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कांवड़ यात्रा का महत्व

Anamika goel
7 Aug 2018 7:51 AM GMT
कांवड़ यात्रा का महत्व
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हर साल श्रावण मास में लाखो की तादात में लोग दूर दराज से आते है और अपने आस पास के स्थानों से गंगा जल भरते है , तत्पच्यात पदयात्रा कर अपनी अपनी जगहों को वापस लोट जाते है . इसी यात्रा को कांवड़ यात्रा बोला जाता है . फिर चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है,और शिव जी से अपनी और अपनों की सुख शांति की प्रार्थना की जाती है . कहने के लिए तो ये बस एक धार्मिक आयोजन मात्र है, लेकिन इसका सामाजिक और धार्मिक महत्व बहुत है .इसका सामाजिक सरोकार भी हैं। कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए हैं। पानी आम आदमी के साथ साथ पेड पौधों, पशु - पक्षियों, धरती में निवास करने वाले हजारो लाखों तरह के कीडे-मकोडों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक वस्तु है। उत्तर भारत की भौगोलिक स्थिति को देखें तो यहां के मैदानी इलाकों में मानव जीवन नदियों पर ही आश्रित है।


सामाजिक महत्व
नदियों से दूर-दराज रहने वाले लोगों को पानी का संचय करके रखना पड़ता है। हालांकि मानसून काफी हद तक इनकी आवश्यकता की पूर्ति कर देता है तदापि कई बार मानसून का भी भरोसा नहीं होता है। ऐसे में बारहमासी नदियों का ही आसरा होता है। और इसके लिए सदियों से मानव अपने इंजीनियरिंग कौशल से नदियों का पूर्ण उपयोग करने की चेस्टा करता हुआ कभी बांध तो कभी नहर तो कभी अन्य साधनों से नदियों के पानी को जल विहिन क्षेत्रों में ले जाने की कोशिश करता रहा है। लेकिन आबादी का दबाव और प्रकृति के साथ मानवीय व्यभिचार की बदौलत जल संकट बड़े रूप में उभर कर आया है।
धार्मिक महत्व
धार्मिक संदर्भ में कहें तो इंसान ने अपनी स्वार्थपरक नियति से शिव को रूष्ट किया है। कांवड यात्रा का आयोजन अति सुन्दर बात है। लेकिन शिव को प्रसन्न करने के लिए इन आयोजन में भागीदारी करने वालों को इसकी महत्ता भी समझनी होगी। प्रतीकात्मक तौर पर कांवड यात्रा का संदेश इतना भर है कि आप जीवनदायिनी नदियों के लोटे भर जल से जिस भगवान शिव का अभिषेक कर रहे हें वे शिव वास्तव में सृष्टि का ही दूसरा रूप हैं। धार्मिक आस्थाओं के साथ सामाजिक सरोकारों से रची कांवड यात्रा वास्तव में जल संचय की अहमियत को उजागर करती है। कांवड़ यात्रा की सार्थकता तभी है जब आप जल बचाकर और नदियों के पानी का उपयोग कर अपने खेत खलिहानों की सिंचाई करें और अपने निवास स्थान पर पशु पक्षियों और पर्यावरण को पानी उपलब्ध कराएं तो प्रकृति की तरह उदार शिव सहज ही प्रसन्न होंगे।

Anamika goel

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