- होम
- राष्ट्रीय+
- वीडियो
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- Shopping
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- आजीविका
- विविध+
बकरीद कब मनाई जाएगी? क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी, जानिए तारीख, इतिहास और महत्व
Bakrid 2023: इस साल बकरीद पर्व 28 जुलाई 2023 को मनाई जाएगी। बकरीद को ईद-उल-अजह के नाम से भी जाना जाता है। मुसलमानों के लिए मीठी यानी ईद-अल-फित्र की तरह ही बकरीद भी काफी मायने रखता है। इस दिन बकरों की कुर्बानी दी जाती है।
मान्यताओं के मुताबिक, ईद-उल-अजह मीठी ईद के करीब दो महीने के बाद इस्लामिक कैलेंडर के सबसे आखिरी महीने में मनाई जाती है। इस्लाम धर्म में बकरीद को बलिदान का प्रतीक माना जाता है। बकरीद पर जहां बकरों की कुर्बानी दी जाती है वहीं ईद-अल-फित्र पर सेवई की खीर बनाई जाती है। तो आइए जानते हैं बकरीद यानी ईद-उल-अजह के बारे में।
बकरीद में कुर्बानी का क्या है इतिहास?
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, पैगंबर हजरत इब्राहिम मोहम्मद ने अल्लाह की इबादत के लिए खुद को समर्पित कर दिया था। उनकी इबादत से खुदा इतने खुश हुए कि उन्होंने उनकी परीक्षा ली। अल्लाह ने इब्राहिम से उनकी सबसे कीमती चीज की कुर्बानी मांगी। तब उन्होंने अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करना चाहा।
दरअसल, हजरत इब्राहिम के लिए उनका बेटा ही सबसे कीमती और अजीज था इसलिए उन्होंने उसकी ही कुर्बानी देने का फैसला किया। लेकिन कहते हैं कि हजरत इब्राहिम ने जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही तो अल्लाह ने उनके पुत्र की जगह एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी। अल्लाह पैगंबर हजरत इब्राहिम मोहम्मद की इबादत से बेहद खुश हुए। कहते हैं कि तब से ही ईद-उल-अजहा पर कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई।
बकरीद का महत्व
बकरीद का पर्व हर पूरे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। बकरीद के दिन इस्लाम धर्म को मानने वाले नए कपड़े पहनते हैं और ईदगाह या मस्जिद में जाकर नमाज अदा करते हैं। इस दिन हर मुस्लिम घर में कुर्बानी दी जाती है और उस कुर्बानी को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। पहले भाग रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए होता है, वहीं दूसरा हिस्सा गरीब, जरूरतमंदों को दिया जाता है जबकि तीसरा परिवार के लिए होता है।