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हिन्दू धर्म में शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित माना जाता है. इस दिन भक्त शनिदेव की पूजा अर्चना करते हैं और शनिदेव को तेल चढ़ाते हैं. शनि देव को न्याय का देवता कहा जाता है. मान्यताओं के अनुसार, शनि देव क्रोधी स्वभाव के हैं. जिसपर शनि देव प्रसन्न होते हैं वो रंक से राजा हो जाता है और जिस पर शनि देव का क्रोध बरसता है उसके जीवन में कई परेशानियां लगी रहती हैं. शनिदेव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है. भगवान शनिदेव के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधि देवता यम हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि शनि देव को उनकी पत्नी ने श्राप दिया था.
पौराणिक ग्रन्थ ब्रह्मपुराण के अनुसार, बाल्यकाल से ही शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे. वे भगवान श्रीकृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा करते थे. युवावस्था में उनके पिताश्री ने उनका विवाह चित्ररथ की कन्या से करवा दिया. उनकी पत्नी सती, साध्वी एवं परम तेजस्विनी थी. एक रात्रि वह ऋतु स्नान कर पुत्र प्राप्ति की इच्छा लिए शनिदेव के पास पहुंची, पर देवता तो भगवान श्रीकृष्ण के ध्यान में लीन थे. उन्हें बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी. उनकी पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई. उनका ऋतु काल निष्फल हो गया. इसलिए उन्होंने क्रुद्ध होकर शनिदेव को श्राप दे दिया कि आज से जिसे तुम देखोगे, वह नष्ट हो जाएगा
ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया. उनकी धर्मपत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ किंतु श्राप के प्रतिकार की शक्ति उनमें नहीं थी, तभी से शनिदेव अपना सिर नीचा करके रहने लगे, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि किसी का अनिष्ट हो
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह यदि कहीं रोहिणी भेदन कर दे, तो पृथ्वी पर 12 वर्षों का घोर दुर्भिक्ष पड़ जाए और प्राणियों का बचना ही कठिन हो जाए. शनि ग्रह जब रोहिणी भेदन कर बढ़ जाता है, तब यह योग आता है. यह योग महाराज दशरथ के समय में आने वाला था. जब ज्योतिषियों ने महाराज दशरथ को बताया कि यदि शनि का योग आ जाएगा तो प्रजा अन्न-जल के बिना तड़प-तड़पकर मर जाएगी
प्रजा को इस कष्ट से बचाने हेतु महाराज दशरथ अपने रथ पर सवार होकर नक्षत्र मंडल में पहुंचे. पहले तो उन्होंने नित्य की भांति शनिदेव को प्रणाम किया, इसके पश्चात क्षत्रिय धर्म के अनुसार उनसे युद्ध करते हुए उन पर संहारास्त्र का संधान किया. शनिदेव, महाराज दशरथ की कर्तव्यनिष्ठा से अति प्रसन्न हुए और उनसे कहा वर मांगो- महाराज दशरथ ने वर मांगा कि जब तक सूर्य, नक्षत्र आदि विद्यमान हैं, तब तक आप संकटभेदन न करें. शनिदेव ने उन्हें वर देकर संतुष्ट किया. शनिवार के दिन इस कथा को पढ़ने से धन संकट दूर होता है.