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Dussehra: कैसे किया भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का अंत? जानिए- दशानन से जुड़े वो बड़े राज जो आपको अब तक नही मालूम
शारदीय नवरात्रि की दशमी तिथि को दशहरा यानी विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार, बुराई पर अच्छाई, अन्याय पर न्याय और असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। दशहरा का मतलब है दस बुराईयों को हराने का संकल्प करने का दिन। आज ही के दिन मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन भी किया जाता है। राजाधिराज लंकापति रावण को दशानन भी कहते हैं।
रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ब्रह्म ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था। उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था। उसके पास एक ऐसा विमान था, जो अन्य किसी के पास नहीं था। इस सभी के कारण सभी उससे भयभीत रहते थे।
रावण के दस सिर होने की चर्चा रामचरितमानस में आती है। वह कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिए चला था तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते थे। इस तरह दसवें दिन अर्थात् शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का वध हुआ। इसीलिए दशमी के दिन रावण दहन किया जाता है।
भगवान राम की लंकापति रावण पर विजय
ऐसी मान्यता है कि रावण ने अमृत्व प्राप्ति के उद्देश्य से भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या कर वरदान माँगा, लेकिन ब्रह्मा ने उसके इस वरदान को न मानते हुए कहा कि तुम्हारा जीवन नाभि में स्थित रहेगा। रावण की अजर-अमर रहने की इच्छा रह ही गई।
यही कारण था कि जब भगवान राम से रावण का युद्ध चल रहा था तो रावण और उसकी सेना राम पर भारी पड़ने लगे थे। ऐसे में विभीषण ने राम को यह राज बताया कि रावण का जीवन उसकी नाभि में है। नाभि में ही अमृत है। तब राम ने रावण की नाभि में तीर मारा और रावण मारा गया।
रामायण की कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के आठवें अवतार, भगवान श्रीराम ने माता सीता के अपहरण के बाद निशाचरों के विनाश का संकल्प लिया। उन्होंने अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ एक विशाल वानर सेना को साथ लिया और महाबलशाली लंकापति रावण को मौत के घाट उतार दिया।
दशानन से जुड़े वो बड़े राज जो आपको अब तक नही मालूम
रावण के बारे में मान्यता है कि उसने लोकों पर विजय प्राप्त की थी, लेकिन वह भगवान श्री राम के द्वारा वध किये जाने से पहले अपने जीवन में तीन बड़े योद्धाओं राजा बालि, राजा सहस्त्रबाहु और राजा बलि से हार का स्वाद चख चुका था.
रावण भगवान शिव (Lord Shiva) का परम भक्त था और मनचाहा वरदान पाने के लिए उनकी कठिन से कठिन तपस्या करता था. रावण को वेद, तंत्र-मंत्र, समेत तमाम तरह की सिद्धियों का ज्ञान था. उसने अपने जप-तप के बल से कई अमोघ शक्तियां हासिल की थीं.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार लंका का राजा रावण परमपिता ब्रह्मा जी का वंशज था. दरअसल, ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे पुलस्त्य ऋषि और उनके पुत्र हुए विश्रवा, जिनका विवाह राक्षसकुल की कन्या कैकसी से हुआ था. जिनसे रावण, कुंभकर्ण, विभीषण का जन्म हुआ.
रावण का अभिमान ही उसकी मृत्यु का बड़ा कारण बना. विश्वविजेता बनने के लिए रावण ने भगवान ब्रह्मा (Lord Brahma) को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा, जिसके बाद उसने अपनी शक्तियों के अभिमान में आकर ब्रह्माजी से कहा कि उसका वध वानर और मनुष्य के अलावा कोई न कर सके. वर मांगते समय उसे लगा कि जिस रावण से देवता डरते हों, उसका भला वानर और मानव जैसे तुच्छ प्राणी क्या बिगाड़ पाएंगे. यही बड़ी गलती उसके लिए काल साबित हुई और अंत में भगवान श्री राम के द्वारा उसका वध हुआ.
रावण का वध करने के कुछ दिन पहले भगवान श्रीराम ने आदिशक्ति मां दुर्गा की पूजा की और फिर उनसे आशीर्वाद मिलने के बाद, दशमी तिथि को रावण का अंत कर दिया। रावण पर श्रीराम की इस विजय को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि तब से हर साल भगवान श्रीराम की जीत और असुरों के विनाश की खुशी में दशहरा मनाया जाता है। दशहरे के दिन लोग आपस में राम जोहार करते हैं और गले मिलते हैं। नवरात्रि के साथ ही दशहरा मनाने की सबसे चर्चित और प्रमुख कथा, भगवान राम की, निशाचरों के राजा रावण पर विजय प्राप्ति की है।
महिषासुर का वध
दशहरा के बारे में दूसरी कथा यह है कि दशमी को ही मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का संहार किया था। कथा के अनुसार, अपार बलशाली राक्षस महिषासुर से देवलोक के देवता और पृथ्वीवासी मनुष्य, त्रस्त हो चुके थे। कहा जाता है कि घोर तप करने के बाद, महिषासुर ने भगवान से अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया और फिर लोगों को तबाह करने लगा।
इसके बाद देवों की दयनीय मांग पर भगवान विष्णु, ब्रह्मा जी और भगवान शिव ने मिलकर, देवी रूप में एक शक्ति को प्रकट किया, जिसे मां दुर्गा के नाम से जाना गया। मां दुर्गा और महिषासुर के बीच पूरे दस दिन तक युद्ध चला, और दसवें दिन, यानी कि दशमी तिथि को मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया।
जिसके बाद देवताओं ने इस खुशी के उपलक्ष्य में मां दुर्गा को वचन दिया और उस दिन को, उसके बाद से विजयादशमी के रूप में मनाया जाने लगा और लोग मां को तब से ही शक्ति के रूप में पूजने लगे।
चाहें महिषासुर का विनाश हो या फिर रावण का अंत, विजयादशमी का यह महापर्व हम सब को यही सीख देता है कि, बुराई चाहें कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, लेकिन अच्छाई के ऊपर कभी हावी नहीं हो सकती। अंत में जीत केवल अच्छाई की ही होती है।