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भगवान श्रीकृष्ण का रंग सांवला था। श्रीकृष्ण जब छोटे थे तो बलराम जिन्हे बल दाऊ भी कहा जाता है। अक्सर चिढ़ाते रहते थे। एक दिन बात है कृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना नदी पर खेलने के लिए नहीं पहुंचे और उनके सभी मित्र युमना किनारे खेलने के लिए पहुंच गए। मैया यशोदा ने देखा कि कृष्ण एक कोने में उदास बैठे हुए हैं, तो उन्होंने कृष्ण से पूछा कि कान्हा तुम आज खेलने के लिए क्यों नही गये, तुम्हारे सभी सखा-मित्र तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे।
इस पर भगवान श्रीकृष्ण माता यशोदा से कहते हैं मैया अब मैं खेलने नहीं जाउंगा। इस पर माता यशोदा पूछती कि क्यों मेरे लाला खेलने क्यों नहीं जाओगे। तब कृष्ण कहते हैं कि बलराम दाऊ मुझे बहुत चिढ़ाते हैं। वो मुझसे कहते हैं कि मुझे खरीदकर लाया गया है। तुम मेरी माता नहीं हो। अब ऐसे में कैसे खेलने जाऊं।
मां उनकी यह बात मुझे बहुत सताती है मैं उनसे नाराज हूं इसीलिए मैं खेलने नहीं जा रहा हूं। मां मेरे मित्रों के सामने बल दाऊ मुझे पूछने लगते हैं कि तेरी माता कौन है? तेरे पिता कौन हैं? नन्दबाबा तो गोरे हैं, यशोदा मैया भी गोरी हैं, तू काला कैसे हो गया।
भोलेपन से श्रीकृष्ण कहते है मैया इतना ही नहीं अब तो ग्वाल-बाल भी मुझे छेड़ने लगे हैं, वे मुझे बहला-फुसला कर नचाते हैं और फिर सब हंसते हैं। इतना कहने के बाद भगवान कृष्ण और क्रोध में आ जाते हैं और ताना देकर अपनी माता से कहते हैं मैया तू ने सिर्फ मुझे ही मारना सीखा है। बल दाऊ से कभी कुछ नहीं कहती हो।
कान्हा की बातों को सुनकर माता यशोदा मन ही मन मुस्कराती हैं। उन्हें कान्हा की बातों में आनंद आने लगता है और कान्हा को खुश करने के लिए कहती हैं कि तुम क्यों परेशान होते हैं। बलराम तो चुगलखोर हैं। तुम क्यों उनकी बातों में आते हो। मैं ही तुम्हारी मैया हूं, मैं गौमाता की शपथ लेकर कहती हूं कि तुम मेरे ही पुत्र हो। तब कहीं जाकर श्रीकृष्ण मानते हैं।