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श्राद्ध पक्ष मे क्यों किया जाता है पिंडदान आखिर पिंडदान का क्या है महत्व
हिंदू धर्म मे मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान परिवार वालों का आर्शीवाद देने के लिए स्वर्गलोक से पितरों की आत्मा धरती पर आती है। ऐसे में पितरों की आत्मिक शांति के लिए पिंडदान व तर्पण किया जाता है। मातृ देवो भवः तथा पितृ देवो भवः की भावना के साथ पितरों की आराधना की जाती है। हिंदू धर्मग्रंथों में भी पितृ श्राद्ध का विशेष उल्लेख किया गया है। हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक के 14 दिनों को श्राद्ध पक्ष के रूप में मनाया जाता है। हिंदू पुराणों में भी बताया गया है कि पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
Pitru Paksha किसे करना चाहिए पिंडदान धार्मिक मान्यता है कि Pitru Paksha के दौरान पुत्रों को अपने पूर्वजों का पिंडदान, तर्पण, व श्राद्ध के बाद ब्राह्मण भोज कराना चाहिए, लेकिन यदि पुत्र जीवित न हो तो पौत्र, प्रपौत्र या विधवा पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है। इसके अलावा पुत्र के जीवित नहीं रहने पर पत्नी का श्राद्ध पति भी कर सकता है। यदि पिता के कई पुत्र हो तो सबसे बड़े पुत्र को ही श्राद्ध करना चाहिए। यदि सभी भाई अलग-अलग रहते हैं तो सभी पुत्र अलग-अलग अपने घरों में श्राद्ध कर सकते हैं। इसके अलावा यदि संयुक्त परिवार के रूप में सभी साथ रहते हैं तो एक ही श्राद्ध करें तो वह अच्छा होता है। भाई या उनके पुत्र भी कर सकते हैं श्राद्ध यदि किसी का पुत्र नहीं तो तो उसके दिवंगत व्यक्ति का भाई व उसके पुत्र व या अन्य कुंटुम्बी भी श्राद्ध व पिंडदान कर सकते हैं। यदि कोई भी उत्तराधिकारी न हो तो प्रपौत्र या परिवार का कोई भी व्यक्ति श्राद्ध कर सकता है। तर्पण तथा पिंडदान केवल पिता के लिए ही नहीं बल्कि समस्त पूर्वजों एवं मृत परिजनों के लिए भी किया जा सकता है।
जानें क्या है श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान का धार्मिक महत्व पितृ पक्ष में पिंडदान मृत्यु तिथि के दिन ही किया जाता है। इस दौरान देवताओं और ऋषियों को जल अर्पित करके तृप्त किया जाता है। पितृ पक्ष में पुरुषों को जल, तिल जौ, दुग्ध, कुश और श्वेत पुष्प आदि से तर्पण और श्राद्ध संपन्न किया जाता है। गो-ग्रास देकर ब्राह्मण भोजन अवश्य कराना चाहिए। पिंडदान दोपहर के समय किया जाता है। जिन लोगों की मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो उनका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए।