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इंजीनियर की नौकरी छोड़,खेती कर बना करोड़पति,पढ़े पूरी कहानी
बस्ती: उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अमरेंद्र प्रताप सिंह ने खेती में एक अलग कारनामा कर दिखाया है। उन्होंने गेहूं, धान, सरसों जैसी पारंपरिक खेती छोड़कर खस की खेती शुरू की है। इस खस से वह सुगंधित तेल बनाते हैं, जिसको मल्टी नेशनल कंपनियां खरीदती हैं। एक एकड़ से शुरू हुई खस की खेती आज 150 एकड़ तक पहुंच गई है। सालाना दो करोड़ तक का कारोबार हो रहा है। यही नहीं करीब 500 किसानों को रोजगार भी मुहैया करवाया गया है।
आपको बता दे कि, यह कहानी है, बस्ती जिले के गांव डिंगरापुर के एक किसान के बेटे की है, जो पढ़-लिखकर केमिकल इंजीनयर बना और सालाना 7 लाख रुपए की नौकरी भी पाई। कॉरपोरेट कल्चर में कुछ साल कटे, लेकिन मन हमेशा यही सोचता रहा कि दूसरों को रोजगार देने वाला कोई काम करना है।
अमरेंद्र बताते हैं कि देश में किसानों की स्थिति देखते हुए खेती में कुछ अलग करना चाहता था, सो नौकरी छोड़कर गांव आ गया। गेहूं, धान जैसी पारंपरिक खेती का हाल तो अच्छा नहीं था। ऐसे में कुछ अलग फसल का विचार आया, काफी जांच पड़ताल के बाद खस की खेती की शुरुआत की। यह एक सामान्य खेती की तरह ही है।
अमरेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि जब हमने खस की खेती का फैसला लिया तो सबसे पहले इसकी ट्रेनिंग की जरूरत थी। हमने लखनऊ में सी मैप सेंटर ज्वॉइन किया। यहां पर छह दिवसीय ट्रेनिंग ली और यहीं से खस के पौधे खरीदकर ले गया। सबसे पहले एक एकड़ में खस की खेती की शुरुआत की। पहली साल में ही अच्छी आमदनी हुई तो आसपास के किसानों को जोड़ना शुरू किया।
पहले तीन एकड़ और अब यह बढ़कर डेढ़ सौ एकड़ हो गई है। हमारे साथ करीब छह सौ किसान जुड़ चुके हैं, जो खस की खेती करके अच्छा पैसा कमा रहे हैं। आज कारोबार का टर्नओवर करीब दो करोड़ रुपए है। जब ये काम चलने लगा तो एमए, बीएड की डिग्री हासिल करने वाले हमारे साथी प्रेम प्रकाश सिंह भी साथ में जुड़ गए।
अमरेंद्र प्रताप बताते हैं कि खस के पेड़ की जड़ों से तेल निकाला जाता है। इसके लिए एक प्लांट लगाया हुआ है। शुरुआती दौर में इस प्लांट को लगाने के लिए तीन से पांच लाख रुपए खर्च किए। इससे तेल निकालने की आसवन विधि कहते हैं।
खस को रोपित करने के पहले खेत की तैयारी पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। इसके लिए सर्वप्रथम किसी भी प्रकार की मिट्टी, जिसमें पौध रोपण करना हो, उसे रोटावेटर या हैरो से एक जुताई करके पाटा लगा देना चाहिए।
मिट्टी में प्रति एकड़ 500 किग्रा जिप्सम मिलाना जरूरी है। इसके अलावा पौधों को रोपित करने से पहले फसल को दीमक से बचाने के लिए रिजेण्ट क्लोरोपालीफास 60 किलो डीएपी प्रति एकड़ खाद में मिलाकर मिट्टी में मिला देने से खस की जड़ों को दीमक से नुकसान पहुंचने का खतरा नहीं होता है।
खस की खुदाई से पहले जड़ से एक फीट ऊंचाई पर छोड़कर काटा जाता है। ऊपरी हिस्सों की कटाई के उपरान्त तुरन्त ही इसके जड़ों की खुदाई करना जरूरी है। क्योंकि कटाई के बाद तुरन्त खुदाई न करने से जड़ों में तेल का प्रतिशत घट जाता है। खस के ऊपरी हिस्से को सुखाकर कूलर की घास बनाई जाती है। इस प्रकार खस का पौध हर तरीके से किसान के लिए फायदेमंद होता है। एक एकड़ में ही करीब दस लीटर तेल का उत्पादन होता है।