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'रक्षा-बंधन' से भी बड़ी ज़िम्मेदारी के बंधन से बँधे हैं हम पुलिस-जन, इस बंधन का नाम है-'सुरक्षा-बंधन' - आईपीएस अजय कुमार
आज पवित्र सावन महीने का आख़िरी दिन है। आज रक्षा-बंधन का पावन पर्व है। बहिन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधेगी। उसे अपने हाथों से तिलक लगाएगी, मिठाई खिलाएगी और अपने हृदय की गहराइयों से लाख-लाख दुआएँ देगी ताकि भाई मज़बूत बने, अच्छा इंसान बने, और तभी वह बहिन की रक्षा कर सकेगा, देश की रक्षा कर सकेगा।
हम पुलिस जन तपती धूप में धूल और धुँआ झेलते हुए, चौराहों पर खड़े रहकर ट्रैफ़िक ठीक रखते हैं ताकि कोई अकाल ही काल के गाल में न समा जाए। कहीं आग लग जाने की सूचना पर हम दमकल (फ़ायर टेंडर) लेकर दौड़ पड़ते हैं ताकि कोई जल कर अकाल ही मौत के मुँह में न चला जाए। पशु, पक्षी, मनुष्य किसी पर भी सुरक्षा का संकट आता है, हमें सूचना मिलती है तो हम भोजन, आराम, परिवार का सानिध्य, पूजा, इबादत, त्यौहार सब कुछ छोड़कर बस दौड़ पड़ते हैं-सबकी सुरक्षा के लिए। पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए, अपराधी को पकड़ने के लिए हम दिन-रात एक कर देतें हैं। हमारे बच्चे, हमारी बहिनें, माता-पिता व परिवार के सारे लोग हमारे संग बैठकर तसल्ली से बात करने को, समय बिताने को तरस जाते हैं; क्या यह कम बड़ा त्याग है?
तमाम अभावों में भी हम पुलिस जन इन सभी मुश्किलों, दुश्वारियों को हँसते-हँसते झेल जाते हैं, क्योंकि हम अतिशय पवित्र 'सुरक्षा-बंधन' में बँधे हैं। हमारी कलाई को सभी ने 'सुरक्षा-बंधन' के पवित्र एवं अटूट धागों से सजाया है। हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि सभी के हृदय की गहराइयों से हम पुलिस जनों को दुआएँ, आशीष व शुभकामनाएँ मिलेंगी, ताकि हम और भी अधिक मज़बूती से सभी की सुरक्षा कर पाने में कामयाब हों...
तह-ए-दिल से सभी को रक्षा-बंधन के पावन पर्व पर बारम्बार शुभकामनाएँ...
लेखक अजय कुमार, आईपीएस पुलिस अधीक्षक, मैनपुरी