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इंजीनियर का काम केवल सुंदर एवं आकर्षण युक्त घर बनाना है। परन्तु वास्तु शास्त्र के अनुसार बना घर सुन्दर, मजबूत , स्वच्छ होते हुए उसमें रहने वाला व्यक्ति सुख समृद्धि को प्राप्त करता है। सभी देवताओं के स्थान का नाम वास्तु है। गृह निर्माण के पूर्व जब तक आप द्वार का निर्णय नहीं करते तब तक पिण्ड का निर्माण नहीं कर सकते।
उक्त बातें आज ज्योतिष विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के अध्यक्ष प्रोफेसर विनय कुमार पाण्डेय जी ने कही। उन्होंने भारत अध्ययन केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित 21जनवरी से 2 फरवरी तक चलने वाली 13 दिवसीय "स्थापत्य वेद" विषयक कार्य शाला के सप्तम् दिवस मे
"शल्योद्धार एवं निधि ज्ञान" को
बतौर मुख्य वक्ता संबोधित किया। बोले, फटी हुई, शल्य(हड्डी) से रहित, दीमक लगी हुई, और निम्नोन्नत भूमि को त्याग देना चाहिए। क्योंकि फटी हुई भूमि में वास करने से मृत्यु तुल्य कष्ट, ऊसर, दीमक आदि वाली भूमि मे वास करने से धननाश, शल्ययुत भूमि में सर्वदा क्लेश और विषम [नीचोच्च] भूमि मे वास से शत्रु की वृद्धि होती है। प्रोफेसर पाण्डेय जी ने भूमि शोधन की पाँच प्रक्रिया भी बतलायी
" सम्मार्जनोपाञ्जनेन सेकेनोल्लेखनेन च।
गवां च परिवासेन भूमिः शुद्धयति पञ्चभिः।।
अर्थात सम्मार्जन [झाड़ना], लीपना [ गोबर आदि से]
सीचना[गोमूत्र,गंगाजल आदि से], खोदना[ऊपर की कुछ मिट्टी खोदकर फेंक देना], और गायों को ठहराना, इन पांच प्रकारों से भूमि की शुद्धि होती है। जमीन के नीचे एक पुरुष की लम्बाई मे शल्य गृह मे दोष नहीं होता है। प्रासाद निर्माण में जबतक जल ना मिले तब तक शल्य खोज कर भवन बनाना चाहिए। बिना शल्य की भूमि शुभफलदायक होती है। निवर्तन बीस हाथ का होता है।
8 परमाणु= 1 अस्रेणु
8अस्रेणु= 1बालाग्र
8 बालाग्र= 1लिक्षा
8 लिक्षा= 1यूका
8 यूका = 1यवोदर
6 यवोदर= 1 कनिष्ठ अंगुल
7 यवोदर= 1मध्यम अंगुल
8 यवोदर= 1ज्येष्ठ अंगुल
24अंगुल=1हस्त होता है।
शास्त्र आपकी तभी सहायता करता है जब आप शास्त्र सम्मत चलेंगे। शल्य ज्ञान मे चित्त की एकाग्रता जरूरी है। शल्योद्धार की तीन विधि है। शकुन, प्रश्न, एवं अहिबल। अंत में प्रोफेसर पाण्डेय जी ने अहिबल चक्र के माध्यम से शल्योद्धार एवं निधि ज्ञान की सूक्ष्म विधि पर प्रकाश डालकर प्रतिभागियों के विभिन्न प्रश्नों का समाधान भी किया।
संचालन कार्यशाला के संयोजक डाँ ज्ञानेन्द्र नारायण राय ने किया। इस मौके पर प्रमुख रूप से भारत अध्ययन केन्द्र के समन्वयक प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी, प्रो. राकेश उपाध्याय, प्रो. सुकुमार चट्टोपाध्याय, ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश प्रसाद मिश्र आदि उपस्थित रहे।