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वानखेड़े में भारत कभी सेमीफाइनल नहीं जीता, न्यूजीलैंड के खिलाफ सूर्यकुमार यादव भारत के लिए तुरुप का इक्का होंगे
जिस वानखेड़े में भारत कभी सेमीफाइनल नहीं जीता, वहां न्यूजीलैंड के खिलाफ सूर्यकुमार यादव भारत के लिए तुरुप का इक्का होंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि न्यूजीलैंड की टीम में सिर्फ 4 प्रमुख गेंदबाज हैं। ट्रेंट बोल्ट, टिम साऊदी, लॉकी फर्ग्यूसन और मिचेल सैंटनर। बचे हुए 10 ओवर की जिम्मेदारी पार्ट टाइमर गेंदबाज ग्लेन फिलिप्स और रचिन रवींद्र के कंधों पर होती है। इन दोनों के खिलाफ भारतीय टीम आक्रामक बल्लेबाजी का प्रयास करेगी। मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में भारत कभी कोई सेमीफाइनल मैच नहीं जीत सका है। 1987 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में इंग्लैंड ने भारत को 35 रन से हराया था। 1989 में खेले गए नेहरू कप के सेमीफाइनल में वेस्टइंडीज ने टीम इंडिया को 8 विकेट से शिकस्त दी थी। आखिरी बार 2016 के T-20 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में वेस्टइंडीज ने भारत को 7 विकेट से परास्त कर दिया था। इसका मतलब हुआ कि भारत न्यूजीलैंड के खिलाफ वानखेड़े में नया इतिहास लिखने उतरेगा।
मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में भारत भले ही कोई सेमीफाइनल नहीं जीता, लेकिन सूर्यकुमार यादव इसी मैदान पर खेल कर निखरे हैं। वानखेड़े स्टेडियम में किए गए प्रदर्शन के कारण ही सूर्यकुमार यादव को सूर्या भाऊ उपनाम मिला। इस वर्ल्ड कप के दौरान वानखेड़े स्टेडियम में 4 मैच खेले गए, 3 बार पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम ने जीत हासिल की। एक अविश्वसनीय जीत रन का पीछा करते हुए ऑस्ट्रेलिया ने अफगानिस्तान के खिलाफ दर्ज की थी। ग्लेन मैक्सवेल ने 128 गेंद पर 201* रनों की चमत्कारी पारी खेली थी। अगर भारत टॉस जीतता है, तो सबसे पहले बल्लेबाजी का ही निर्णय लेगा। शुरुआती कुछ ओवर तेज गेंदबाजों के खिलाफ संभल कर बल्लेबाजी करनी होगी। उसके बाद पार्ट टाइमर्स के खिलाफ जमकर रन बटोरने होंगे। इसी वक्त सूर्यकुमार यादव भारत के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं। सूर्यकुमार यादव के 360 डिग्री शॉट्स खेलने की क्षमता मैच में भारत को न्यूजीलैंड पर बढ़त दिला सकती है।
उस सेमीफाइनल मैच की, जिसे सचिन के दम पर जीतकर भारत ने आखिरी बार वर्ल्ड कप फाइनल खेला
बात उस सेमीफाइनल मैच की, जिसे सचिन के दम पर जीतकर भारत ने आखिरी बार वर्ल्ड कप फाइनल खेला था। 2011 वर्ल्ड कप फाइनल में धोनी-गंभीर की पारी सबको याद है, पर सेमीफाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ सचिन की कुटाई का जिक्र कम होता है। भारत ने सचिन तेंदुलकर के दम पर 2011 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में पाकिस्तान को धूल चटाई थी। उस पूरे मुकाबले में सचिन तेंदुलकर के अलावा मिस्बाह-उल-हक अर्धशतक जड़ने वाले एकमात्र बल्लेबाज थे। यह अपने आप में बताने के लिए काफी है कि सचिन तेंदुलकर ने किन परिस्थितियों में भारत को फाइनल में पहुंचाया था। अगर सचिन के बल्ले से यह ऐतिहासिक पारी नहीं आती, तो शायद हम 2011 विश्व कप का फाइनल भी नहीं खेल पाते। आज हम आपको उस यादगार पारी की अहमियत बताने का प्रयास करेंगे। सचिन तेंदुलकर उस मैच में वन मैन आर्मी की तरह खेले थे। तारीख थी 30 मार्च 2011 और जगह आई एस बिंद्रा स्टेडियम, मोहाली, पंजाब। भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के सामने पाकिस्तानी कप्तान शाहिद अफरीदी की चुनौती थी। स्टेडियम में दोनों देशों के प्रधानमंत्री मौजूद थे। किसी को भी जीत से कम कुछ मंजूर नहीं था। टीम इंडिया ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय लिया।
वीरेंद्र सहवाग ने 25 गेंद पर 9 चौकों की मदद से 38 रनों की तेज पारी खेली। सहवाग वहाब रियाज के छठे ओवर की पांचवीं गेंद पर LBW हो गए। फर्स्ट डाउन बल्लेबाजी करने उतरे गौतम गंभीर 32 गेंद खेलकर 27 रन ही बना सके। विराट कोहली भी 9 रन बनाकर वहाब रियाज का शिकार बन गए। टीम इंडिया का स्कोर 25.2 ओवर में 3 विकेट के नुकसान पर 141 रन था। इसके बाद सचिन तेंदुलकर का साथ निभाने बीच मैदान युवराज सिंह पहुंचे। युवी को पहले ही गेंद पर वहाब रियाज ने क्लीन बोल्ड कर दिया। जिस खिलाड़ी का बल्ला पूरे टूर्नामेंट में अपने शबाब पर था, वह सेमीफाइनल में नाकाम हो गया। पूरे स्टेडियम में मातमी सन्नाटा पसर गया। पर उम्मीद बाकी थी, क्योंकि पाकिस्तान का काल कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ग्राउंड पर थे। सचिन ने 11 चौकों की मदद से 85 रनों की शानदार पारी खेली। सचिन जरूर शतक चूक गए, पर उनकी यह बेशकीमती पारी किसी सेंचुरी से कम नहीं थी। यह सचिन के करियर की सर्वश्रेष्ठ पारियों में से एक थी। अपने करियर के शुरुआत से लेकर आखिर तक पाकिस्तान के खिलाफ जब भी सचिन मैदान पर उतरे, समूचा भारत इस चैंपियन खिलाड़ी के पीछे खड़ा हो गया। सचिन भी बेशुमार उम्मीदों पर खरे उतरे।
अंतिम लमहों में रैना के 36* और धोनी के 25 रनों की बदौलत टीम इंडिया ने निर्धारित 50 ओवर में 9 विकेट के नुकसान पर 260 रन बनाए। जवाब में पाकिस्तानी टीम 49.5 ओवर में 231 रन बनाकर ढेर हो गई। टीम इंडिया ने 29 रनों से मुकाबला जीत लिया। आलोचकों का एक वर्ग ऐसा कहता रहा है कि 2011 विश्व कप टीम इंडिया ने सचिन तेंदुलकर के लिए जीता। सचिन का इसमें कुछ खास योगदान नहीं था। जबकि हकीकत यह है कि सचिन तेंदुलकर ने 2011 विश्व कप में 53 की औसत से 2 अर्थशतक और 2 शतक के साथ भारत के लिए सबसे ज्यादा 482 रन बनाए थे। पाकिस्तान के खिलाफ अगर सचिन तेंदुलकर का बल्ला नहीं चलता, तो भारत के लिए 200 रनों का आंकड़ा छूना भी मुश्किल होता। यह जरूर हकीकत है कि अपना छठा विश्व कप खेल रहे सचिन की खातिर पूरी टीम खिताब जीतना चाहती थी। पर लिटिल मास्टर सचिन तेंदुलकर ने भी उस जीत में अहम योगदान दिया था। 38 वर्ष की उम्र में जोश और जज्बे के साथ हिंदुस्तान को विश्व विजेता बनाने के लिए मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को सलाम। Lekhanbaji