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ज्योतिषाचार्य डॉ गौरव कुमार दीक्षित
जब कोई ग्रह सूर्य के नजदीक आ जाता है तो वह ग्रह अस्त हो जाता है, कुंडली में किसी भी ग्रह के अस्त होने पर आपको गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं, अगर वह ग्रह कुंडली में शुभ है तो उस भाव से सम्बंधित फलों में जीवन में कमी देखी जाती है,खास कर लग्नेश, पंचमेश,सप्तमेश, नवमेश, दशमेश, एकादशेष के अस्त होने पर जीवन में बहुत उतार चढाव होता है, राहू एवं केतु छाया ग्रह हैं इसलिये वह अस्त नहीं होते, लग्नेश के अस्त होने पर बीमारी-संघर्ष, पंचमेश में संतान और शिक्षा की समस्या, सप्तमेश में शादी एवं जीवनसाथी का स्वास्थ्य, नवमेश में भाग्य, दशमेश में पिता एवं कर्म तथा एकादशेष में आय से सम्बंधित कमी देखी जाती है, आइये आपको बताते हैं कि अलग अलग ग्रहों के अस्त होने पर जीवन पर कैसा प्रभाव पड़ता है.
चन्द्रमा - चन्द्रमा के अस्त होने पर जातक की मां का अस्वस्थ होना, पैतृक संपत्ति का नष्ट होना, मानसिक अशांति आदि घटनाएं घटित होती रहती हैं।
मंगल - मंगल के अस्त होने पर जातक को नसों में दर्द, उच्च अवसाद, खून का दूषित होना आदि बीमारियां हो सकती हैं। अस्त मंगल ग्रह पर षष्ठेश के पाप का प्रभाव होने पर जातक को कैंसर, विवाद में हानि चोटग्रस्त आदि कष्ट होते हैं। अस्त मंगल पर राहु-केतु का प्रभाव होना जातक को किसी मुकदमें आदि में फंसा सकता है।
बुध - जातक की कुंडली में बुध अस्त हो तो जातक को दमा, मानसिक अवसाद आदि से गुजरना पड़ता है। अस्त बुध की अंतर्दशा में जातक को धोखे का शिकार होता है। जिससे वह तनावग्रस्त रहता है, मानसिक अशांति बनी रहती है तथा जातक को चर्म रोग आदि भी हो सकता है।
बृहस्पति - कुंडली में अस्त बृहस्पति की अंतर्दशा आने पर जातक का मन अध्ययन कार्यों में नहीं लगता है। किसी मुकदमें में फंस जाता है। अनैतिक संबंधों में फंस जाता है। लीवर के रोग से ग्रस्ति हो जाता है। मुधवेह, ज्वर,आदि हो सकता है।
शुक्र - यदि किसी जातक की कुंडली में शुक्र की अंतर्दशा है और शुक्र अस्त हो जाता है, तो ऐसी स्थिति में जातक को किडनी आदि से सम्बंधित परेशानी हो सकती है। संतान सुख में बाधा होने का भय बना रहता है।
शनि - किसी जातक की कुंडली में अस्त शनि ग्रह का षष्ठेश की पापछाया में होना रीढ़ की हड्डी में परेशानी, जोड़ों, घुटना में दर्द की समस्या पैदा करता है। मानसिक परेशानियां बढ़ने लगती है। अस्त शनि ग्रह की अंतर्दशा आने पर जातक की सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आती है, व्यक्ति कार्य एवं व्यवहार नीच प्रकृति का हो जाता है।