धर्म-कर्म

जानिए- "भगवान विष्णु ने क्यों लिया कच्छप अवतार"

Arun Mishra
11 Nov 2021 4:36 AM GMT
जानिए- भगवान विष्णु ने क्यों लिया कच्छप अवतार
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भगवान विष्णु जी ने कच्छप अवतार लेकर मंदराचल पर्वत को सहारा दिया तब देवताओं और दैत्यों ने सागर मंथन किया।

शास्त्रों के अनुसार असुरों के राजा दैत्यराज बलि के काल में असुर बहुत शक्तिशाली हो गए थे क्योंकि उन्हें दैत्य गुरु शुक्राचार्य की भी महाशक्ति प्राप्त थी। देवता, दैत्यों की बढ़ रही शक्ति से बहुत परेशान थे। देवताओं के राजा देवराज इन्द्र भी दैत्यों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे क्योंकि एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवराज इन्द्र को घमण्ड में चूर देखकर उन्हें शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया था।

इन्द्र के शक्तिहीन होने का लाभ उठाते हुए दैत्यराज बलि ने इन्द्र लोक पर भी अपना राज्य स्थापित कर लिया था। जिस कारण इन्द्रदेव और सभी देवता इधर-उधर कन्दराओं में छिपकर अपना समय बिताने लगे। परेशान इन्द्रदेव किसी प्रकार भगवान विष्णु जी के पास गए तथा उन्हें दैत्यराज बलि के अत्याचारों के बारे में बताया।

तब भगवान विष्णु ने देवताओं के दुखों को दूर करने के लिए सागर में पड़े अमृत के घड़े को बाहर निकाल कर पीने की सलाह दी ताकि सभी देवता अमर हो सकें। इसके लिए सागर मंथन किया जाना था जिसके लिए दैत्यों का सहयोग भी जरुरी था। देवताओं को निर्भय बनाने के लिए देवर्षि नारद ने भी अहम भूमिका निभाई और दैत्यराज बलि को चालाकी से अमृत पीने का लालच देकर सागर मंथन के लिए तैयार कर लिया।

देवता तो पहले ही अमृत पीने के लिए सागर मंथन करना चाहते थे। दैत्यों ने अपना हित देखकर देवताओं के साथ विरोध मिटाते हुए सागर मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी बनाने के लिए उखाड़ा और वह उसे समुद्र के निकट ले आए।

नागराज वासुकी को रस्सी (नेती) बनाया गया और उसे मंदराचल पर्वत के चारों ओर (गिर्द) लपेटा गया परंतु जैसे ही सागर मंथन शुरु किया तो पानी में कोई ठोस आधार न होने के कारण पर्वत डूबने लगा।

ऐसे में भगवान विष्णु जी ने कच्छप अवतार लेकर मंदराचल पर्वत को सहारा दिया तब देवताओं और दैत्यों ने सागर मंथन किया। भगवान विष्णु जी ने देवताओं के दुखों को दूर करने के लिए कछुए के रुप में अवतार लिया और उनके मनोरथ को सफल बनाया।

Arun Mishra

Arun Mishra

Sub-Editor of Special Coverage News

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