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कुंडली मे योग :अकूत धन-सम्पदा देता है शनि-मंगल का साथ!
शनि मंगलयोग को जीवन मे अत्यंत कष्टकर्मन जाता है, परन्तु मंगल तकनीक का कारक है और शनि कार्य क्षमता का, दोनो मिलकर तकनीकी कार्यो में सफ़लकर धन लाभ अवश्य देते है।।
तकनीकी विद्या देते हैं शनि-मंगल, अकूत धन-सम्पदा देता है शनि-मंगल का साथ:-
कुंडली में ग्रहों की स्थिति आजीविका का निर्धारण करती है। सामान्य तौर पर कुंडली में दशम एवं सप्तम भाव से नौकरी एवं व्यवसाय आदि के बारे में विचार किया जाता है। किन्तु इसके अलावा इन भावों के स्वामियों की स्थिति भी अति महत्वपूर्ण होती है।
गुरु, बुध, सूर्य, चन्द्र आदि गैरतकनीकी विद्याओं से संबंधित आजीविका की सूचना देते हैं। मंगल एवं शनि तकनीकी विद्याओं से संबंधित नौकरी एवं व्यवसाय आदि की सूचना देते हैं। मंगल-शनि अथवा राहु-शनि रक्षा विभाग में तकनीकी विद्या का मार्ग प्रशस्त करते हैं। गुरु-शनि अथवा बुध-शनि गैररक्षा विभाग में तकनीकी शिक्षा एवं तत्संबंधित व्यवसाय का निर्धारण करते हैं।
दशम भाव में स्थित स्वगृही शनि भी तकनीकी विद्या एवं आजीविका को भंग करता है। यदि सूर्य से युक्त हो तथा बारहवें भाव में कोई भी ग्रह हो। नीचस्थ अथवा उच्चस्थ होकर किसी भी तरह शनि एवं मंगल एक साथ संयुक्त होकर विविध भावों में निम्न रूप से व्यवसाय निर्धारित करते हैं। किन्तु यहां एक बात अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि किसी भी हालत में जिस राशि में शनि-मंगल हो उसका स्वामी अस्त अथवा नीचस्थ होकर अशुभ भावस्थ न हो।
1:- यदि दूसरे भाव में शनि एवं मंगल हो तो जातक धातुविद् होता है। 'वागेकुजरविजः मेदिन्यामुत्सृश्टोऽर्थवान् खलु। भवेदल्पवीर्ये द्वितीयेशो भंगयोगानुवर्तितः।
2- यदि प्रथम भाव में शनि-मंगल की युति हो तो जातक विद्युत अभियंता होगा। 'वक्रेविलग्ने समन्द जातः चपलाद्युतः कर्म विशेषवृत्तिः।
3- यदि तृतीय भाव में शनि-मंगल युति हो तो जातक भूविज्ञानी होता है।
पराक्रमें भूमिसुतो शनैश्चरोर्वीमभूयताम्। समृद्धिं तस्याः लब्ध्वाऽदृष्टो सद्गोचरः।
4- यदि चतुर्थ भाव में यही युति हो तो व्यक्ति वास्तुविद् होता है। समन्दमेदिनीजातो सुखे नरोऽतिवीर्यवान्। गृहग्रहविज्ञोऽथवास्तुशास्त्र निपुणो भवेत्।
5- यदि पंचम् भाव में मंगल-शनि की युति हो तो मनुष्य खनन अभियंता होता है। 'क्षारलवणाम्लऽन्वेषणार्थे भूदोहन यो करिश्यति। तद्योगऽपरिहार्य पंचमें कुजमंदेन जायते।
6- यदि छठे भाव में शनि-मंगल युति होती है। तो प्रायः देखा गया है कि जातक अन्तरिक्ष विज्ञानी होता है। किन्तु शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार ऐसा व्यक्ति खगोलशास्त्री होना बताया गया है।
रसमंदरक्तरतखेटचार नृप कालत्रयी भिज्ञो भवेत्। रिपु ईश तुंग बलयुक्त मानयश विष्णुप्रिया वर प्राप्नुयात्।'
7- यदि सातवें भाव में यही युति बनती है। तो जातक यांत्रिक अभियंता बनता है।
रविसुत धरातनय संयोगे जाया भावे विराजते। कुशलयांत्रिको नलनीलेन सेतुकार्य करवामहे।
प्रस्तुत पंक्तियां भगवान राम के समुद्र पर पुल बंधवाने के समय कुशल कारीगर की खोज के समय ऋषि नारद द्वारा जन्मपत्री के आधार पर नलनील के बारे में कही गई हैं।
8- आठवें भाव में यदि शनि-मंगल युति हो तो जातक शस्त्र विज्ञान विशारद होता है।
' निपुणो आयुधकर्मी जातो शनिवक्रोऽष्टमें भवेत्। व्ययस्थ बलयुक्तोष्टमेषे तद्निर्गत फल विशेषतः।
9- नौवें भाव में शनि-मंगल की युति रासायनिक अभियंता बनाती है।
भाग्य भावस्थे वक्रे सरविसुत रसरसायनः। करोति बहुधाभिधेयो रसज्ञः नर सदावृतिः।
10- दशम भाव में यही युति उपस्कर अभियंता बनाती है।
' क्षुद्रोपस्कर रचनाकार्ये नरो जन्मना जायते। राज्ये युति मंदवक्रस्य हीनप्रभा विवर्जितः।
11- एकादश भाव में शनि-मंगल की युति दुर्ग व सैन्य अभियंता बनाती है। एकादश भाव में दुर्ग अभियंता कह कर यह संकेत किया गया है कि ऐसा जातक अनेक तकनीकी विधाओं का विशेषज्ञ होता है। एक दुर्ग के अन्दर अनेक निर्माण एवं रचना का कार्य होता है तथा प्राचीन काल में दुर्ग की सुरक्षा एवं संरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऐसे ही विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती थी। जो बहुमुखी तकनीकी विशेषज्ञ हो तथा बहुत सारे व्यक्तियों तक दुर्ग की गोपनीयता न पहुंचे। एक ही विशेषज्ञ द्वारा सारे काम पूरे किए जा सकें।
इस प्रकार ऐसे व्यक्ति को भारी भरकम वेतन शासन द्वारा देकर राजकीय नौकरी में रखा जाता था। प्रायः इसी बात का ध्यान में रखकर ज्योतिषाचार्यों ने एकादश भाव में शनि-मंगल की युति को अकूत धन सम्पदा देने वाला बताया है। वर्तमान समय में भारतीय सेना में सैन्य अभियंता सेवा में इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए दुर्ग अभियंता की नियुक्ति की जाती है।।
किसी भी प्रकार की समस्या समाधान के लिए पं. वेदप्रकाश पटैरिया शास्त्री जी (ज्योतिष विशेषज्ञ) जी से सीधे संपर्क करें = 9131735636