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आईएएस के तैयारी के लिए महत्त्वपूर्ण बात, कॉड प्लस एवं हिंद प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन
विराट आईएएस अकादमी सहारनपुर द्वारा बताया गया कि क्वॉड प्लस वर्तमान में एक विचार है. जिसे हाल ही में जापानी विदेश मंत्री तारो कोनो ने प्रस्तुत किया है. उन्होंने सुझाव दिया कि ब्रिटेन और फ्रांस को quad समूह में शामिल किया जाए .इस तरह quad में ब्रिटेन और फ्रांस को शामिल कर के जो नया समूह बनेगा उसे ही कॉड प्लस कहा जा रहा है. क्वॉड सुरक्षा वार्ता से तात्पर्य एक फोरम से है जिसे अमेरिका ऑस्ट्रेलिया भारत और जापान मिलकर बनाना चाहते हैं .कुछ जगह इस फोरम को एशियन आर्ट ऑफ डेमोक्रेसी कहा जा रहा है ,तो कहीं कहीं इस एशिया का नाटो भी कहा जा रहा है. दरअसल क्वाड सुरक्षा वार्ता जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के दिमाग की उपज है.उन्होंने इसकी कल्पना की थी .
2007 इसके गठन के बाद चीन द्वारा सभी देशों को इसके विरोध में पॉलीटिकल नोट भेजा गया और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री केविन रूड ने चीन की आपत्ति को स्वीकार करते हुए 2008 में इससे बाहर निकलने की घोषणा कर दी ,जिसके कारण क्वॉड भंग हो गया था ,भारत अमेरिका और जापान आज भी सुरक्षा फोरम में शामिल है.
ऑस्ट्रेलिया के इस समूह से बाहर होने के कई कारण थे जैसे कि ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था चीन से कमोडिटी एक्सपोर्ट पर भारी मात्रा में डिपेंड करती है ऑस्ट्रेलिया में राजनीतिक दलों के विदेशी फाइनेंसिंग से संबंधित नियमों के चलते ऑस्ट्रेलिया राजनीति में चीनी पैसा बड़ी मात्रा में लगा हुआ है.
जापान और भारत के विपरीत ऑस्ट्रेलिया का चीन के साथ कोई सीधा विवाद भी नहीं है. दोबारा फिर से क्वाड एक हकीकत बनेगा इसकी संभावना प्रबल है ,लेकिन इसके निर्माण में कुछ रुकावटें हैं जिन्हें दूर करना आवश्यक है.
कई कारणों से ग्रुपिंग में ऑस्ट्रेलिया को स्वीकार करने में भारत इच्छुक नहीं रहा है .ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था चीन के कमोडिटी एक्सपोर्ट पर भारी मात्रा में निर्भर करती है.
सच्चाई यह है कि आज एशिया प्रशांत क्षेत्र जिसे हाल ही में अमेरिका ने भारत प्रशांत क्षेत्र भी कह कर पुकारा था ,अब विश्व राजनीति के केंद्र में आ रहा है. अब इस क्षेत्र पर पूरी दुनिया की नजर है. चीन लगातार पूर्वी चीन सागर ,दक्षिण चीन सागर ,पश्चिमी प्रशांत महासागर ,और भारतीय महासागर, में लगातार अपना प्रभाव बढ़ा रहा है .यही नहीं उसने कुछ सालों से दक्षिण चीन सागर के द्वीपों और सागर इलाकों पर अपना प्रादेशिक अधिकार जताया है. अगर उसकी मंशा पूरी हो जाती है तो दक्षिण चीन सागर से होकर भारत और दूसरे देशों के व्यापारिक और सैनिक पोत की आवाजाही पर उसका नियंत्रण स्थापित हो सकता है. इसी आशंका से इस क्षेत्र के तमाम देश चिंतित हो गए हैं.
भारत के लिए या क्षेत्र व्यापक महत्व का है. भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी इस क्षेत्र में भारत के कार्यों की आधारशिला है ,और विदेश नीति में भी बड़ा महत्व रखती है .अमेरिका और भारत के चीन के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध तो हैं लेकिन कूटनीतिक मोर्चे पर दोनों के लिए चीन सबसे बड़ी चुनौती रहा है .इसलिए अमेरिका उसे चारों ओर से घेर लेना चाहता है .इस क्षेत्र के देशों जापान, वियतनाम ,साउथ कोरिया, और फिलीपीन से भारत के रक्षा और व्यापारिक संबंध है.
भारत ,अमेरिका ,जापान ,और ऑस्ट्रेलिया के बीच की सामरिक साझेदारी से चीन को अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करने के लिए मजबूर किया जा सकता है .इस क्षेत्र में उस के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित भी किया जा सकता है.
(सौजन्य से विराट आईएएस अकादमी सहारनपुर)