धर्म-कर्म

योग को बनाएं जीवनशैली

Arun Mishra
26 Jun 2021 11:24 AM IST
योग को बनाएं जीवनशैली
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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस-2021 का संदेश 'योग के साथ, घर में योग' है।

कुमार कृष्णन

कोविड-19 महामारी के बीच लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं।अप्रत्याशित समय में योग बहुस्तरीय स्वास्थ्य लाभ का एक माध्यम बनकर उभरा है और यह लोग स्वास्थ्य को बेहतर करने के सुलभ उपाय उपलब्ध कराने में मददगार साबित हो रहा है। बदले हुए परिदृश्य में आम लोगों को उनके दैनिक जीवन को संतुलित करने के लिए उपयोगी सहायता प्रदान करते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य के अलावा, योग कई ।लोगों के सामने आने वाले गतिविधि संबंधी संकट को दूर करने के लिए एक सकारात्मक मार्ग भी प्रदान करता है।कोविड-19 के मद्देनजर जरूरी है कि भीड़भाड़ से दूर रहें। इस बार सातवां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस-2021 का संदेश 'योग के साथ, घर में योग' है।

कोविड-19 की दूसरी लहर के मद्देनजर लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर महामारी के असर को लेकर व्यापक चिंता है ,ऐसे दौर में विभिन्न फायदों के साथ योग लोगों के लिए बड़ा मददगार साबित हो रहा है।यह सत्य है कि नियमित रूप से योग करने से स्वास्थ्य सुधार एवं प्राकृतिक प्रतिरक्षा मजबूत करने में मदद मिलती है और साथ ही, योग व्यक्ति के चय-उपाचय, रक्त परिसंचरण सही रखने, श्वसन एवं हृदयसंबंधी रोगों , मधुमेह आदि से बचाव में मददगार समझा जाता है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2021 आम लोगों के मन-मस्तिष्क एवं दिनचर्या में योग को उतारने का यही सही अवसर है।

21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किए जाने के बाद यह बात साफ है कि योग को अब विश्वव्यापी मान्यता मिल गयी है,जीवन में शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति और भावनात्मक संतुलन प्राप्त करने की समग्र पद्धति के रूप में। 1963 में ही विश्व योग आंदोलन के प्रवर्तक परमहंस सत्यानंद सरस्वती ने मुंगेर में बिहार योग विद्यालय की वुनियाद रखते हुए यह घोषणा की थी कि —' योग परमशक्तिशाली विश्व संस्कृति के रूप में प्रकट होगा और विश्व की घटनाओं को निर्देशित करेगा'। उनका कथन आज सर्वत्र सत्यापित है। बिहार योग विद्यालय में 2008 से ही मार्गशीर्ष पूर्णिमा को 'योग पूर्णिमा' के रूप में मनाने की मनाने की परंपरा है। योग के माध्यम से मनुष्य अपने जीवन में कितनी उत्कृष्टता और पूर्णता प्राप्त कर सकता है, इसे उजागर करने के लिए परमहंस सत्यानंद सरस्वती ने इस दिन का चयन किया था। उनके मुताविक —' योग अपने जीवन को बेहतर बनाने का अनुशासन है,शांति पाने का दर्शन है। अगर तुम अपने जीवन में आरोग्य और शांति पाना चाहते हो, अगर तुमआघ्यात्मिक विकास चाहते हो तो योग को अपनी जीवनशैली का अंग अवश्य बनाओं।'

योग क्या है? पद्मभूषण परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के मुताविक —' योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य की एक सुव्यवस्थ्ति प्रणाली है।' योग दर्शन के अनुसार मानव तीन आधारभूत तत्वों जीवन शक्ति या प्राण, मानसिक शक्ति या चित्त और आध्यात्मिक शक्ति या आत्मा का सम्मिश्रण है।

प्राण दरअसल में एक ब्रह्मांडीय जीवन शक्ति है और इसकी एक निश्चित मात्रा से मानव शरीर परिपूर्ण है।यूं कहा जाय कि मानव जीवन प्राणों का चमत्कारिक रूप है। प्राणों के कारण ही हमारा जीवन क्रियाशील है और विकसित हो रहा है। प्राणशक्ति श्वांस द्वारा ग्रहण की जा रही वायु मात्र नहीं, यह हमारे संपूर्ण अस्तित्व में व्याप्त है। इसी के साथ मानव का जन्म होता है। विज्ञान के मुताविक भ्रूण चार माह तक माता के प्राणों पर आधारित होता है। पांचवे माह से वह प्राणों की स्वतंत्र इकाई बन जाता है। जीव का जीवन प्राणों का प्रकाशन है।शरीर में उचित मात्रा में प्राणों का संचार हो रहा होता है तो ऊर्जा और उत्साह का अनुभव होता है और इन्द्रिय संवेदनाएं तीक्ष्ण होती है, परंतु जब प्राण संचरण का परिणाम कम होता है तब थकान और अशक्तता का अनुभव होता है।

प्राण शक्ति के अलावा एक और शक्ति है, जो मन या चेतना के नाम से जाना जाता है। इसके द्वारा चिंतन,मनन स्मरण और उचित— अनुचित का ज्ञान रखते हैं। मानव के अंदर अनंत मानसिक गुण और विद्यमान प्रतिभाएं इसी मानसिक शक्ति का प्रकाशन है। शरीर में मनस शक्ति और प्राण शक्ति दो प्रमुख प्रवाहों में प्रकाशित होती है। इन प्रवाहिनियों को इड़ा नाड़ी और पिंगला नाड़ी कहते हैं। जिस तरह विद्युत में दो प्रवाह होते हैं, जिन्हें पाजिटिव और निगेटिव कहते हैं, उसी तरह शरीर के हरेक अंग में इन दो नाड़ियों प्रवाह है। मनुष्य का शरीर प्राण और मनस शक्तियोंं के कारण ही चलती है।

परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के अनुसार जब प्राणशक्ति और मनस् शक्ति का संयोजन होता होता है तो वे ऊर्जा में परिणत होती है। यदि दोनो मे अलगाव होता है तो वही स्थिति होती है जैसे विजली की लाईन से एक तार निकाल देते हैं तो बत्ती नहीं जलती है।यही स्थिति शरीर के साथ है। एक शक्ति प्रवाहित हो और दूसरी न हो तो अंग अकर्मण्य हो जाते हैं। योग शास्त्र के अनुसार सिर से पैरों तक इन दोनो प्रवाहों संतुलन बहुत जरूरी है। प्राण पिंगला है, मन इड़ा है।

प्राणशक्ति और चित्तशक्ति, दोनो ही शारीरिक शक्तियां हैं। तीसरी शक्ति हैआध्यात्मिक शक्ति। यह अत्यंत सूक्ष्म निराकार और और भावातीत शक्ति है। शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों शक्तियोां का निर्माता है मूलाधार चक्र। आध्यात्मिक शक्ति इड़ा नाड़ी और पिंगला नाड़ी द्वारा प्रवाहित नहीं हो सकती। इसके लिए एक अन्य नाड़ी की आवश्यकता है, जिसे सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं। यह नाड़ी शक्ति को मूलाधार से सहस्त्रार चक्र तक ले जाती है। मानव मस्तिष्क का केवल एक भाग काम करता है,शेष नौ भाग बंद है। बंद इन नौ भागों में अनंत ज्ञान, अनुभवों और शक्तियों का भंडार है। कुंडलिनी शक्ति के जागरण से जब सुषुम्ना उस शक्ति को सहस्त्रार तक ले जाती है तो अप्रकाशित ज्ञान भंडार मुखरित हो उठता है।

स्वास्थ्य का रहस्य है — प्राण, मनस् और आत्मशक्तियों का उचित एवं संतुलित वितरण। हठयोग के अभ्यास से शारीरिक शुद्धि ,प्राणायाम के द्वारा नाड़ी शुद्धि और ध्यान के द्वारा आध्यात्मिक शक्ति का विकास कर मन,प्राण और आत्मशक्तियों को संतुलित किया जा सकता है। हठयोग, क्रियायोग, राजयोग आदि योग के विभिन्न अंगों का अभ्यास न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत शक्तिशाली उपकरण है। बिहार योग पद्धति इन तीनों का समन्वय है। योग को सिर्फ शारीरिक अभ्यास के रूप में नहीं बल्कि एक जीवन शैली केे रूप में अपनाने की आवश्यकता है। यौगिक जीवनशैली के आधार साधना,सजगता, सही दृष्टिकोण,कर्मठता, विवेक और वैराग्य हैं। योग आडंबर और दिखावे की चीज नहीं है।

जब योग जीवनशैली बनता है तो तब शारीरिक स्वास्थ्य एवं ऊर्जा में बृद्धि, मानसिक स्पष्टता एवं आंतरिक सृजनात्मकता का विकास और जीवन में शांति का अनुभव होता हे। परम योगगुरू स्वामी शिवानंद जी चिंतन था कि ' जीवन के समस्त क्षण योगमय होने चाहिए। योगमय क्षणों का योगफल ही योग है।योग द्वारा मनुष्य की बुद्धि,भावना और कर्म उत्कृष्ट बने,उनके इसी चिंतन को उनके पट्ट शिष्य परमहंस सत्यानंद सरस्वती ने मूर्त रूप प्रदान किया। इसी परंपरा को में परहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने आगे बढ़ाया। योग जीवन पद्धति के रूप में शामिल कर सकें, इसके लिए बिहार योग विद्यालय मुंगेर ने 2015 में ही योग कैप्सुल तैयार किया है, इसमें योगासन,सूर्य नमस्कार, प्राणायाम,त्राटक क्रिया, प्रार्थना शामिल है।

आसन और प्राणायाम संपूर्ण योग नहीं है, योग मात्र विषय हैं,अंग हैं। आसनों से शरीर की शुद्धि होती है। दिल,फेफड़े,कलेजा,गुर्दे,पाचन संस्थान, खून रक्ताभिसरण संस्थान, एण्डोक्रायनल संस्थान इत्यादि अवयवों की शुद्धि होती है। तंत्रिका तंत्र के असंतुलन को, हारमोन्स के असंतुलन को योगासन से ठीक किया जा सकता है। स्थिरसुखामासन्— स्थिरं और सुखं योगासन की योगासन की ये मुख्य परिभाषा है। मेरूदंड के अतिरिक्त मांसपेशियों तथा जोड़ों को स्वस्थ्य और लचीला बनाए बनाए रखता है। विभिन्न ग्रंथियों की सूक्ष्म मालिश हो जाती है।परिणामस्वरूप थायरायड अतिक्रियता या अवक्रियता, इंसुलिन का दोषपूर्ण स्त्राव और अन्य हार्मोन असंतुलन जैसी दैहिक असमानताएं संतुलित हो जाती है। आसन और प्राणायाम के अभ्यास से शरीर और मन में संतुलन बना रहता है। इसका परिणाम शरीर तक सिर्फ सीमित नहीं रहता है, बल्कि भावनाओं पर भी असर डालता है। परिणामस्वरूप चिंतन, प्रतिक्रियाएं,ग्रहणशीलता और जीवन में घटित होनेवाली घटनाओं के विश्लेष्ण पर गहरा असर डालती है। प्राणयाम केवल फेफड़ों में शुद्ध वायु पहुंचाने और उन्हे शक्ति प्रदान करने के कारण महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि ये मस्तिष्क और भावनाओं पर सीधा असर डालते हैं। प्रत्याहार बाहरी वातावरण से सजगता को अंदर खींचकर दैनिक जीवन के तनाव को कम करता है।

प्रत्याहार की विभिन्न विधियां जैसे योगनिद्रा, व्यक्ति के सभी आयामोंं को प्रभावित करती हैं,क्योंकि सजगता के प्रत्यावर्तन से उत्पन्न शारीरिक एवं मानसिक शिथिलीकरण तथा एकाग्रता इस विधि के महत्वपूर्ण तत्व हैं।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुंगेर के स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा प्रतिपादित योगनिद्रा ने काफी प्रभावित किया है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा है— जब भी समय मिलता है, मैं हफ्ते में 1-2 बार योग निद्रा का अभ्यास करता हूं।ये शरीर को स्वस्थ और मन को प्रसन्न रखता है, साथ ही तनाव और चिंता को कम करता है। उन्होंने परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती द्वारा योगनिद्रा के प्रशिक्षण का वीडियों भी जारी किया है। योग की वास्तविक परिणति तब होती है जब प्राणिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियां आपस में मिलती हैं।स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं कि योग को तीन भागों में देखा जाना चाहिए— शरीर के लिए अभ्यास,मन के लिए साधना और आत्मा के लिए जीवनशैली। योग की शुरूआत भले ही शरीर से हो, किन्तु उसका असर व्यक्ति के चेतना को उच्चतम स्तर तक पहुंचा सकता है। कर्मयोग कार्यशीलता को संबोधित करता है, उसी तरह भक्तियोग भावनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। राजयोग पारलौकिक संभावनाओं का पोषण करता है और ज्ञानयोग बौद्धिक प्यास को तृप्त करता है।


संपर्क-कुमार कृष्णन,स्वतंत्र पत्रकार

मोगलबाजार,मुंगेर बिहार 811201

Arun Mishra

Arun Mishra

Sub-Editor of Special Coverage News

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