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सुधीर प्रोग्रामर बोले- बिहार सरकार के सौतेले व्यवहार से अंग प्रदेश के लोगों में भारी नाराजगी
बिहार सरकार द्वारा अंगिका भाषा के प्रति सौतेले व्यवहार पर अंग के जन-जन में और अंगिका के रचनाकारों में भारी रोष पैदा हो गया है। यह जानकारी देते हुए अंगिका के शीर्षस्थ रचनाकारों में से एक सुधीर प्रोग्रामर ने स्पेशल कवरेज न्यूज़ से एक साक्षात्कार में कहा कि बिहार सरकार के राजभाषा विभाग की ओर से इस साल मैथिली में विद्यापति पुरस्कार, मगही में मोहनलाल महतो वियोगी पुरस्कार और भोजपुरी में भिखारी ठाकुर पुरस्कार दिए गए लेकिन अंगिका के रचनाकारों के लिए कोई पुरस्कार नहीं।
प्रोग्रामर ने सवाल उठाया कि जब बिहार में भोजपुरी, मैथिली और मगही में पुरस्कार दिए गए तो अंगिका के रचनाकारों को क्यों नहीं जबकि अंगिका के रचनाकार भी उक्त भाषाओं के रचनाकारों से किसी मायने में कम नहीं हैं। बिहार में प्रमुख भाषाओं में मैथिली,भोजपुरी,मगही के साथ अंगिका भाषा का भी वजूद है,फिर क्यों इसकी उपेक्षा की गई है। अंगिका के प्रसिद्ध नाटककार गजलगो और कवि सुधीर प्रोग्रामर ने कहा कि पुरस्कार सूची से अंगिका को गायब कर दिए जाने से अंगिका भाषा बोलने वाले करोड़ों लोगों का अपमान हुआ है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर क्यों अंगिका की उपेक्षा की गई जबकि मैथिली,भोजपुरी और मगही की तरह अंगिका की भी सांस्कृतिक पहचान है।
देश के ज्यादातर ऐतिहासिक पुरुषों और महापुरुषों के अंग प्रदेश से गहरे ताल्लुक रहे हैं। इसी के साथ अंग के पास मंजूषा जैसी कला की विरासत है। हिरनी बिरनी, सती बिहुला और चंदनबाला जैसी लोक गाथाएं हैं। हर एक अवसर के लोकगीत हैं। बिहार सरकार द्वारा बिहार अंगिका अकादमी गठित है। अंगिका में दशकों से दर्जनों पत्रिकाएं और सैकड़ों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अंगिका के अपने व्याकरण और शब्दकोश हैं। बरसों से आकाशवाणी और दूर दर्शन में अंगिका में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं।
रेल मंत्रालय ने अंग एक्सप्रेस ट्रेन शुरू किया है। तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में एम् ए की पढ़ाई हो रही है। दिल्ली सहित देश भर में अंगिका के रचनाकार सम्मान के साथ आमंत्रित किए जा रहे हैं फिर राजभाषा पुरस्कार से अंगिका को क्यों वंचित किया गया है? इस भेदभाव से अंग प्रदेश का जन जन नाराज है। प्रोग्रामर ने बिहार सरकार से मांग की है कि वह अपनी भूल सुधार कर अंग के प्रसिद्ध कवि सरहपा, राहुल सांकृत्यायन और नरेश पांडे चकोर में से किसी एक के नाम पर अंगिका के रचनाकारों को पुरस्कार देने की जितनी जल्दी ही सके पहल करे।
अंग प्रदेश के महत्वपूर्ण कवि और अंगिका के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले प्रोग्रामर ने बताया कि उन्होंने अखिल भारतीय अंगिका साहित्य कला मंच के बिहार प्रदेश सचिव की हैसियत से अंगिका की घोर उपेक्षा के बारे में एक पत्र बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लिखा है। इसी पत्र में सुल्तानगंज के सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक ललित नारायण मंडल ने भी मुख्यमंत्री से अंगिका के रचनाकारों के लिए पुरस्कार शुरू करने की एमएनजी की। उन्होंने बताया कि लोकसभा और बिहार विधानसभा में अंगिका के मुद्दे उठाने वाले पूर्व विधायक और सांसद सुबोध राय ने भी अंगिका की उपेक्षा पर चिंता जताई है।
अंगिका को अष्टम सूची में शामिल करने की मांग करते हुए प्रोग्रामर ने बताया कि यह मांग अंग क्षेत्र में सक्रिय विभिन्न संगठन और संस्थाएं भी कर रही हैं। उन्होंने बताया कि अंगिका संसद संस्था सहित अनेक संगठन ने बिहार के उप मुख्य मंत्री तार किशोर प्रसाद को एक पत्र लिख कर उनसे अंगिका को झारखंड की तरह दूसरी राजभाषा का दर्जा देने, बिहार अंगिका अकादमी के अध्यक्ष पद पर किसी योग्य अंगिका प्रेमी व्यक्ति को नियुक्ति करने,प्रतियोगी परीक्षाओं में अंगिका को शामिल करने और अंग प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों में अंगिका भाषा में पढ़ाई सुनिश्चित करने की मांग की गई है।
अंगिका के विकास के लिए बिहार विधान सभा के अध्यक्ष रहे डॉ लक्ष्मीनारायण सुधांशु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए प्रोग्रामर ने बताया कि अंगिका रचनाकारों में डोमन साहू समीर, डॉ अभय कांत चौधरी, सुमन सुरो डॉ तेज़ नारायण कुशवाहा, अनूप लाल मंडल, भगवान प्रलय, नरेश पांडे चकोर, डॉ अमरेन्द्र, हीरा प्रसाद हरेंद्र,अनिरुद्ध प्रसाद विमल, रामावतार राही और आमोद मिश्र आदि अंगिका के महान् रचनाकार हैं। उन्होंने खासकर अंगिका में शब्दकोश तैयार करने वाली डॉ सुजाता कुमारी की चर्चा करते हुए कहा कि अंगिका में रचना करने वालों में विनोद बाला, डॉ विद्या रानी, डॉ प्रतिभा राजहंस,मृदुला शुक्ला, आभा पूर्वे,मीरा झा,सांत्वना साह,माधवी चौधरी, मीना तिवारी,रेणु ठाकुर,मीरा झा (नवगछिया), रंजना सिंह,अंशु माला झा,सुप्रिया सिंह वीणा के नाम उल्लेखनीय है।
प्रसून लतांत