
जानिए कब है विजयादशमी? मनाने के प्रमुख चार कारण क्या है

ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शोध छात्र, ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र ने बताया कि आश्विन शुक्ल दशमी को श्रवण का संयोग होने से विजया दशमी होती है। ज्योतिर्निबंध मे लिखा है कि
" आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये।
स कालो विजयो ज्ञेय: सर्वकार्यार्थसिद्धये।."
आश्विन शुक्ल दशमी के सायंकाल में तारा उदय होने के समय "विजयकाल" रहता है।
वह सब कामों को सिद्ध करता है। आश्विन शुक्ल दशमी पूर्वविद्धा निषिद्ध परविद्धा शुद्ध और श्रवण युक्त सूर्योदय व्यापिनी सर्वश्रेष्ठ होती है। जिसमें अपराह्न काल में दशमी तिथि की प्रधानता होती है। पूर्व दिन तिथि नवमी गुरुवार को 20-36घट्यादि(दिन२:३२) तक नवमी है तथा इसके बाद दशमी आ जाती है जो अपराह्न काल के कुछ भाग मे है तथा इसी दिनश्रवण नक्षत्र भी है। द्वितीय दिन तिथि दशमी शुक्रवार को दशमी 25/49 घट्यादि (दिन 4:39) तक है तथा दशमी तिथि की अपराह्न काल में पूर्ण व्याप्ति तथा सम्पूर्ण विजय लक्षण (विजय मुहूर्त दिन 1:54 से दिन 2:40) में है।
" एकादशो मुहूर्तो यो विजयः परिकीर्तितः।
तस्मिन् सर्वैविधातव्या यात्रा विजयकांक्षिभि:।।(नवरात्रि प्रदीप)
अतः इस वचनानुसार 19 अक्टूबर 2018 को ही विजया दशमी मनानी चाहिए।
इस दिन अपराजिता का पूजन किया जाता है। उसके लिए अक्षतादि के अष्टदल मृत्तिका की मूर्ति स्थापन :ऊँ अपराजितायै नमः' इससे अपराजिता का, ( उसके दक्षिण भाग में) 'ऊँ क्रियाशक्त्यै नमः' इससे जया का , (उसके वाम भाग में) 'ऊँ उमायै नमः' इससे विजया का स्थापन करके आवाहनादि पूजन करे और' चारुणा मुख पद्मेन विचित्रकनकोज्वला।
जया देवि भवे भक्ता सर्व कामान् ददातु मे।।
काञ्चनेन विचित्रेण केयूरेण विभूषिता।
जयप्रदा महामाया शिवाभावितमानसा।।
विजया च महाभागा ददातु विजयं मम।
हारेण सुविचित्रेण भास्वत्कनकमेखला।
अपराजिता रुद्ररता करोतु विजयं मम।।'
इनसे जया-विजया और अपराजिता की प्रार्थना करके हरिद्रा से रँगे हुए वस्त्र में दूब और सरसों रखकर डोरा बनावें। फिर
' सदापराजिते यस्मात्त्वं लतासूत्तमा स्मृता।
सर्वकामार्थसिद्धयर्थं तस्मात्त्वां धारयाम्यहम्।।
इस मंत्र से उसे अभिमंत्रित करके-
' जयदे वरदे देवि दशम्यामपराजिते।
धारयामि भुजे दक्षे जयलाभाभिवृद्धये।।'
से उक्त डोरे को दाहिने हाथ में धारण करें।
हिन्दुओं के सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय त्योहारों में से एक दशहरा का भी त्योहार है। प्राचीन काल से मनाए जा रहे इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत, अन्याय पर न्याय की जीत और असत्य पर सत्य की जीत के रूप में मनाया जाता है।
अश्विन मास की नवरात्रि के साथ ही दशहरा यानी विजयादश्मी का त्योहार मनाने का प्रचलन है। लेकिन क्या आपको पता है कि ऐसा क्यों होता है? नवरात्रियों के बाद दशहरा मनाने के पीछे क्या कारण हैं? शास्त्रों और प्रचलित पौराणिक कथाओं की मानें तो इसके पीछे चार प्रमुख कारण हैं। ये कारण चार प्राचीन कथाओं के रूप में हैं।
1- भगवान राम की लंकापति रावण पर विजय
नवरात्रि के साथ ही दशहरा मनाने की सबसे चर्चित और प्रमुख कथा भगवान राम की निशाचरों के राजा रावण पर विजय की है। इस कथा का वर्णन महर्षि वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण में विस्तार से की है। रामायण की कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान राम ने मां सीता के अपहरण के फलस्वरूप निशाचरों के विनाश का संकल्प लिया।
उन्होंने अपने अनुज लक्ष्मण के साथ एक विशाल वानर सेना को साथ लिया और महाबलशाली लंकापति रावण को उसके बंधु बांधवों समेत मौत के घाट उतार दिया। रावण का वध करने कुछ दिन पहले भगवान राम ने आदि शक्ति मां दुर्गा की पूजा की और फिर उनसे आशीर्वाद मिलने के बाद दशमी को रावण का अंत कर दिया। रावण पर श्रीराम की इस विजय को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। कहा जा रहा है तब से हर साल भवराम की जीत और असुरों के विनाश की खुशी में दशहरा मनाया जाता है। दशहरे के दिन लोग आपस में राम जोहार करते हैं और गले मिलते हैं।
