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भारतीय पूजन पद्धति में नारियल अर्थात श्रीफल का महत्वपूर्ण स्थान है। कोई भी वैदिक या दैविक पूजन प्रणाली श्रीफल के बलिदान के बिना अधूरी मानी जाती है। यह भी एक तथ्य है कि महिलाएं नारियल नहीं फोड़तीं। श्रीफल बीज रूप है, इसलिए इसे उत्पादन अर्थात प्रजनन का कारक माना जाता है। श्रीफल को प्रजनन क्षमता से जोड़ा गया है। स्त्रियों बीज रूप से ही शिशु को जन्म देती हैं और इसलिए नारी के लिए बीज रूपी नारियल को फोड़ना अशुभ माना गया है। देवी-देवताओं को श्रीफल चढ़ाने के बाद पुरुष ही इसे फोड़ते हैं। शनि की शांति हेतु नारियल के जल से शिवलिंग पर रुद्रभिषेक करने का शास्त्रीय विधान भी है।
भारतीय वैदिक परंपरा अनुसार श्रीफल शुभ, समृद्धि, सम्मान, उन्नति और सौभाग्य का सूचक माना जाता है। किसी को सम्मान देने के लिए उनी शॉल के साथ श्रीफल भी भेंट किया जाता है। भारतीय सामाजिक रीति-रिवाजों में भी शुभ शगुन के तौर पर श्रीफल भेंट करने की परंपरा युगों से चली आ रही है। विवाह की सुनिश्चित करने हेतु अर्थात तिलक के समय श्रीफल भेंट किया जाता है। बिदाई के समय नारियल व धनराशि भेंट की जाती है। यहां तक की अंतिम संस्कार के समय भी चिता के साथ नारियल जलाए जाते हैं। वैदिक अनुष्ठानों में कर्मकांड में सूखे नारियल को वेदी में होम किया जाता है।
श्रीफल कैलोरी से भरपूर होता है। इसकी तासीर ठंडी होती है। इसमें अनेक पोषक तत्व होते हैं। इसके कोमल तनों से जो रस निकलता है उसे नीरा कहते हैं उसे लज्जतदार पेय माना जाता है। सोते समय नारियल पानी पीने से नाड़ी संस्थान को बल मिलता है तथा नींद अच्छी आती है। इसके पानी में पोटेशियम और क्लोरीन होता है जो मां के दूध के समान होता है। जिन शिशुओं को दूध नहीं पचता उन्हें दूध के साथ नारियल पानी मिलाकर पिलाना चाहिए। डि-हाइड्रेशन होने पर नारियल पानी में नीबू मिलाकर पिया जाता है। इसकी गिरी खाने से कामशक्ति बढ़ती है। मिश्री संग खाने से गर्भवती स्त्री की शारीरिक दुर्बलता दूर होती है तथा बच्चा सुंदर होता है।