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भगवान विष्णु ने शुक्राचार्य की एक आंख क्यों फोड़ दी थी , जानिए नारायण के ये 4 छल
जगत कल्याण के लिए ईश्वरीय लीलाएं होती हैं। भगवान शंकर और भगवान विष्णु जगत कल्याण के भाव को लेकर लीलाएं करते हैं, जिससे प्रकृति व जीवों का कल्याण हो। हिन्दू धर्म में कहते हैं कि ब्रह्माजी जन्म देने वाले, विष्णु पालने वाले और शिव वापस ले जाने वाले देवता हैं. भगवान विष्णु तो जगत के पालनहार हैं. वे सभी के दुख दूर कर उनको श्रेष्ठ जीवन का वरदान देते हैं. जीवन में किसी भी तरह का संकट हो या धरती पर किसी भी तरह का संकट खड़ा हो गया हो, तो विष्णु ही उसका समाधान खोजकर उसे हल करते हैं. भगवान विष्णु को संसार को सुरक्षित रखने के लिए कई बार धर्म की मर्यादा का भी उल्लंघन करना पड़ा. यहां तक कि इन्हें सृष्टि की रक्षा के लिए एक स्त्री के साथ छल से संबंध भी बनाने पड़े. आइए आपको बताते हैं भगवान विष्णु ने 4छल जगत कल्याण के लिए किए हैं, आइये, उन्हें जानते हैं।
मधु-कैटभ का वध
मधु और कैटभ नाम के दो शक्तिशाली दैत्य थे, जो ब्रह्माजी को मारना चाहते थे. स्वभाव से तपस्वी ब्रह्माजी भगवान विष्णु की शरण में आए और बोले कि प्रभु आप हमारी इन दैत्यों से रक्षा करें. मगर इन दोनों दैत्यों को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था. भगवान विष्णु ने छल से कुछ ऐसी सम्मोहन विद्या अपनाई कि दोनों दैत्यों ने प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा. भगवान विष्णु ने वरदान मांगा कि मेरे हाथों से मृत्यु स्वीकार करो. उनके तथास्तु बोलते ही भगवान विष्णु ने अपनी जांघ पर दोनों का सिर रखकर सुदर्शन चक्र से काट डाला.
शिशु का रूप अपनाकर शिव-पार्वती से छीना बद्रीनाथ धाम
माता पार्वती से छल: माना जाता है कि बद्रीनाथ धाम कभी भगवान शिव व माता पार्वती का विश्राम स्थल होता था। भगवान शिव अपने परिवार के साथ यहां रहा करते थे। भगवान श्री हरि विष्णु का यह स्थल बहुत अच्छा लगा। उन्होंने इसे प्राप्त करने की योजना बनाई। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु जब बद्रीनाथ धाम आए तो यहां बदरियों यानी बेर का वन था। यहां भगवान शंकर सपरिवार मजे से रहते थे। एक दिन भगवान विष्णु बालक का रूप बना कर जोर-जोर से रोने लगे। उनका रुदन सुनकर माता पार्वती बहुत दुखी हुई और सोचने लगीं कि इतने बीहड़ वन में कौन बालक रो रहा है। यह आया कहां से है? और इसकी माता कौन हैं? वह बालक को यह सोचकर अपने साथ घर पर ले आईं।
भगवान शिव तत्काल समझ गए कि यह विष्णु लीला है। उन्होंने बालक को तुरन्त बाहर छोड़कर आने का आग्रह किया और कहा- वह कुछ देर रोकर खुद ही चला जाएगा। माता पार्वती ने उनकी बात नहीं मानी और घर ले जाकर उसे सुलाने लगीं। कुछ देर में बालक सो गया तो माता पार्वती बाहर आईं और भगवान शंकर के साथ भ्रमण पर चली गईं। भगवान विष्णु को तो इसी पल का इंतजार था, उन्होंने घर के अंदर से कुंडी लगा ली। भगवान शंकर जब वापस आए तो माता पार्वती ने बालक से दरवाजा खोलने के लिए कहा। तब अंदर से भगवान शंकर से कहा कि भगवन आप इस घर को भूल जाइये। यह स्थान मुझे बहुत पसंद आ गया है। मुझे विश्राम करने दीजिए। तब से लेकर भगवान बद्रीनाथ यहां दर्शन दे रहे है और भगवान शिव केदरनाथ में।
राजा बलि से छीना राजपाट
त्रेतायुग में बलि नाम का दैत्य भगवान विष्णु का परमभक्त था. वह बड़ा दानी, सत्यवादी और धर्मपरायण था. आकाश, पाताल और पृथ्वी तीनों लोक उसके अधीन थे जिससे दुखी होकर सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के पास जाकर उनकी स्तुति की. भगवान ने सभी को राजा बलि से मुक्ति दिलवाने के लिए वामन अवतार लिया और एक छोटे से ब्राह्मण का वेश बनाकर उन्होंने राजा बलि से तीन पग पृथ्वी मांगी. राजा बलि के संकल्प करने के पश्चात भगवान ने विराट रूप धारण करके अपने तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया तथा राजा बलि को पाताल लोक में भेज दिया.
शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी
राजा बलि जब वामन अवतार को तीन पग धरती दान करने का संकल्प ले रहे थे तब दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को आगाह किया कि ये वामन अवतार कोई और नहीं भगवान विष्णु हैं जो छल से आपका सारा राज-पाट छीन लेंगे. बलि तब भी नहीं माने. उन्होंने कहा कि वह दान करने के अपने धर्म से पीछे नहीं हट सकते. जैसे ही राजा बलि संकल्प करने के लिए अपने कमंडल से जल लेने चले, शुक्राचार्य उनके कमंडल की टोंटी में जाकर बैठ गए, ताकि जल न निकल सके. वामन के रूप में भगवान विष्णु शुक्राचार्य की चाल समझ गए और उन्होंने टोंटी में सींक डाली तो उसमें बैठे शुक्राचार्य की आंख फूट गई.