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शूकर क्षेत्र में श्राद्ध से मिलता है मोक्ष - डॉ0 गौरव कुमार दीक्षित
पितृ पक्ष गणपति बप्पा को विदा करते ही यानी अनंद चतुर्दशी के अगले दिन पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष का आरंभ हो जाएगा। पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध 29 सितंबर को होगा और पितृ अमावस्या 14 अक्टूबर को होगी। यानी कि पितृ पक्ष का आरंभ 29 सितंबर को होगा और समापन 14 अक्टूबर को हो जाएगा। पितृ पक्ष में पूर्वजों की मृत्यु की तिथि के अनुसार उनका श्राद्ध किए जाने की परंपरा है। जिन लोगों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती है और उन लोगों का श्राद्ध अमावस्या तिथि के दिन किया जाता है।
पितृ पक्ष में तिथियों का विशेष महत्व होता है। जैसे जिन पूर्वजों की मृत्यु जिस तिथि पर होती है उसका श्राद्ध उसी तिथि पर किया जाता है। जिन लोगों का निधन अगर पंचमी तिथि को हुआ है तो उनका श्राद्ध भी उसी तिथि को किया जाता है। जिनकी मृत्यु एकादशी तिथि को हुई हो तो उनका श्राद्ध भी पितृ पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाएगा।
पितृ पक्ष में किसी ब्राह्मण को आदर और सम्मानपूर्वक घर बुलाएं और भोजन कराएं। ब्राह्मणों को भोजन कराने से पहले वह भोजन परिवार के किसी सदस्य को न दें। ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद गाय, कुत्ते, कौवे को भोजन करवाएं। श्राद्ध का आरंभ दोपहर के वक्त किया जाना शास्त्रों में सही बताया गया है। ब्राह्मणों के सहयोग से मंत्रोच्चार के साथ श्राद्ध आरंभ करें और उसके बाद जल से तर्पण करें। उसके बाद पितरों का ध्यान करते हुए उनसे भोजन स्वीकार करने की प्रार्थना करनी चाहिए।
पितृपक्ष में किसी भी तरह का मांगलिक कार्य नहीं करनी चाहिए. शादी, मुंडन, सगाई और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य पितृ पक्ष में निषेध माने गए हैं. दरअसल पितृपक्ष के दौरान शोकाकुल का माहौल होता है, इसलिए इन दिनों कोई भी शुभ कार्य करना अशुभ माना जाता है, पितृ पक्ष के दौरान किसी भी नए वस्त्र या किसी नई चीज की खरीदारी करना निषेध माना जाता है बल्कि इस दिन वस्त्रों का दान करना चाहिए.
प्रतिदिन अथवा तिथि विशेष पर तर्पण अवश्य करें, सबसे पहले साफ जल, बैठने का आसन, थाली, कच्चा दूध, गुलाब के फूल, फूल की माला, कुशा, सुपारी, जौ, काले तिल, जनेऊ आदि अपने पास रखें. आचमन के बाद हाथ धोकर अपने ऊपर जल छिड़के, फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगा लें. फिर थाली में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवताओें को याद करें. ध्यान रहें कि तर्पण विधि के लिए पूर्व की तरफ मुख करके ही बैठना है. कुशा को पूर्व की ओर रखें. फिर श्राद्ध के दौरान अनामिका उंगली में कुशा घास से बनी अंगूठी धारण करें. फिर सीधे हाथ से तर्पण दें.
पितरों को अग्नि में गाय का दूध, दही, घी या खीर अर्पित करें. ब्राह्मण भोजन निकलने से पहले गाय, कुत्ते, कौवे के लिए खाना निकाल लें. दक्षिण की तरफ मुख करके और कुश, तिल और जल लेकर पितृतीर्थ से संकल्प करें और एक या फिर तीन ब्राह्मण को भोजन कराएं. तर्पण करने के बाद ही ब्राह्मण को भोजन ग्रहण कराएं और भोजन के बाद दक्षिणा और अन्य सामान दान करें और ब्राह्मण का आशीर्वाद प्राप्त करें.
