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पं, वेदप्रकाश पटैरिया शास्त्री जी (ज्योतिष विशेषज्ञ)
ज्योतिष ग्रन्थ सारावली के अनुसार सभी ग्रह अपनी दशा मे अपने गुण-दोष के आधार पर शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं । ऐसे में पापग्रह माने जाने वाले शनि की दशाओं का विवेचन ज्योतिषियों ने गहन शोध एवं अनुभव के आधार पर किया है। एेसा इसलिए कि शनि अनुकूल होने पर सुख की झडी लगा देता है, तो प्रतिकूल होने पर भयंकर कष्ट देता है।
शनि की साढेसाती, ढैैैैया, कंटक, महादशा, अंतर्दशा और यहां तक कि प्रत्यंतर्दशा भी घातक होती है। शनि के प्रकोप से ही राजा विक्रमादित्य को भयंकर कष्ट भोगने पडे. भगवान राम को वनवास भोगना पडा। वैसे, शनि को न्याय का देवता कहा जाता है. अत: इसकी दशा इत्यादि में अच्छे ज्योतिष से परामर्श लेकर उचित उपाय किए जाएं तो शनिदेव का कोप कुछ शांत भी किया जा सकता है.
शनि की महादशा के अन्तर्गत शनि, बुध, केतु, शुक्र, सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, राहु एवं बृहस्पति की अन्तर्दशाएं आती हैं. देखते हैं इन अन्तर्दशाओं के परिणाम-
शनि में शनि की अन्तर्दशा-
शनि महादशा में शनि की अन्तर्दशा में जातक पर दु:खों यानी कष्टों का पहाड टूट पडता है। उसको बार-बार अनादर यानी अपमान का सामना करना पडता है. वह समाज विरोधी और घूमंतु हो जाता है। उसके कारण पत्नी-पुत्र दु:खी होते हैं। जातक लंबी बीमारियों से भी परेशान रहता है।
शनि में बुध की अन्तर्दशा-
शनि महादशा में जब बुध क अन्तर्दशा आती है, तब जातक के भाग्य में वृद्धि होती है. सुख-संपत्ति और सम्मान में बढोतरी होती है. वह आनंद का अनुभव करता है. जातक सदाचार की ओर प्रवृत्त होता है. चित्तवृत्ति कोमल निर्मल हो जाती है।
शनि में केतु की अन्तर्दशा-
शनि महादशा में केतु की अन्तर्दशा में पत्नी और सन्तान से वैचारिक मतभेद उभरते हैं. जातक के मन में भय बढता है. पित्त एवं वातजनित बीमारियों से वह परेशान रहता है. बुरे-बुरे सपने देखता है और अनिद्रा का शिकार होता है. यानी उसे पूरी नींद नहीं आती. रातभर बुरे भाव मन में आते रहते हैं और आशंकाएं उभरती रहती हैं.
शनि में शुक्र की अन्तर्दशा-
शनि महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा में व्यक्ति के दु:खों का अंत होकर सुख मिलने लगता है. उसके संपर्क में उसके हित में सोचने वाले आते हैं. यश और सम्मान की प्राप्ति होती है. शत्रुआें का शमन होता है. पुत्र एवं कार्यक्षेत्र यानी प्रोफेशन एवं नौकरी से सुख प्राप्त होता है।
शनि में सूर्य की अन्तर्दशा-
शनि महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा आने पर जातक को विभिन्न प्रकार के संकटों का सामना करता पडता है. पत्नी, पुत्र, सम्मान, यश, संपत्ति एवं आत्मविश्वास का नाश होता है. नेत्र एवं उदर रोग परेशान करते हैं. दरअसल, शनि और सूर्य घोर शत्रुु माने गए हैं. इसलिए शनि में सूर्य की अंतर्दशा कष्टकारी रहती है.
शनि में चन्द्रमा की अन्तर्दशा-
शनि महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा में सुखों का क्षरण होता है यानी सुख में कमी आती है. जातक को पत्नी वियोग झेलना पड सकता है. आत्मीयजनों से संबंध विच्छेद की स्थितियां बनती हैं. व्यक्ति को वातजन्य बीमारी घेरती है. हालांकि धनागम होता है यानी पैसा आता है।
शनि में मंगल की अन्तर्दशा-
शनि महादशा में ङ्कंगल क अन्तर्दशा जातक को स्थानांतरण करवाती है. दूसरे शब्दों में पत्नी, पुत्र, मित्र इत्यादि से दूर जाना पडता है. जातक भयभीत और आशंकति-सा रहता है. यश में कमी आती है।
शनि में राहु की अन्तर्दशा-
शनि महादशा में राहु की अन्तर्दशा में स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होती है यानी यह अंतर्दशा रोग लाती है. सरकार और शत्रु से परेशानी होती है. संपत्ति एवं यश की हानि होती है. हर काम में बाधा आती है।
शनि में बृहस्पति की अन्तर्दशा-
शनि महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा आमतौर पर श्रेष्ठ फल प्रदान करती है. जातक का गृहस्थी सुख बढता है. स्थाई संपत्ति में वृद्धि होती है. पदोन्नति होती है एवं सम्मानजनक पद की प्राप्ति होती है. इस दशा में जरूरत पडने पर जातक को सत्ता का संरक्षण भी मिलता है. जातक के मन में वरिष्ठजनों एवं धर्म के प्रति आदरभाव बढता है. वैसे, शनि महादशा में विभिन्न ग्रहों की अन्तर्दशाओं के उपरोक्त फल जन्मकुंडली में ग्रहाें के पारस्परिक संबंधों पर निर्भर है। इसलिए जन्मकुंडली में यह देखकर ही फलादेश किया जाना चाहिए।
किसी भी प्रकार की समस्या समाधान के लिए पं. वेदप्रकाश पटैरिया शास्त्री जी (ज्योतिष विशेषज्ञ) जी से सीधे संपर्क करें = 9131735636