धर्म-कर्म

क्या ईश्वर है?

Shiv Kumar Mishra
4 Jun 2020 12:27 PM GMT
क्या ईश्वर है?
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ठीक ऐसै ही वो परम सत्य सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड मे कण-कण मे व्याप्त है, बिना कोई ध्वनि किये।

सुनील कुमार मिश्र

मनुष्यता के सामने यह सवाल प्रकृति के सृजन के साथ ही जन्म लेता है और आज भी उतना ही प्रासंगिक है। जो गणितय विधि के आधार पर सिर्फ मान लेते है कि ईश्वर है☛वो बड़ी भूल कर बैठते है। मात्र मान लेने से खोज की सारी संभावनाओं के कपाट बन्द हो जाते है और मनुष्य स्वयं के अंदर एक बड़ा विभाजन खुद खड़ा कर बैठता है। एक तल जो वास्तविक होता है और ईश्वरीय अनुभूति से अंजान और एक अंध आस्था का☛भीतर ही बड़ा टकराव उठ खड़ा होता है और मनुष्य अंधी आस्था की उत्तेजना से जीवन भर उस वास्तविक तल को दबाता रहता है।

दरअसल धर्म प्रकृति के प्राण तत्व का शुद्ध विज्ञान है । इसको खंडो मे समझ कर निष्कर्ष निकालेंगे। भूल कर बैठेगें, वैसी ही जैसे किसी उपन्यास का एक पन्ना पढकर अपनी राय व्यक्त कर देना। मेरी अपनी समझ मे ईश्वर ना आकार है ना ही निराकार, वो तो बस है। ठीक वैसा ही जैसे हम श्वास लेते है तो शरीर के यंत्र जब श्वास खीचते है तो प्रकृति बिना कोई ध्वनि किये शरीर को श्वास उपलब्ध करा देती है। बुद्धि को कोई आहट भी नही होती और प्राण शरीर मे गतिमान रहता है। ठीक ऐसै ही वो परम सत्य सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड मे कण-कण मे व्याप्त है, बिना कोई ध्वनि किये।

धर्मं आँख से उस विराट को देखने और जानने की प्रक्रिया बताता है। धर्म जगत ने मनुष्य के तीन शरीरों की चर्चा की है (विज्ञान भी अब इसको स्वीकारता है) 1. सूक्ष्म शरीर (जिसको प्राण या आत्मा कहा गया) 2. स्थूल शरीर (जो हमे दिखाई देता आकार रुप मे) 3. आभा मंडल जो स्थूल शरीर की सोच और बुद्धि के मुताबिक हर प्राणधारी जींव का अपना आभामंडल होता है। अब ऐसै यंत्र और कैमरे है जो आभा मंडल की तश्वीर खींच सकते है। परंतु सूक्ष्म शरीर को मनुष्य को आँख देख या छूँ पाने मे सक्षम नही हो पाई है वो बस "है"। यानी एक प्राणधारी जीव के तीन शरीर एक आकार, एक निराकार और एक शरीर जिसको ना देखा ना स्पर्श किया सिर्फ "है"। जो शब्दातीत है उसको आकार और निराकार के शब्दों मे बाँधा नही जा सकता। हाँ इस सूक्ष्म शरीर के दो मुख्य केंद्र है एक स्थूल शरीर (आकार रुप) और दूसरा आभा मंडल (निराकार रुप) जो मनुष्य जानने और समझ पाने मे सक्षम है। जो इन दो रूपो की चर्चा करते है, साफ है वो अभी सिर्फ बाहरी खोल मे ही उलझ कर अपने को आत्मतृप्त करने मे लगे है। ये दो शरीर मार्ग भर है उस सूक्ष्म शरीर तक की यात्रा के और मार्ग को ही मंजिल मान लेना भटकाव भर है।

एक बड़ी मजेदार बात है जिन्होने भी पाया☛वो शांत हो गये☛इतना ही लोग कह पाये कि वो अव्याख्य है और इस अनुभव का हस्तांतरण संभव ही नही है, इसीलिए खुद की ही खोज खुद का ही उत्तर होगी☛ये सिर्फ उस परम तत्व की तरफ इशारे है☛ खुद खोजे और स्व अनुभव करे वो आपमे भी उतना ही है जितना "बुद्ध, महावीर, नानक, कबीर" मे था ना रत्ती भर कम ना रत्ती भर ज्यादा...

#एक_ओंकार_सतनाम_ॐ

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