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कार्य-सिद्धि हेतु गणेश शाबर मन्त्र
"ॐ गनपत वीर, भूखे मसान, जो फल माँगूँ, सो फल आन। गनपत देखे, गनपत के छत्र से बादशाह डरे। राजा के मुख से प्रजा डरे, हाथा चढ़े सिन्दूर। औलिया गौरी का पूत गनेश, गुग्गुल की धरुँ ढेरी, रिद्धि-सिद्धि गनपत धनेरी। जय गिरनार-पति। ॐ नमो स्वाहा।"
विधि-
सामग्रीः- धूप या गुग्गुल, दीपक, घी, सिन्दूर, बेसन का लड्डू। दिनः- बुधवार, गुरुवार या शनिवार। निर्दिष्ट वारों में यदि ग्रहण, पर्व, पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ-सिद्धि योग हो तो उत्तम। समयः- रात्रि 10 बजे। जप संख्या-125। अवधिः- 40 दिन।
किसी एकान्त स्थान में या देवालय में, जहाँ लोगों का आवागमन कम हो, भगवान् गणेश की षोडशोपचार से पूजा करे। घी का दीपक जलाकर, अपने सामने, एक फुट की ऊँचाई पर रखे। सिन्दूर और लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और प्रतिदिन 125 बार उक्त मन्त्र का जप करें। प्रतिदिन के प्रसाद को बच्चों में बाँट दे। चालीसवें दिन सवा सेर लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और मन्त्र का जप समाप्त होने पर तीन बालकों को भोजन कराकर उन्हें कुछ द्रव्य-दक्षिणा में दे। सिन्दूर को एक डिब्बी में सुरक्षित रखे। एक सप्ताह तक इस सिन्दूर को न छूए। उसके बाद जब कभी कोई कार्य या समस्या आ पड़े, तो सिन्दूर को सात बार उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर अपने माथे पर टीका लगाए। कार्य सफल होगा।
समुंद्र_योग:-
जन्म कुंडली मे द्वितीय भाव से आरम्भ करके लगातार बीच मे एक एक भाव छोड़ते हुए सभी ग्रह स्थित हो यानी 2 4 6 8 10 12 में सातों ग्रह स्थित हो तो समुन्द्र नामक योग बनता है
इस योग में जन्मा व्यक्ति बड़ी बड़ी कम्पनी में उच्च पद पर कार्य करता है यानी कम्पनियों में मुख्य भूमिका निभाने वाले कर्मचारि होता है,उसको जीवन मे तमाम सुख सुविधा, मान सम्मान,लग्जरी लाइफ प्राप्त होती है.
बड़े बड़े कॉरपोरेट जगत में उसकी तूती बोलती है ऐसा व्यक्ति अपने घर,समाज,क्षेत्र का नाम रोशन करने वाला होता है.
अपनी बुद्धिमत्ता धैर्य गुप्त युक्तियों से डूबती हुई कम्पनी को भी फायदे में ले आता ह व उसका वर्चस्व स्थापित करता है.
किसी भी प्रकार की समस्या समाधान के लिए पं. वेदप्रकाश पटैरिया शास्त्री जी (ज्योतिष विशेषज्ञ) जी से सीधे संपर्क करें = 9131735636