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सहरिया आदिवासियों को अब तक नहीं मिला इंसाफ- रन सिंह परमार
मध्य प्रदेश के चंबल घाटी में सहरिया आदिवासी समुदाय की हालत बहुत दयनीय है। उनको हमेशा जंगलों पर निर्भर रहना पड़ता है। उनकी जमीन पर उनका अधिकार नहीं रह गया है। दबंगों ने उनकी जमीन को अपने कब्जे में ले लिया है। एकता परिषद के कार्यकर्ता सहरिया आदिवासियों को उनकी जमीन वापस दिलाने के लिए आज भी संघर्ष कर रहे हैं।
यह चिंता एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रन सिंह परमार ने स्पेशल कवरेज न्यूज से बातचीत के क्रम में जताई। उन्होंने बताया कि चंबल में बागियों के समर्पण और पुनर्वास के बाद आचार्य विनोबा भावे ने 40 लाख एकड़ जमीन हासिल की, जिसे सहारिया आदिवासियों सहित अन्य भूमिहीनों के बीच बांट दिया गया। इस आदिवासी समुदाय को जमीन का पट्टा तो दे दिया लेकिन जिस जमीन का पट्टा दिया गया उसके बारे में उन्हें कुछ नहीं बताया गया। दूसरी ओर उनको दी गई जमीन पर दबंग खेती कर रहे हैं और दूसरी ओर बाहर के राज्यों के लोगों को भी उनकी जमीन सस्ते में बेच रहे हैं। रन सिंह परमार ने बताया कि सहारिया आदिवासी समुदाय निर्धन के साथ अशिक्षित भी हैं इसलिए वे सरकारी और कानूनी स्तर पर कोई भी प्रयास नहीं कर पाते हैं। जबकि उन्हें भूदान कमेटी की ओर से जमीन का पक्का पट्टा दिया गया है पर उनको पता ही नहीं है कि उन्हें कौन सी जमीन कहां पर दी गई है।
एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रन सिंह परमार बताते हैं कि कुछ साल पहले जब सहारिया आदिवासी समुदाय में खास कर महिलाओं और बच्चों की थोक में मौतें होने लगीं तो विख्यात गांधीवादी विचारक और एकता परिषद के संस्थापक राजगोपाल पीवी के नेतृत्व में सहारिया आदिवासी के इलाके में छह महीने लगातार पदयात्रा और उनकी सभाओं का आयोजन किया। रात को भी उन्हीं के साथ पदयात्री रुकते और उनकी हालत की दास्तां सुनते।
रन सिंह ने बताया कि एकता परिषद ने पहले तो भूदान के तहत मिली जमीन पर उनके दखल को सुनिश्चित किया। साथ ही बाहर के राज्यों से आए लोगों को जमीन खरीदने पर रोक लगाई गई और वन भूमि अधिनयम के लागू होने के बाद भी उनको जमीन दिलाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।
डॉ रन सिंह परमार चंबल के इलाके के हैं। उन्होंने कृषि के क्षेत्र में ऊंची शिक्षा हासिल की लेकिन कोई जॉब करने के बजाय वरिष्ठ गांधीवादी नेता डॉ एस एन सुब्बाराव और राजगोपाल पीवी के अभियानों से जुड़ कर बागियों के पुनर्वास के काम में जुटे रहे। इसी दौरान उस इलाके में महात्मा गांधी सेवा आश्रम की स्थापना की गई। अब इस संस्था के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को खादी सहित अन्य ग्रामोद्योग,शहद पालन आदि के जरिए रोजगार मुहैया कराया गया।
डॉ सिंह कहते हैं की चंबल में बागियों को समर्पण कराकर सीधी हिंसा के माहौल को बदलने की कोशिश की गई लेकिन ढांचागत हिंसा अभी तक खत्म नहीं हुई जिसके लिए हम लोग रात दिन लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि जीने के प्राकृतिक संसाधनों का अन्याय पूर्ण बटवारा भी ढांचागत हिंसा है। किसी के अधिकारों का हनन करना और समानता का माहौल का बने रहना भी ढांचागत हिंसा है। उन्होंने कहा कि ढांचागत हिंसा को खत्म करने की कोशिश वैश्विक स्तर पर होनी चाहिए।
एकता परिषद द्वारा पिछले बीस साल से भूमिहीनों को जमीन दिलाने का संघर्ष चल रहा है। उनकी कोशिश है कि सभी भूमिहीन को ज्यादा से ज्यादा 5 एकड़ जमीन मिल जाए ताकि वे खेती के सम्मान की जिंदगी जी सके। रन सिंह ने बताया कि देश के 11 राज्यों में अब तक तीन लाख से अधिक भूमिहीनों को जमीन मिल चुकी है। वन भूमि अधिनयम आने के बाद भी वनवासियों को जमीन दिलाने की कोशिश की गई है। अभी तक वनवासियों को उनके दावे के मुताबिक 40 फीसद वनवासियों को जमीन मिलना सुनिश्चित हुआ है लेकिन 60 फीसदी अर्थात तीन लाख दावे रद्द कर दिए गए हैं। अब फिर से नए सिरे से दावे किए जा रहे हैं।
डॉ परमार ने कहा कि जल जंगल और जमीन, ये हो जनता के अधीन अभियानों के तहत कई बार ग्वालियर से दिल्ली तक विभिन्न पदयात्राओं का आयोजन किया। इन यात्राओं से हक भी मिले लेकिन ये यात्राएं अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाली चली फिरती पाठशाला के रूप में भी शुमार किया जाता है। उन्होंने बताया कि एकता परिषद ने लॉक डाउन के दौरान भी लाखों लोगों की घर वापसी सुनिश्चित करने के साथ उनकी आजीविका के लिए श्रमदान अभियान चलाया गया। कोरो ना की दूसरी लहर में भी खासकर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में जागृति अभियान के साथ राहत के रूप में खाद्यान्न सामग्री सहित दवाइयों और ऑक्सीजन सिलेंडरों का वितरण किया। टीकाकरण में भी सहयोग किया गया।
रन सिंह खास मुलाकात मै आए थे इनकी बातचीत पर आधारित है यह रिपोर्ट