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#ParshuramJayanti : परशुराम जयंती: जानें- भगवान विष्णु जी के छठे अवतार की वीरगाथा, राम से ऐसे बने परशुराम
देश जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी के छठे अवतार भगवान परशुराम जी के जन्मोत्सव का पावन पर्व है। हमारे वैदिक सनातन धर्म की धार्मिक मान्यताओं व पौराणिक वृत्तान्तों के अनुसार भृगुकुल तिलक, अजर-अमर, अविनाशी, विश्व के अष्ट चिरंजीवियों में सम्मिलित, शस्त्र व शास्त्र के महान ज्ञाता परम वीर भगवान परशुराम जी का जन्म वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया अर्थात अक्षय तृतीया के पावन दिन माता रेणुका के गर्भ से हुआ था। भगवान परशुराम जी राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय सप्तऋषि महर्षि जमदग्नि के पाँचवें पुत्र थे। भगवान परशुराम जी के पिता महर्षि जमदग्नि वेद-शास्त्रों के महान ज्ञाता थे और वो सप्तऋषियों में से एक थे।
भगवान परशुराम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था। परशुरामजी की जयंती वैशाख मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इस पावन दिन को अक्षय तृतीया कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन किया गया दान-पुण्य कभी क्षय नहीं होता। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। भगवान परशुराम भगवान शिव और भगवान विष्णु के संयुक्त अवतार माने जाते हैं। शास्त्रों में उन्हें अमर माना गया है। शिवजी से उन्होंने संहार लिया और विष्णुजी से उन्होंने पालक के गुण प्राप्त किए। सहस्त्रार्जुन जैसे मदांध का वध करने के लिये ही परशुराम अवतरित हुए।
राम से ऐसे बने परशुराम
महर्षि जमदग्रि के चार पुत्र हुए, उनमें से परशुराम चौथे थे। परशुराम के जन्म का नाम राम माना जाता है, वहीं रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, जमदग्न्य, भृगुवंशी आदि नामों से भी जाना जाता है। मान्यता है कि पापियों के संहार के लिए इन्होंने भगवान शिव की कड़ी तपस्या कर उनसे युद्ध कला में निपुणता के गुर वरदान स्वरूप पाये। भगवान शिव ने उन्हें असुरों का नाश करने के लिए कहा। राम ने बिना किसी अस्त्र से असुरों का नाश कर दिया। भगवान शिव से उन्हें कई अद्वितीय शस्त्र भी प्राप्त हुए इन्हीं में से एक था भगवान शिव का परशु जिसे फरसा या कुल्हाड़ी भी कहते हैं। यह इन्हें बहुत प्रिय था वे इसे हमेशा साथ रखते थे। परशु धारण करने के कारण ही इन्हें परशुराम कहा गया। कहा जाता है कि भारतवर्ष के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाए गए। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चलाकर गुजरात से लेकर केरल तक समुद्र को पीछे धकेलते हुए नई भूमि का निर्माण किया। उन्हें भार्गव नाम से भी जाना जाता है।
21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का किया विनाश
परशुरामजी को भगवान विष्णु का आवेशावतार भी कहा जाता है क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार परशुराम क्रोध के पर्याय रहे हैं। अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध में इन्होंने हैहय वंशी क्षत्रियों के साथ 21 बार युद्ध किया और उनका समूल नाश किया। इसके पश्चात उन्होंने अश्वमेघ महायज्ञ किया और संपूर्ण पृथ्वी को महर्षि कश्यप को दान कर दिया। महाभारत युद्ध से पहले जब भगवान श्रीकृष्ण संधि का प्रस्ताव लेकर धृतराष्ट्र के पास गए थे, उस समय भगवान परशुराम भी उस सभा में उपस्थित थे। उन्होंने भी धृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण की बात मान लेने के लिए कहा था। परशुराम का उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक मिलता है। इतना ही नहीं इनकी गिनती तो महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, ऋषि मार्कंडेय सहित उन आठ अमर किरदारों में होती है जिन्हें कालांतर तक अमर माना जाता है।
अक्षय तृतीया का पौराणिक महत्व
इस पर्व से अनेकों पौराणिक बातें जुड़ी हुई हैं। महाभारत का युद्ध भी इसी दिन समाप्त हुआ था। भविष्यपुराण के अनुसार वैशाख पक्ष की तृतीया के दिन ही सतयुग तथा त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी। भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। उत्तराखंड के प्रसिद्द तीर्थस्थल बद्रीनाथ धाम के कपाट भी आज ही के दिन पुनः खुलते हैं और इसी दिन से चारों धामों की पावन यात्रा प्रारम्भ हो जाती है। वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मंदिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। बाकी पूरे वर्ष चरण वस्त्रों से ही ढके रहते हैं।