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कृषि से जुड़े आर्थिक सवालों को लेकर मोदी सरकार और किसानों के बीच गुज़रे 6 महीने से एक राजनीतिक कबड्डी चल रही है। दूसरी कबड्डी इसी सप्ताह सिंघु बॉर्डर पर लड़कियों की खेल प्रतिस्पर्धा के रूप में संपन्न हुई। राजनीतिक कबड्डी का हश्र भले ही अभी भविष्य के गर्त में हो लेकिन लड़कियों ने संघर्षशील किसानों के मनोरंजन के लिए जो खेल रचा था, बुज़ुर्गों से लेकर युवाओं तक सभी ने न सिर्फ़ उसका लुत्फ़ उठाया बल्कि उन्हें इस बात का ढाढ़स भी बंधा कि संघर्ष की राह में उनकी बेटियां भी जंग की विरासत से लबरेज़ हैं।
उखड़ते मौसम और गरजते बादलों के बीच पंजाब, हरियाणा, यूपी,राजस्थान और दिल्ली के गांवों से आई किसानों की इन बेटियों (जिनमें ज़्यादातर कॉलेज की छात्राएं थीं) में कई अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कबड्डी खिलाडी शामिल थीं तो कई राष्ट्रीय स्तर की भी। जाते-जाते ये लड़कियां वहां मौजूद पत्रकारों को बता गईं कि वे यहाँ खेल के बहाने अपने दादाओं, पिताओं, भाइयों और माताओं के संघर्ष में एकजुटता का प्रदर्शन करने आई हैं।
12 टीमों वाले इस 'किसान आंदोलन कबड्डी टूर्नामेंट' में जीत का तमग़ा जींद (हरियाणा) की किसान बेटियों के नाम रहा। यूं तो पंजाब-हरियाणा आदि राज्यों में खेलों से जुड़े दूसरे खिलाड़ी भी हैं पर आज़ादी के बाद होने वाले किसानों के इस सबसे बड़े 'लोकतान्त्रिक कुंभ' में कबड्डी की खिलाड़ी ही क्यों उतरीं, यह सवाल किसी को भी बेचैन कर सकता है ? लोकतान्त्रिक विवादों और संघर्षों में उतरने की परंपरा मूलतः भारतीय परंपरा है। सहस्त्राब्दियों से हमारे पूर्वज वैचारिक द्वन्द से लेकर जंग के मैदान में मोर्चा सँभालने की अपनी कला को अगली पीढ़ियों के लिए विरासत के रूप में छोड़ते रहे हैं।
कबड्डी भी भारतीय उपमहाद्वीप की परंपरा के भीतर से उपजा खेल है। 'फिक्की' की रिपोर्ट में उपलब्ध 'बार्क इंडिया डाटा' के अनुसार टीवी पर देखे जाने वाले सर्वाधिक लोकप्रिय खेलों की सूची में कबड्डी दूसरे नम्बर पर स्थापित है।
भारत में कबड्डी के इतिहास की जड़ें वैदिक युगों से जुडी हैं। मिथकीय साहित्य में गोप मित्रों के साथ श्रीकृष्ण के कबड्डी खेलने के वृतांत हैं। महाभारत में अर्जुन का कबड्डी खेलने का प्रसंग मौजूद है। बौद्ध साहित्य में गौतम बुद्ध के कबड्डी खिलाड़ी होने के विवरण उपस्थित हैं।
हमारे देश में 1920 के दशक से इसको प्रतियोगी खेलों में शामिल कर लिया गया था। तब से लेकर 'एशियाई खेलों', 'विश्व कप' और ओलंपिक खेलों में शुमार होने तथा समय-समय पर भारत की जीत की कबड्डी की दास्तां बेहद दिलचस्प है। नेपाल का यह राष्ट्रीय खेल है। बंगलादेश और पाकिस्तान में भी कबड्डी अत्यंत लोकप्रिय खेल है। जिस तरह भारत-पाक की जनता के बीच लगातार बिगड़ते आत्मीयता के रिश्तों को क्रिकेट मैच और भी अधिक शत्रुतापूर्ण बनाते हैं, कबड्डी इनमें प्रेम का संचार करती है। फ़रवरी 2020 में पाकिस्तान में हुए 'सर्कल कबड्डी' के पहले वर्ल्ड कप में (खेल मंत्रालय की अनिच्छा के बावजूद) भारतीय कबड्डी के 60 खिलाडियों के 'अनऑफिशियल दल' का लाहौर पहुँचने और लाखों पाकिस्तानी नागरिकों का स्थान-स्थान पर उन्हें हाथों-हाथ लेने से बड़ा पड़ौसी देशों के बीच जन-प्रेम का दूसरा उदाहरण और क्या होगा?
किसान आंदोलन के साथ कबड्डी खिलाइयों के एकजुट होने के अर्थ गहरे हैं। यह केवल पिता-पुत्रियों की एकजुटता नहीं बल्कि बड़ी सौद्देश्यता के लिए भारत की अलग-अलग लोकतान्त्रिक विरासतों का ऐसा विराट संगम है जिसके परिणाम निःसंदेह दूरगामी हो सकते हैं।