सकते उनका आपको विस्मय में डाल देना कोई अचरज नहीं ! माया पति की माया में मोहित होकर ही तो ये सब प्रपंच हो रहा है ! किंतु फिर भी यदि कोई ग्लानि शेष है तो राम का नाम जपो ये समस्त कर्मो को धोने का सामर्थ्य रखता है काल चक्र को काटने वाला और महा माया की माया से छुटकारा दिलाने वाला है !"


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