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नई दिल्ली। इस साल 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाएगी. हिंदू धर्म में इस त्योहार का काफी महत्व है. माना जाता है कि इस दिन सूर्य भगवान मकर राशि में प्रवेश करते हैं।वही लोहड़ी का त्योहार आजकल देशभर में मनाया जाने लगा है, लेकिन उत्तरी भारत खासकर पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में मकर संक्रंति की पूर्व संध्या पर लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है. इस त्याहार को लोग नई फसल के उत्सव के रूप में मनाते हैं. पंजाब में तो इस दिन नववधू और बच्चे की पहले साल की लोहड़ी काफी खास होता है. लोहड़ी के रात में खुले स्थान पर लोग पवित्र जगह को चुनते हैं फिर वहां पर पवित्र अग्नि को जलाते हैं. फिर उसी पवित्र अग्नि को गोल घेरा बनाकर परिवार और आस-पास के लोग लोकगीत गाते हैं.
लोहड़ी के दिन इस पवित्र अग्नि का परिक्रमा करते हु्ए लोग धान के लावे के साथ खील, मक्का, गुड़, रेवड़ी और मूंगफली इत्यादि को पवित्र अग्नि को अर्पित करते हैं. लोहड़ी के त्योहार से कई दिन पहले से बच्चे लोहड़ी लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले को एक जगह पर जामा करते हैं. लोहड़ी के दिन इस जामा की गई लकड़ी और उपले को जलाई जाती है. जिसके बाद सभी लोग लोहड़ी का त्योहार मनाने के लिए पवित्र अग्नि के पास इकट्ठा होते हैं. इसके बाद अग्नि को अर्पित की गई चीजें को सभी में बांटी जाती है. लोहड़ी की परंपरा यह भी है कि घर वापस आते समय कुछ दहकते हुए कोयला को प्रसाद के रुप में ले आते हैं.
लोहड़ी त्योहार के पीछे बहुत प्रसिद्ध लोककथा है कि काफी साल पहले दो अनाथ लड़कियों को उनके चाचा ने पंजाब राज्य के शक्तिशाली सूबेदार को कृपापात्र बनने के लिए उन बच्चियों को सौंप दिया. वहां पर एक प्रसिद्ध डाकू दुल्ला भट्टी था. जब उसको यह बात पता चली तो उसने सूबेदार से उन दोनों लड़कियों को मुक्त करा लिया. फिर उसके बाद डाकू दुल्ला भट्टी ने बाप बनके दोनों अनाथ लड़कियों की कन्यादन किया।
इसके लिए दुल्ला भट्टी लकड़ी एकत्रित करके आग जलाई और फल मीठे की जगह रेवड़ी और मक्के जैसे चीजों का इस्तेमाल किया. उसी दिन से दुल्ला भट्टी की याद में लोहड़ी का त्योहार मनाया जाने लगा. ये नाम आज भी लोहड़ी के लोकगीत में लिया जाता है. दुल्ला भट्टी को पंजाब के लोग एक हीरो के रुप में याद करते हैं।