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द्युत क्रीड़ा के खेल में भगवान शिवजी को भी इस खेल में सब कुछ गवाना पड़ा था। कहा जाता है कि एक बार भगवान शंकर ने माता पार्वती को अपने साथ द्युत क्रीड़ा खेलने का प्रस्ताव दिया। इस खेल में भगवान शिव सब कुछ पार्वतीजी के हाथों हार जाते हैं। द्युत क्रीड़ा में सब कुछ हारने के बाद भगवान शिव पत्तों के वस्त्र पहनकर गंगा के तट पर चले जाते हैं।
यह देख पार्वती बहुत चिंतित हो गई । माता पार्वती ने गणेश जी को पूरी बात बतायी। माता की व्यथा सुनकर गणेश जी स्वयं जुआ खेलने शंकर भगवान के पास पहुंचते हैं। गणेश जी की लीला देखिए वह शिवजी से द्युत क्रीड़ा जीत जाते हैं।यह समाचार माता को सुनाते हैं लेकिन माता पार्वती खुश नहीं होती है। वह उन्हें अपने साथ शिवजी को लाने के लिए भी कहती हैं। गणेशजी भोलेबाबा की तलाश में चले जाते हैं।
उधर पार्वती से नाराज भोलेबाबा लौटने से इंकार कर देते हैं. भोलेनाथ की मदद के लिए उनके परम भक्त रावण ने बिल्ली का रूप धारण कर गणेश जी के वाहन मूषक भगा देते हैं. अब भगवान विष्णु ने भोलेनाथ की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया. शंकरजी ने गणेशजी से कहा कि यदि पार्वती फिर से मेरे साथ जुआ खेलने के लिए राजी होती है तो मैं चलने के लिए तैयार हूँ।
शिवजी के प्रस्ताव पर पार्वती हस पड़ी और कहा कि अब जुआ खेलने के लिए आपके पास है क्या? यह सुनकर नारद जी ने अपनी वीणा आदि सामग्री शिवजी को दे दिया. चूकी पासा के रूप में भगवान विष्णु थे इसलिए हर बाजी शिवजी जीतने लगे। परन्तु इस खेल की चाल गणेश जी समझ गए और माता पार्वती को बता दिया। यह सुनकर पार्वती जी को गुस्सा आ गया। यह देख रावण ने माता पार्वती को समझाने का प्रयत्न किया पर उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ।
क्रोध में माता ने भोलेनाथ को श्राप दिया कि गंगा की धारा का बोझ उनके माधे पर हमेशा बना रहेगा। पार्वती जी ने नारद को भी श्राप दिया कि वे कभी एक स्थान पर नहीं टिक सकेंगे। उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि रावण तुम्हारा शत्रु होगा और रावण का विनाश विष्णु के हाथों होगा तथा कार्तिकेय को माता पार्वती ने कहा कि वह हमेशा बालक के रूप में ही रहेंगे।