धर्म-कर्म

खीर तो थी ही नहीं, ये तो नीम करोली बाबा का आशीर्वाद था।

Shiv Kumar Mishra
26 Nov 2020 5:12 PM GMT
खीर तो थी ही नहीं, ये तो नीम करोली बाबा का आशीर्वाद था।
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दोपहर के 12 बजे थे और हर रोज की तरह नारायण बाबा नीम करोली बाबा को रामायण पढ़ कर सुना रहे थे। नीम करोली बाबा ने 1973 में महा समाधि ले ली थी लेकिन नारायण बाबा के लिए तो वो हनुमान जी थे – अजर और अमर। नीम करोली बाबा की ऐसी कृपा थी नारायण बाबा पर कि एक बार वृन्दावन आश्रम में आनंदमयी माँ ने एक भंडारा किया तो बाबा ने नारायण बाबा से कहा कि तुम जाकर देवरहा बाबा (एक विरले संत) को प्रसाद देकर आओ। देवराहा बाबा यमुना तीरे रहा करते थे और किसी किसी को ही दर्शन दिया करते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि कोई उनकी उम्र का कभी पता नहीं लगा पाया ( उनकी उम्र 250 वर्ष से ज्यादा बताई जाती थी)। देवराहा बाबा ने नारायण बाबा से कहा कि नीम करोली बाबा भी अमर है और उन्हें कभी मृत नहीं समझना। वो हमेशा रहेंगे। नारायण बाबा ने ये बात गाँठ बाँध ली और जैसे नीम करोली बाबा के सशरीर रहते उन्हें वो रामायण पढ़कर सुनते थे वैसे ही उनकी महा समाधि के बाद भी ये सिलसिला जारी है।

ये बात 1982 की है। बाबा कश्मीरी गेट मंदिर में रामायण पढ़ने में मग्न थे। अचानक एक व्यक्ति रोता हुआ वहां आ गया। पहली बार आया था वहां। आव देखा न ताव सीधे नारायण बाबा के पांव पकड़ लिए। नारायण बाबा का एक नियम है कि जब वो रामायण पाठ करते हैं तो सिर्फ अपने गुरु के लिए और तब वो किसी से बात नहीं करते। नारायण बाबा ने कहा, जा नीम करोली बाबा से कह दे। वो व्यक्ति मंदिर में गया तो नीम करोली बाबा की तस्वीर देखी। परेशान था लेकिन यकीन नहीं था कि जब कोई जीवित ही नहीं है तो वो मदद कैसे कर सकता है। मंदिर से बाहर निकला तो नारायण बाबा ने कहा कि तू बहुत अच्छे वक़्त पर आया। नीम करोली बाबा रामायण सुन रहे थे और तेरी अर्जी भी लग गयी। जा तेरा टायर वहीँ झाड़ियों में मिल जायेगा। ट्रक ड्राइवर अधूरे मन से दोबारा मरघट वाले हनुमान जी के मंदिर की तरफ बढ़ा। वहां पहुंचा दो बच्चे उसका नया टायर लेकर बैठे हैं। बच्चों ने कहा कि हमने आपको बहुत आवाज लगायी लेकिन आप चले गए फिर हमें किसी ने कहा कि वो दोबारा आएगा तुम इंतज़ार करो।

टायर पाकर वो तो ख़ुशी सा हो गया। दोबारा पहुंचा नारायण बाबा के पास। बोला आपका कहा सच हो गया और मैं बच गया। पांव छूकर बोला बाबा मैं एक भंडारा करना चाहता हूँ यहाँ पर। नारायण बाबा ने मना किया। बोले की वैसे हैं अपने बच्चों को मिठाई खिला देना। लेकिन ट्रक ड्राइवर अड़ गया और बोला गरीब हूँ लेकिन भक्त हूँ मैं भी। उसकी ज़िद पर नारायण बाबा ने कहा कि अगले मंगलवार को सवा मणी खीर बना लाना उतना काफी है। उसने तुरंत हाँ भर ली। लेकिन कहा कि मैं लोग जुटा नहीं पाउँगा आप कुछ लोगों को निमंत्रण दे दीजियेगा। बाबा ने हाँ भर ली।

वो व्यक्ति घर पहुंचा आप बीती पत्नी और भाई को सुनाई। और अगले मंगलवार को सवामणी भंडारे के बारे में भी बताया। पत्नी, भाई और बच्चों ने कहा कि ऐसे दिव्य मंदिर हम भी चलेंगे। पत्नी ने बिना बताए अपने परिवार को भी न्योता दे दिया। मंगलवार आया और सभी खीर का प्रसाद लेकर नारायण बाबा के पास पहुंच गए। उधर नारायण बाबा बहुत से लोगों को न्योता दिया हुआ था। भीड़ ज्यादा थी और खीर बेहद कम। नारायण बाबा को गुस्सा आ गया कि तुमने वचन की लाज नहीं रखी और मूढ़भाव में इतने लोगों को न्यौता दे दिया। कहकर मंदिर से बाहर आकर बैठ गए। ट्रक ड्राइवर ने रोते हुए पाँव पकड़ लिए। लेकिन बाबा ने ध्यान नहीं दिया।

लोग प्रसाद के इंतज़ार में थे लेकिन बाबा शांत होकर बैठ गए। इतने में गुरु मां वहां आ गयीं और बोलीं कि अगर आपने इस बच्चे की लाज नहीं रखी तो मैं आपसे बात नहीं करूंगी। गुरु मां के कठोर वचन सुनकर नारायण बाबा मंदिर के अंदर गए और नीम करोली बाबा की तस्वीर से एक लाल रंग की चुनरी उतार लाये और खीर के भगोने को उस कपडे से ढक दिया। नीम करोली बाबा को भोग लगाने के बाद प्रसाद बाटने का काम शुरू हुआ। तकरीबन 50 लोग वहां मौजूद थे और न जाने कहाँ से लगभग 100 लोग और आ गए। ट्रक ड्राइवर डर के मारे एक पेड़ के नीचे बैठ गया। गुरु मां ने प्रसाद बाटने का काम शुरू किया। एक एक कर सभी लोगों को भर पेट खीर मिलने लगी। ये देखकर ट्रक ड्राइवर खुशी से झूम गया। सबको खीर मिली और अंत में नारायण बाबा और ट्रक ड्राइवर को खीर मिलनी रह गयी। ट्रक ड्राइवर ने जल्दबाज़ी में वो लाल कपड़ा भगोने से हटा दिया। तो पाया की वो तो खाली है।

गुरु मां खूब हँसी और बोलीं, "पगले खीर तो थी ही नहीं। ये तो नीम करोली बाबा का आशीर्वाद था

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