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सभी शुभ कार्य करने से पहले क्यों की जाती है भगवान गणेश की पूजा ,जानिए शिवपुराण के अनुसार
जब भी कोई शुभ काम होता है या फिर किसी भी तरह की पूजा-पाठ की जाती है तो सबसे पहले भगवान गणेश की आराधना की जाती है। विघ्नहर्ता गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है। अगर पूजन के दौरान सबसे पहले गणपति जी का पूजन ना किया जाए तो कभी भी पूजा का लाभ नहीं मिलता है। लेकिन क्या आपको पता है कि गणपति जी की ही सबसे पहले पूजा क्यों की जाती है। इनके पूजन के बिना किसी भी कार्य के निर्विघ्न पूरा होना संभव क्यों नहीं होता है।
अगर नहीं, तो चलिए आज इस लेख में हम आपको इस बारे में बता रहे हैं- सूझ-बूझ से बने प्रथम पूज्य गणेश भगवान ना केवल विघ्नहर्ता हैं, बल्कि बल-बुद्धि के देवता भी हैं और अपनी इसी सूझ-बूझ के जरिए वह प्रथम पूज्य कहलाए। दरअसल, एक बार देवताओं के बीच यह विवाद हो गया कि धरती पर सर्वप्रथम किसे पूजा जाए। हर देवतागण स्वयं को श्रेष्ठ बताने लगे। समस्या का कोई हल ना निकलता देख सभी देवता शिवजी के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का हल मांगा। जिसके बाद शिवजी ने सुझाव दिया कि सभी देवता अपने वाहन पर बैठकर संपूर्ण ब्रह्मांड का चक्कर लगाएं।
जो भी परिक्रमा करके सबसे पहले उनके पास पहुंचेगा, वही सर्वप्रथम पूज्य होगा। जिसके बाद सभी देवतागण ब्रह्मांड का चक्कर लगाने के लिए चल दिए। लेकिन गणेशजी ने ब्रह्मांड का चक्कर लगाने की जगह शिवजी और पार्वती जी के चारों ओर परिक्रमा की। 7 बार परिक्रमा करने के बाद वह हाथ जोड़कर खड़े हो गए।
जब सभी देवतागण ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर लौटे तो शिवजी ने गणेश जी को प्रतियोगिता का विजेता घोषित किया। शिवजी ने बताया कि पूरे ब्रह्मांड में माता-पिता का सर्वोच्च स्थान है। चूंकि गणेशजी ने अपने माता-पिता की परिक्रमा की थी, इसलिए वह सभी देवताओं में सबसे पहले पूजनीय हैं। यह कथा भी है प्रचलित भगवान गणेश के प्रथम पूज्य बनने के पीछे एक अन्य कथा भी प्रचलित है। दरअसल, जब माता पार्वती ने गणेश जी को द्वार पर पहरा देने के लिए कहा तो उन्होंने किसी को भी अन्दर आने नहीं दिया। बहुत अधिक समझाने पर भी गणेशजी नहीं माने।
जिसके बाद, भगवान शिव और गणेशजी के बीच युद्ध हुआ। भगवान शिव ने क्रोधित होकर गणेशजी का सिर काट दिया। जब देवी पार्वती ने शिवजी को अपना बेटा वापिस जिंदा करने के लिए कहा तो उन्होंने गणेश जी के शरीर पर हाथी का सिर जोड़ दिया। इसके बाद, देवी पार्वती बेहद दुखी हुई और उन्होंने भगवान शिव से कहा कि इस रूप में मेरे पुत्र का पूजन कौन करेगा। उनकी इस उलझन को दूर करते हुए शिवजी ने वरदान दिया कि किसी भी पूजा और मांगलिक काम से पहले गणेश की पूजा की जाएगी।