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार एक वर्ष तक प्राय: सूक्ष्म जीव को शरीर नहीं मिलता। मोहवश वह सूक्ष्म जीव अपने परिवार जनों एवं घर के आसपास घूमता रहता है। श्राद्ध कर्म करने से उस सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है। इस अनुष्ठान में जब हम श्रद्धा से ब्राह्मण को भोज्य पदार्थ खिलाते हैं तो पितृ तृप्त होते हैं।
महाभारत में प्रसंग आता है कि मृत्यु के उपरांत दानवीर कर्ण को चित्रगुप्त ने मोक्ष देने से इंकार कर दिया था। तब कर्ण ने चित्रगुप्त से पूछा कि मैंने अपनी सारी सम्पदा सदैव दान पुण्य में ही समर्पित की है तो फिर मुझ पर यह कैसा ऋण शेष रह गया है, तब चित्रगुप्त ने बताया, राजन आपने देव ऋण और ऋषि ऋण तो चुकता कर दिया परंतु आप पर पितृ ऋण शेष है। आपने अपने काल में सम्पदा एवं सोने का दान किया है। अन्न का दान नहीं किया। जब तक आप यह ऋण नहीं उतारते आपको मोक्ष मिलना संभव नहीं। इसके उपरांत धर्मराज ने दानवीर कर्ण को व्यवस्था दी कि आप 16 दिन के लिए पृथ्वी पर जाकर अपने ज्ञात एवं अज्ञात पितरों को प्रसन्न करने के लिए विधिवत श्राद्ध-तर्पण तथा पिंड दान करके आइए तभी आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी। दानवीर कर्ण ने वैसा ही किया तभी उन्हें मोक्ष मिला।
शूकर क्षेत्र में पिंडदान करने से मिलता है मोक्ष,वराह पुराण आदि में विधान बताया है कि दिवंगत पिता, पितामह, प्रपितामाह इन तीन पीढ़ियों को वेद मंत्रों से आह्वान कर जल से तर्पण एवं अन्ना के पिण्ड से तृप्त करना चाहिए। श्राद्ध कर्म पवित्र नदी तट, शूकर क्षेत्र, वट-वृक्ष के नीचे या अपने घर में किया जा सकता है। पिंडदान में जितने दिवंगतों को शामिल किया जाता है, उतने ही पिण्ड बनाए जाते हैं।इसके अलावा चांदी, कुश, तिल, गौ, दौहित्र यानी कन्या का पुत्र, खड्गपात्र, कंबल- इन्हें भी कुतुप के समान फलदायी बताया गया है।
भगवान वराह ने स्वयं शूकर क्षेत्र की पवित्रता का बखान करते हुए कहा है कि मेरे प्रभाव से इस पुण्य भूमि शूकर क्षेत्र में जो व्यक्ति अपने पूर्वजों की अस्थियों को विसर्जित करेगा, वह गंगाजल में विलीन हो जाएंगी। सोरों की पवित्र भूमि पर श्राद्ध करने से हर आत्मा को शांति मिलती है।शूकर क्षेत्र में श्राद्ध कर्म करने से पूर्वजों को मोक्ष मिलता है।
भगवान वराह की मोक्ष स्थली सोरों, यानि शूकर क्षेत्र श्राद्ध के निमित्त इस संसार का सर्वाधिक उत्कृष्ट स्थल है। यहां भगवान वराह ने स्वयं अपने लीलारूप का त्याग किया है। शास्त्रों में सोरों को मोक्ष की भूमि कहा गया है।
पौराणिक ग्रंथों में वर्णित किया गया है कि देवपूजा से पहले जातक को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं। इसके पीछे यह मान्यता भी है कि यदि विधि अनुसार पितरों का तर्पण न किया जाए तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा मृत्युलोक में भटकती रहती है।वैसे तो शूकर क्षेत्र में किसी भी दिन पितरों की शांति के लिए पिंड दान या श्राद्ध कर्म किए जा सकते हैं, लेकिन पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का महत्व अधिक माना गया है। पूर्वज, पितर या परिवार के सदस्य के परलोक गमन की तिथि याद हो तो पितृपक्ष में पड़ने वाली उस तिथि को ही उनका श्राद्ध करना उचित है। यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो आश्विन अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है। इसे सर्वपितृ अमावस्या भी इसलिए कहा जाता है। समय से पहले यानि जिन स्वजन की किसी दुर्घटना में अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जा सकता है। पिता के लिए अष्टमी तो माता के लिये नवमी की तिथि उपयुक्त है।
मनुष्य योनि में पैदा होते ही शास्त्रों में मनुष्य के लिए तीन ऋण बताए गए हैं। पहला देव ऋण, दूसरा ऋषि ऋण और तीसरा पितृ ऋण। इनमें पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक है। जिन माता-पिता एवं पूर्वजों ने हमारी आयु, आरोग्यता तथा सुख-सौभाग्य की अभिवृद्धि के लिए तमाम प्रयास किए हों, उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म लेना निरर्थक है। इसे उतारने में अधिक खर्च भी नहीं होता।
वर्षभर में केवल एक बार अर्थात उनकी मृत्युतिथि को सर्वसुलभ जल, तिल, यव, कुश, पुष्प आदि से उनका श्राद्ध सम्पन्न करने और गौ ग्रास देकर एक, तीन या पांच ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से यह ऋण उतर जाता है।
संक्षिप्त नारदपुराण (पृष्ठ 120 ) में भी इस उल्लेख किया गया है और मार्कंडेय पुराण (95/3 -13 ) में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ प्रसन्न होकर स्तुतिकर्ता मनोकामना कि पूर्ती करते हैं –
अमूर्तानां च मूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्!
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां योगचक्षुषाम्।।
इस बार कुल 16 श्राद्ध की तिथि तारीख़ इस प्रकार हैं, आप अभी से नोट कर लें कि आपको किस दिन श्राद्ध करना है.
29 सितंबर 2023, शुक्रवार पूर्णिमा श्राद्ध
29 सितंबर 2023, शुक्रवार प्रतिपदा श्राद्ध
30 सितंबर 2023, शनिवार द्वितीया श्राद्ध
01 अक्टूबर 2023, रविवार तृतीया श्राद्ध
02 अक्टूबर 2023, सोमवार: चतुर्थी श्राद्ध
03 अक्टूबर 2023, मंगलवार पंचमी श्राद्ध
04 अक्टूबर 2023, बुधवार षष्ठी श्राद्ध
5 अक्टूबर 2023, गुरुवार सप्तमी श्राद्ध
6 अक्टूबर 2023, शुक्रवार अष्टमी श्राद्ध
7 अक्टूबर 2023, शनिवार नवमी श्राद्ध
8 अक्टूबर 2023, रविवार दशमी श्राद्ध
9 अक्टूबर 2023, सोमवार एकादशी श्राद्ध
10 अक्टूबर 2023, मंगलवार मघा श्राद्ध
11 अक्टूबर 2023, बुधवार द्वादश श्राद्ध
12 अक्टूबर 2023, गुरुवार त्रयोदशी श्राद्ध
13 अक्टूबर 2023, शुक्रवार चतुर्दशी श्राद्ध
14 अक्टूबर 2023, शनिवार सर्व पितृ अमावस्या
डॉ0 गौरव कुमार दीक्षित
ज्योतिषाचार्य /न्यूमेरोलोजिस्ट
अध्यक्ष - शूकर क्षेत्र फाउंडेशन
सोरों - कासगंज
मोबाइल - 8881827888