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भगवान शिव ने नागराज वासुकी को क्यों बनाया अपने गले का हार ?
हिन्दू धर्म के अनुसार, सावन का महीना पूर्ण रूप से भगवान शिव को समर्पित होता है और सावन के महीने का सबसे प्रमुख त्योहार नाग पंचमी को माना गया है. आज नाग पंचमी है. ये पर्व भगवान शिव और नाग देवता से संबंधित होता है. नाग देवता की पूजा करके कोई भी व्यक्ति न केवल अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है, बल्कि इससे वह व्यक्ति भगवान शिव का आशीर्वाद भी प्राप्त करने में सफल रहता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार नाग पंचमी का त्योहार हर वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. धार्मिक मान्यताओं में पंचमी तिथि के स्वामी नाग होते हैं. इसलिए इस दिन नागों की विशेष रूप से पूजा करने का विधान है.
नाग पंचमी की पौराणिक कथा
इस कथा के अनुसार नागों के राजा वासुकी अपने सगे सम्बन्धियों और परिवार के साथ पाताल लोक में रहते थे. वह भगवान शिव की पूजा में लीन रहा करते थे. धार्मिक मान्यता है कि शिवलिंग की पूजा का प्रचलन नाग जाति ने ही शुरू किया था. समुद्र मंथन के समय नागराज वासुकी ने मेरु पर्वत से लिपटकर रस्सी का कार्य किया था.
उन्हें एक तरफ से दानव और दूसरी तरफ से देवता पकड़ कर खींच रहे थे. इस दौरान नागराज बुरी तरह से घायल हो गए थे. संसार के कल्याण हेतु समुद्र मंथन के कार्य में इनके अतुलनीय सहयोग से भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और उन्हें अपने गले में सुशोभित करने का वरदान दिया.
बता दें कि तभी से नागराज वासुकी भगवान शिव के गले पर विराजमान होकर उनकी शोभा बढ़ा रहें हैं. वहीं नागराज वासुकी के ही भाई शेषनाग भगवान विष्णु की शैय्या स्वरूप में विराजमान हैं. नागपंचमी के दिन नागों की पूजा से भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं और उन्हें मनवांछित फल प्राप्त होने का वरदान देते हैं.