2- महिषासुर का वध
दशहरा के बारे में दूसरी कथा यह है दशमी को ही मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। कथा के अनुसार, अपार बलशाली राक्षण महिषासुर से देवलोक के देवता और पृथ्वीवासी मनुष्य त्रस्त हो चुके थे। कहा जाता है कि घोर तप करने बाद महिषासुर ने भगवान से अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया और फिर लोगों को तबाह करने लगा। इसके बाद देवों की दयनीय मांग पर भगवान विष्णु, ब्रह्मा और शिव ने मिलकर एक देवी रूप में एक शक्ति को प्रकट किया जिसे मां दुर्गा के नाम से जाना गया। मां दुर्गा ने महिषासुर से युद्धकर उसे पराजित किया। इस युद्ध में महिषासुर का अंत हो गया जिसके बाद देवताओं ने इस खुशी के उपलक्ष्य में मां दुर्गा को वचन दिया इस दिन को आज से विजयादश्मी के रूप में मनाया जाएगा और लोग आपको हमेशा शक्ति के रूप में पूजते रहेंगे।
3- शमी के वृक्ष का पूजन
विजयादश्मी को लेकर एक और प्राचीन कथा शमी के वृक्ष की पूजन की है। हिन्दुओं के महानतम् महाकाव्य महाभारत की एक कथा के अनुसार, पांडव जब कौरवों से जुआ में हार गए तो कौरवों ने उन्हें 12 साल के लिए देश छोड़कर जंगल में चले जाने के लिए कहा। उन्होंने कहा अगर इससे पहले वो कौरवों को कहीं दिख जाते हैं तो फिर से 12 साल के लिए उन्हें जंगल में रहना होगा। पांडव जंगल में चले गए लेकिन वह अपनी पहचान किसी को नहीं बताना चाहते थे इसलिए अपने सारे हथियार शमी नाम के एक वृक्ष के नीचे छुपा दिए। यह पेड़ जंगल में उनके आवास के पास ही था। कहते हैँ पांडव हर साल पेड़ के नीचे यह देखने आते थे कि उनके हथियार सुरक्षित हैं या नहीं। जब हथियार सुरक्षित मिलते तो वे वहां पर मां दुर्गा और पेड़ की पूजा अर्चना करते और फिर वापस चले जाते। उधर कौरव लगातार पांडवों की तलाश कर रहे कि वे किसी प्रकार मिल जाएं तो उन्हें फिर से 12 साल के लिए जंगल में भेज दिया जाए। लेकिन पांडव कौरवों को तब मिले जब 12 साल का वनवास पूरा हो गया गया। इसके बाद पांडवों शमी पेड़ के नीचे से अपने हथियार निकाले कौरवों से युद्ध किया। पांडवों ने कौरवों को युद्ध में हराया। कहा जाता है कि यह घटना भी विजयादश्मी को हुई जिसे अन्याय पर न्याय की जीत मानी गई। कहा जा रहा है इसी दिन से हर साल विजयादश्मी का त्योहार मनाने जाने लगा।
4- सोने के सिक्कों की बारिश
विजयादशमी मनाने का जिन कथाओं में वर्णन किया गया है उनमें से चौथी कथा सोने की सिक्कों के बारिश होने की है। इस कथा के अनुसार, देवदत्त नाम के ब्राह्मण के पुत्र कौत्स रिषि वरतान्तु से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। कुछ समय बाद उनकी शिक्षा पूरी हुई तो उन्होंने अपने गुरु से गुरुदक्षिणा मांगने की प्रार्थना की। उनके गुरु ने तो शुरू में दक्षिणा लेने से इनकार कर दिया लेकिन जब कौत्स ने उनसे बार-बार दक्षिणा लेने की बात कही तो उन्होंने कहा अच्छा तुम्हारी इच्छा है तो 14 करोड़ सोने के सिक्के दे दो। ऐसा सुनकर कौत्स हैरान हुए क्योंकि ऐसा करना उनके वश में नहीं था। लेकिन गुरु की मांग पूरी करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थे। कौत्स ने सिक्कों के लिए महाराजा रघु के पास गए और उनसे तीन दिन सिक्के देने के लिए विनती याचना की। कौत्स की विनती से प्रसन्न होकर राजा रघु ने धन के देवता कुबेर से कहा कि वह उनके गुरु के आश्रम में सिक्कों की बारिश करें। कहा जाता है कि जिन सिक्कों की बारिश हुई उन्हें ऋषि ने जरूरतमंदों में बांट दिया था। सोने के सिक्कों की यह बारिश अप्टा या कचनार पेड़ के नीचे हुई जिसके बाद से लोग दशहरा को कचनार की पत्तियां लूटकर धन प्राप्ति की कामना करते हैं। उसके बाद से लोग हर साल ऐसा उत्सव मनाते हैं।
ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र लब्धस्वर्णपदक, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय