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Mahavir Jayanti 2018: जानिए भगवान महावीर के जीवन से जुड़ी खास बातें
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नई दिल्ली : आज महावीर स्वामी की जयंती है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती हर साल दुनिया भर में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। महावीर को 'वर्धमान', वीर', 'अतिवीर' और 'सन्मति' भी कहा जाता है।
जैन धर्म के अनुयायियों के लिए महावीर जयंती का विशेष महत्व है। यह उनके प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी जैन समुदाय का विस्तार है और सभी लोग साल भर इस दिन का इंतजार करते हैं। इस दिन जैन मंदिरों में महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है। इसके बाद मूर्ति को एक रथ पर बिठाकर जुलूस निकाला जाता है, जिसमें जैन धर्म के अनुयायी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
महावीर जयंती के मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने देशवासियों को बधाई दी है। अहिंसा, त्याग और तपस्या का संदेश देने वाले महावीर की जयंती ग्रीगोरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च या अप्रैल महीने में मनाई जाती है। वहीं, हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास के 13वें दिन महावीर ने जन्म लिया था।
महावीर का नाम बचपन में 'वर्धमान' था, उन्होंने 30 वर्ष की उम्र में राजमहल का सुख-वैभवपूर्ण जीवन त्याग कर तपोमय साधना का रास्ता अपना लिया। इन्होंने कठोर तप से सभी इच्छाओं और विकारों पर काबू पा लिया इसलिए वर्धमान अब 'महावीर' कहलाने लगे।
ज्ञान की प्राप्ति के बाद महवीर जन-जन के कल्याण और अभ्युदय के प्रयास में जुट गए। महावीर के तीन आधारभूत सिद्धांत हैं- अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त हैं। ये युवाओं को आज की भागमभाग और तनाव भरी जिंदगी में सुकून की राह दिखाते हैं।
जैन मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म बिहार के कुंडलपुर के शाही परिवार में हुआ था। महावीर की माता का नाम 'त्रिशला देवी' और पिता का नाम 'सिद्धार्थ' था। महावीर ने कलिंग के राजा की बेटी यशोदा से शादी भी की थी और विवाहोपरांत भगवान महावीर और यशोधरा ने एक बेटी प्रियदर्शना को जन्म दिया था। हालांकि दिगंबर सुमदाय की मान्यता है कि भगवान महावीर का विवाह नहीं हुआ था, वे ब्रह्मचारी थे।
दीक्षा लेने के बाद महावीर ने साढ़े 12 सालों तक कठोर तपस्या की। फिर वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे 'साल वृक्ष' के नीचे भगवान महावीर को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी। महावीर स्वामी का सबसे बड़ा सिद्धांत अहिंसा का है। उन्होंने अपने प्रत्येक अनुयायी के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना आवश्यक बताया है।